मंजेश कुमारLalu
पटना: बिहार में चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुआ और इसमें एनडीए ने जबरदस्त जीत हासिल की। उपचुनाव में चारों सीट पर जीत का दावा करने वाली राजद को अपनी तीन सिटिंग सीट भी गंवानी पड़ी। राजद की स्थापना पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने की थी। लालू यादव ने बिहार में 15 वर्षों तक शासन चलाया। इतना ही नहीं लालू यादव का राजनीतिक कद ऐसा था कि वे केंद्र की सरकार में भी सीधा दखल देते थे और केंद्र में भी उनकी भूमिका होती थी।
लालू यादव बिहार ही नहीं देश भर के एक कद्दावर नेताओं में गिने जाते थे। जब से उनका स्वास्थ्य बिगड़ा है तभी से राजद की कमान उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव के हाथ में आ गई। तेजस्वी ने राजद की कमान हाथ में लेते ही कहा था कि अब पार्टी विकास की राजनीति के आधार पर आगे बढ़ेगी। हालांकि कहने के लिए तेजस्वी यादव जरूर राजद के नेता बने लेकिन वे हर फैसला अभी ही अपने पिता और राजद के अध्यक्ष लालू यादव से पूछ कर ही लेते हैं।
चुनावी मैदान में भी तेजस्वी ताबड़तोड़ जनसभाएं और रैली तो करते हैं लेकिन लालू यादव के बिना राजद की चुनावी कैंपेन पूरा नहीं होता है। माना जाता है कि लालू यादव अगर किसी प्रत्याशी का प्रचार करें तो उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित हो जाती है। नवंबर में झारखंड के विधानसभा चुनाव और बिहार उपचुनाव में भी लालू यादव ने दो सीटों पर चुनाव प्रचार किया और राजद के कार्यकर्त्ता आश्वस्त थे कि जीत उनके उम्मीदवार की होगी। इन दो सीटों में एक सीट थी गया का बेलागंज तो दूसरा झारखंड का कोडरमा।
बेलागंज में ढह गया किला
बेलागंज विधानसभा सीट जनता दल के समय 1990 से राजद के नेता सुरेंद्र यादव जीत रहे थे। सुरेंद्र यादव 2024 के लोकसभा चुनाव में सांसद बन गए जिसके बाद इस सीट से राजद ने उनके ही बेटे विश्वनाथ यादव को उतारा और माना जा रहा था कि उपचुनाव में भी यह सीट राजद के खाते में ही जाएगी। दूसरी तरफ इस सीट पर एनडीए ने जदयू की मनोरमा देवी को टिकट दिया। मनोरमा देवी का भी बेलागंज क्षेत्र में अच्छी पकड़ है। मनोरमा देवी की बढ़ती लोकप्रियता को देख राजद ने बेलागंज सीट पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी।
इस सीट पर प्रचार करने के लिए खुद लालू यादव पहुंचे थे। बेलगंज विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार करने के लिए लालू यादव करीब 9 वर्ष बाद गया गए थे। लालू यादव के बेलागंज में चुनाव प्रचार करने के बाद कार्यकर्ताओं का मनोबल भी काफी ऊँचा था बावजूद इसके इस सीट से उनके प्रत्याशी को हार मिली। बेलागंज विधानसभा सीट पर जदयू की मनोरमा देवी ने राजद के सुरेंद्र यादव के एकछत्र राज को समाप्त कर दिया।
कोडरमा की आस भी टूटी
वहीं दूसरी सीट है झारखंड का कोडरमा। कोडरमा विधानसभा सीट पर राजद की तरफ से उम्मीदवार थे सुभाष यादव। सुभाष यादव इस सीट पर नामांकन के लिए जेल से आए थे और उनके हाथों में हथकड़ी लगी थी। सुभाष यादव की उम्मीदवारी पर एनडीए ने महागठबंधन और राजद पर हमले भी जम कर किये थे। बिहार से अलग हो कर झारखंड राज्य के गठन के बाद से 2014 तक इस सीट पर राजद का कब्ज़ा रहा और राजद की अन्नपूर्णा देवी विधायक रही। 2014 और 2019 विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा ने कब्ज़ा किया और डॉ नीरा यादव विधायक रहे।
2024 के विधानसभा चुनाव में राजद ने कोडरमा सीट जीतने के लिए अपना पूरा दमखम लगा दिया था। कोडरमा सीट पर जीत दर्ज करने के लिए राजद के नेताओं ने तो ताबड़तोड़ प्रचार किया ही राजद सुप्रीमो लालू यादव भी चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे थे लेकिन बावजूद इसके कोडरमा सीट पर एक बार फिर भाजपा की डॉ नीरा यादव पर मतदाताओं ने भरोसा जताया।
बता दें कि लालू यादव बीमार होने के बाद से राजनीतिक कार्यक्रमों से अक्सर दूर ही देखे जाते हैं लेकिन विशेष परिस्थिति में वे राजनीतिक कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। खास कर चुनाव प्रचार में भी वे कुछ गिने चुने इक्के दुक्के सीटों पर ही जाते हैं और राजद के कार्यकर्ताओं का मानना है कि लालू यादव अगर चुनाव प्रचार करें तो उम्मीदवार की जीत तय हो जाती है। लेकिन राजद नेताओं और कार्यकर्ताओं के इस उम्मीद पर 2024 के चुनाव में पानी फिर गया। लालू यादव का जादू न तो झारखंड विधानसभा चुनाव में चला और न ही बिहार के उपचुनाव में। ऐसे में अब सवाल उठता है कि क्या लालू यादव का राजनीतिक दबदबा खत्म हो गया?
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