एनजीटी की रोक हटने के बावजूद झारखंड में बालू संकट बरकरार, सरकारी सिस्टम की खामियों के चलते महंगा बालू

एनजीटी की रोक हटने के बावजूद झारखंड में बालू संकट बरकरार, सरकारी सिस्टम की खामियों के चलते महंगा बालू

रांची: झारखंड में बालू घाटों पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा लगाई गई रोक 15 अक्टूबर को हटा दी गई है, लेकिन खनन विभाग की जटिल प्रक्रियाओं और नियमों के चलते राज्य में बालू संकट अब भी जारी है। इस कारण से लोगों को महंगे दामों पर बालू खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

राज्य में कुल 444 बालू घाट हैं, लेकिन वर्तमान में केवल 18 घाटों से ही बालू का खनन और उठाव किया जा रहा है। मानसून की अवधि के बाद से कुछ घाटों पर खनन प्रक्रिया फिर से शुरू की गई है, लेकिन लाइसेंस और अन्य परमिशन की कमी के कारण अधिकांश घाट अभी भी बंद हैं। खनन के लिए लाइसेंस, सीटीओ, और पर्यावरणीय क्लीयरेंस की जरूरत होती है, जिनकी अनुपलब्धता और लंबी प्रक्रियाएं खनन कार्य में बाधा बन रही हैं। इसके अलावा, सिया नामक एक समिति का गठन किया गया है, जिसकी अनुमति के बिना किसी भी नए घाट से खनन नहीं किया जा सकता।

एनजीटी की रोक हटने के बावजूद, बालू की काला बाजारी और महंगे दामों पर बिक्री की समस्या बनी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा सिस्टम में सुधार के बिना बालू की उपलब्धता और कीमतों पर नियंत्रण पाना मुश्किल है।  झारखंड में बालू की समस्या का समाधान करने के लिए अभी तक कोई ठोस पहल नहीं की गई है। खनन विभाग के नए निदेशक राहुल सिन्हा ने सरकारी स्तर पर सुधारों की जरूरत पर जोर दिया है, लेकिन इसका समाधान सरकार की इच्छाशक्ति पर निर्भर करेगा।

झारखंड में बालू संकट का मुख्य कारण खनन विभाग की जटिल प्रक्रियाएं, लाइसेंस और पर्यावरणीय मंजूरी में देरी है। एनजीटी की रोक हटने के बावजूद, बालू की किल्लत और महंगे दामों की समस्या का समाधान निकट भविष्य में होता नहीं दिख रहा है।

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