Saturday, August 2, 2025

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1932 का खतियान यानी फर्स्ट सेटलमेंट सर्वे- जयप्रकाश मिंज

Ranchi- फर्स्ट सेटलमेंट सर्वे – अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के केंद्रीय अध्यक्ष जय प्रकाश मिंज ने कहा है कि झारखंड राज्य निर्माण के बाद 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति की मांग काफी पुरानी थी.

हेमंत सरकार ने इसे पूरा कर एक ऐतिहासिक कार्य किया है. एक स्थानीय नीति जो झारखंडियों का हित साधन करे, बेहद जरुरी था.

1908 से 1965 तक चला है फर्स्ट सेटलमेंट सर्वे- जयप्रकाश मिंज

1932 का खतियान यानी फर्स्ट सेटलमेंट सर्वे- जयप्रकाश मिंज
1932 का खतियान यानी फर्स्ट सेटलमेंट सर्वे- जयप्रकाश मिंज

जय प्रकाश मिंज ने कहा कि  झारखंड में 1908 से 1932 प्रथम सर्वे सेटलमेंट हुआ था.

कुछ स्थानों पर यह कार्य 1965 तक चला.

1940 में  झारखंड में औद्योगिकरण के साथ ही बाहरी समूहों का प्रवेश हुआ.

इसकी रफ्तार इतनी तेज थी कि आदिवासियों की जनसंख्या में तेजी से गिरावट आयी.

 झारखंड में कभी आदिवासियों की जनसंख्या 75 फीसदी थी.

इन बाहरी समूहों के प्रवेश के कारण इसकी जनसंख्या घटकर 26 फीसदी तक सिमट गयी.

आदिवासी जनसंख्या में इसी गिरवाट को रोकने के लिए एक मुक्कमल स्थानीय नीति की अति आवश्यकता थी.

बाहरी समूहों के प्रवेश पर रोक की जरुरत थी.

जिससे कि यहां के आदिवासी मूलवासियों को अधिक से अधिक संख्या में राज्य सरकार की नौकरी मिल सके.

औद्योगिकरण की बाढ़ में सिमटती गयी आदिवासियों की जनसंख्या- जयप्रकाश मिंज

जय प्रकाश मिंज ने कहा कि हर राज्य् की अपनी अपनी स्थानीय नीतियां होती है.

राज्य सरकार की नौकरियां अपने अपने राज्य के वासियों के लिए आरक्षित हैं.

सिर्फ झारखंड ही एक ऐसा राज्य था जहां राज्य सरकार की नौकरियां पूरे देश के लोगों के लिए खुला था.

 अब 1932 का (झारखंड प्रथम सर्वे) के खतियान के आधार पर झारखंडियों को राज्य सरकार की नौकरी मिलेगी

और गैर झारखंडियों को नौकरी नहीं मिल सकेगी.

फर्स्ट सेटलमेंट सर्वेकिसी के साथ अन्याय नहीं, झारखंड की नौकरी झारखंडियों को

उन्होंने कहा कि कुछ लोगों की चिंता यह है कि जिन लोगों के पास ३२ का खतियान नहीं है, उनका क्या होगा?

लेकिन यह चिंता करने की जरुरत ही नहीं है. 1932 का खतियान का मतलब है प्रथम सेटलमेंट सर्वे.

  यह 1932 से 1965 के बीच का कोई भी हो सकता है. जिनके पास यह भी नहीं है,

उसका भी उपाय निकाला जाएगा. जैसे अभी स्कूल के बच्चों का जाति प्रमाणपत्र देने के संबंध में किया जा रहा है.

एक बार इस संबंध में विधान सभा के पटल पर प्रस्ताव पेश होते ही सारी शंका दूर हो जाएगी.

तमाम बिंदुओं पर चर्चा के बाद ही 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति को मूर्त रूप दिया जाएगा.

चलते चलते ही रास्ते तय होते हैं। मंजिल स्पष्ट होना चाहिए.

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