डिजीटल डेस्क : Breaking – ‘रात हमारी है’आंदोलन को कोलकाता मेट्रो ने भी गंभीरता से लिया, आज रात 10.40 बजे आखिरी मेट्रो। कोलकाता में गत शुक्रवार के तड़के मेडिकल छात्रा के साथ रेप फिर उसके कत्ल की घटना के परिप्रेक्ष्य में महिलओं की आजादी के लिए आहूत ‘रात हमारी है’आंदोलन को कोलकाता मेट्रो ने भी गंभीरता से लिया है।
आलम यह है कि कोलकाता मेट्रो ने भी इस आह्रवान के मद्देनजर सकारात्मक पहल की है। कोलकाता मेट्रो के जनसंपर्क अधिकारी कौशिक मित्र ने बयान जारी कर कहा है कि 14 अगस्त की देर रात होने वाले इसी आंदोलन को देखते हुए देर रात तक मेट्रो संचालित करने का फैसला लिया गया है।
उसी क्रम में आखिरी मेट्रो ट्रेन रात 10.40 बजे ही संचालित करने का फैसला लिया गया। उन्होंने आगे कहा कि इस आंदोलन को लेकर लगतार लोगों की ओर से संपर्क किया जा रहा था और मेट्रो संचालन की समयसीमा को एक रात कुछ देर बढ़ाने का अनुरोध किया गया था। उसी क्रम में यह पहल हुई है।
‘रात हमारी है’ की गूंज से 4 दिनों में सुर्खियों में छा गईं हैं रिमझिम
इस आंदोलन की तासीर को इसी से समझा जा सकता है कि इसे समर्थन देने वाली महिलाओं, गृहणियों और छात्राओं ने अपने-अपने सियासी सोच को परे रखकर इसे समर्थन दिया है।
वे खुद ही इस आंदोलन के लिए जुटने को प्रेरित हुए और आपस में उनकी संख्या महज 4 दिनों में इतनी बढ़ गई है कि अब यह कोलकाता के यादवपुर के अलावा कॉलेज स्ट्रीट के अलावा एकेडमी ऑफ फाइन आर्टस पर भी होने जा रहा है। इसके अलावा दिल्ली और बंगलुरु में भी आयोजन की घोषणा हो चुकी है।
आंदोलन का रूप ले चुके ‘रात हमारी है’ की पहल करने वाली रिमझिम की व्यवस्तता यह बताने के लिए काफी है कि लोगों ने किस तरह परे अभियान को हाथों हाथ लिया है। उनका मोबाइल फोन भी रह-रहकर हैंग हो जा रहा है और उसे रि-स्टार्ट करके सुचारू करना पड़ रहा है।
‘रात हमारी है’ अभियान की प्रणेता एवं सूत्रधार रिमझिम ने बताया है कि लगातार अलग-अलग इलाकों से मोबाइल पर लोग कॉल करके या संदेश माध्यम से संपर्क करके बता रहे हैं कि उनके यहां कहां लोग जुटेंगे और होने वाले कार्यक्रम का किस तरह फोटो या वीडियो भी बाद में सोशल मीडिया पर साझा किया जाएगा।
अब तक मिली जानकारी के मुताबिक, करीब 300 से अधिक स्थानों पर आयोजन होने जा रहा और करीब 70 अलग-अलग शहरों या जिलों में इसका कार्यक्रम लोगों ने अपने स्तर पर ही तय कर लिया है। इनमें ज्यादातर वे हैं जो बंगाली पृष्ठभूमि वाले हैं भले ही हिंदी भाषी हों या फिर बांग्लाभाषी या किसी अन्य बोलचाल वाली भाषा के।
वाम या राम पंथी होने के आरोप पर भी खुलकर बोलीं ‘रात हमारी है’ अभियान की प्रणेता रिमझिम
‘रात हमारी है’ अभियान का अनूठी पहल करने वाली रिमझिम सिंह पर कुछ सियासी दलों ने वाम या राम पंथी होने का भी आरोप लगाना शुरू कर दिया है।
हालांकि, रिमझिम इन आरोपों को कोई तवज्जो नहीं देतीं और अपनी बेफिक्री वाली संजीदगी में बिंदास अंदाज में बताने से नहीं चूकतीं कि किसी भी राजनीतिक दल के प्रति उनके भीतर ना तो लगाव है और ना ही किसी राजनीतिक दलों के बातों पर वह भरोसा करती हैं।
बड़े ही बेलागी से रिमझिम कहती हैं – ‘संसदीय लोकतंत्र में जीती हूं। पश्चिम बंगाल में जन्मी, पली और बढ़ी। यहां वाममोर्चा का शासन काल भी देखा है और अब तृणमूल कांग्रेस का राज भी देख रही हूं। साथ भाजपा शासित राज्यों की खबरों एवं घटनाओं से भी अच्छी तरह वाकिफ हूं कि वहां क्या हालात हैं।
जारी व्यवस्था या सिस्टम के खिलाफ जब कोई नया विचार जनसमूह की आवाज बनकर उभरता है तो लोग उसे किसी न किसी सियासी चश्मे से देखकर कुछ अलग रंग देने की कोशिन ना करें, ऐसा तो हो नहीं सकता। वैसा ही इस मामले में भी कतिपय लोग अगर करें तो कोई आश्चर्य नहीं।
महज 4 दिनों में कोई विचार लोगों को इतना भाया कि वे उसे आंदोलन का रूप देकर खुद ही उसके समर्थन में निकल पड़े हैं तो जनभावना को समझने में किसी को भूल नहीं करनी चाहिए कि आमजन के मन में क्या है’।
मेडिकल छात्रा की मौत की घटना बनी इस आंदोलन की वजह, प्रिंसिपल के बयान ने रिमझिम के अंतर्मन को किया छलनी
लोगों की जेहन में सहज ही कौंधने लग रहा कि अचानक से क्रांति सरीखे आंदोलन का रूप लिए ‘रात हमारी है’ की बिगुल फूंकने के मूल में क्या बात रही।
बुधवार को अपने आंदोलन को पूरे देश से मिल रहे व्यापक समर्थन से आह्वादित एवं व्यस्थ रिमझिम खुद ही इस बारे में पूरी संजीदगी से बताती हैं – ‘आरजी कर मेडिकल कॉलेज की छात्रा की मौत हुई। उसके साथ जिस भी तरह की अमानवीयता हुई, उस पर वहां के प्रिंसिपल की टिप्पणी ने अंतर्मन को छलनी कर दिया क्योंकि प्रिंसिपल ने तब कहा था कि वह छात्रा उतनी रात को अकेले उस सेमिनार रूम में गई ही क्यों थी?
क्या किसी छात्रा को रात में अकेले सेमिनार रूम आराम फरमाने के लिए सुरक्षित नहीं हो सकता? और वह भी अपने शिक्षण परिसर में? परिसर भी सरकारी हो तो उसमें तो और भी पुख्ता व्यवस्था होनी चाहिए छात्रा और महिलोओं के लिए। बजाय उस पर बोलने के उल्टे छात्रा पर ही उंगली उठाने की कुत्सित कोशिश होता देख मन उद्वेलित हो उठा था।
मैं खुद भी काम खत्म करके घर लौटने के क्रम में रात को लेट हो जाती हूं। वह बात और उसके सापेक्ष मेडिकल कॉलेज के प्रिंसपिल का वह ओछापन भरा बयान। मन काफी कचोटा। और फिर उसी के बाद तुरंत विचार कौंधा कि क्यों न इसका विरोध किया जाए और कुछ ऐसा किया जाए जो लोगों को झिंझोड़ दे और व्यवस्था में हलचल मचा दे’।
इसी क्रम में रिमझिम ने आगे कहती हैं कि ‘आखिर ऐसे मामलों में नारी या बालिका ही हीन या हेय क्यों बनाई जाए। फिर तय किया कि बालिका या महिला की आजादी के बारे में खुद को महिलाओं को आजादी से सोचना जरूरी है।
फिर क्या था गत 10 अगस्त को सहपाठियों से राय मशविरा कर पोस्टर का प्रारूप तैयार किया और उसे फेसबुक पर डाला तो लोगों में व्यवस्था को लेकर इतना गुस्सा भरा हुआ था कि यह इकलौता पोस्टर ही अचानक आंदोलन बना तो अब मन को सकून दे रहा है कि मैं और मेरी सोच पूरे परिप्रेक्ष्य में सही थे’।
फेसबुक पर ‘रात हमारी है’ की तिथि और समय के साथ गत 10 अगस्त को स्थान के तौर पर कोलकाता के यादवपुर के ईटीवी बस स्टैंड का जिक्र किया गया था। लेकिन अचानक से इस आंदोलन के लिए लोगों को बढ़े समर्थन ने पूरे माहौल सोशल मीडिया आधारित सामाजिक क्रांति सरीखा स्वरूप दे दिया तो अकेले कोलकाता में 3 अलग-अलग आयोजन स्थल तय करने पड़े हैं।
इन तय स्थानों पर बुधवार रात 11.55 बजे‘रात हमारी है’ आंदोलन के लिए महिलाएं और बालिकाएं जुटेंगी।