झारखंड डेस्क: झारखंड की राजनीति इन दिनों एक ‘नई चिकित्सा’ खोज रही है—नाम है रिम्स टू, लेकिन लक्षण बताते हैं कि इलाज पहले खुद कांग्रेस को चाहिए। क्योंकि जहां अस्पताल बनना था, वहां अब राजनीति की बीमारियां पनपने लगी हैं—आंतरिक कलह, आदिवासी असंतोष और जमीन का ‘पुराना रोग’।
रांची के नगड़ी में अस्पताल बनना है या राजनीतिक अखाड़ा, यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है। कांग्रेस के दो ‘डॉक्टर’ इस पर आमने-सामने हैं—एक हैं स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी, जो विकास की गोली हर विरोधी को खिलाना चाहते हैं। दूसरे हैं बंधु तिर्की, जो आदिवासी हक़ का तापमान नाप रहे हैं। ज़मीन सरकारी है या रैयतों की? यह तय करने से पहले कांग्रेस की ज़मीन खिसकती नज़र आ रही है।
दरअसल, यह सिर्फ अस्पताल की नींव नहीं है जो हिल रही है, बल्कि पार्टी की दीवारों में दरारें दिखने लगी हैं। राजनीति में जब ज़मीन विवाद जनभावना से टकरा जाए, तो विकास खुद ICU में चला जाता है।
डॉ. इरफान अंसारी इसे “विकास का डोज़” कह रहे हैं, और जो विरोध कर रहे हैं उन्हें सीधे “बाबूलाल मरांडी की क्लास” का छात्र घोषित कर दे रहे हैं। अब झारखंड की जनता यह जानना चाहती है कि कांग्रेस में दाखिला किस स्कूल से होता है—सोनिया विद्या पीठ से या मरांडी मिशन स्कूल से?
बंधु तिर्की, जिन्हें नगड़ी की माटी से लगाव है, कह रहे हैं—यह ज़मीन हमारी मां है, इसे अस्पताल के स्ट्रेचर पर मत लिटाइए! वे रैयतों के पक्ष में खड़े हैं, जबकि मंत्री जी बिल्डिंग के नक्शे में व्यस्त हैं।
और हमारे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी? उनकी चुप्पी उतनी ही स्थिर है जितनी झारखंड की गठबंधन सरकार। जब आदिवासी संगठन संविधान की पांचवीं अनुसूची लहराते हुए सड़कों पर हैं, तब सरकार की ओर से नोटिस नहीं, नोटबुक भी नहीं आई है।
मुख्य सवाल ये है:
क्या अस्पताल पहले बनेगा या कांग्रेस की राजनीतिक अंत्येष्टि पहले होगी?
नगड़ी में रिंग रोड, IIM, अब रिम्स टू—हर बार नाम कुछ और, दर्द वही पुराना: “बिना मुआवजा, बिना अनुमति, और बिना संवेदना!”
FAO कहता है कि 0.17 एकड़ प्रति व्यक्ति खेती योग्य ज़मीन चाहिए, लेकिन कांग्रेस कहती है “फसल मत देखो, फाइल देखो”। जनगणना कहती है कि नगड़ी में लोग बढ़ रहे हैं, सरकार कहती है “बोझ घटाओ, ज़मीन दो”।
राजनीति में अब यह नया नारा चल पड़ा है —
“वोट पहले, नोटिस बाद में। योजना पहले, राय बाद में। घोषणा पहले, हकीकत भविष्य में।”
अस्पताल बाद में बने, लेकिन अखबारों में उद्घाटन आज ही चाहिए।” यही है झारखंड मॉडल।
रिम्स टू का नाम भविष्य के स्वास्थ्य के लिए है, लेकिन इसकी प्रक्रिया वर्तमान राजनीति को बीमार कर चुकी है। कांग्रेस को चाहिए कि पहले अपनी फूट का इलाज कराए, नहीं तो जनता को अगली बार रिपोर्ट नहीं, रिपोर्ट कार्ड दिखाना पड़ेगा।
और हां, कहीं ऐसा न हो कि अस्पताल की नींव से पहले कांग्रेस की छत ही ढह जाए!
डॉक्टर साहब से निवेदन
शिलान्यास करने से पहले, राजनीतिक मरहम की जरूरत है। क्योंकि नगड़ी की ज़मीन पर फिलहाल इमारत नहीं, केवल आरोप-प्रत्यारोप की दीवारें खड़ी हो रही हैं!