डिजीटल डेस्क : अयोध्या के प्रभु श्री राम के मंदिर में बुधवार को बहुप्रतीक्षित भक्ति और विज्ञान के अद्भुत संगम को देख लोग धन्य हो गए। रामनवमी पर रामलला का यह सूर्य अभिषेक हुआ दोपहर 12.01 बजे शुरू हुआ। यह अभिषेक करीब पांच मिनट तक होता रहा। इस नजारे को दुनिया कौतुक से देखती रही। करीब 75 मिमी का टीका राम के ललाट पर बना। दुनिया इस दृश्य को भक्तिभाव से निहारती रही। यह धर्म और विज्ञान का भी चमत्कारिक मेल रहा। इसके लिए वैज्ञानिकों ने कई महीने से तैयारी की और कई ट्रायल किए थे।
राम मंदिर के दर्पण पर दोपहर 12 बजे पड़ी किरणें
वैज्ञानिकों ने बीते 20 वर्षों में अयोध्या के आकाश में सूर्य की गति अध्ययन किया था। सटीक दिशा आदि का निर्धारण करके मंदिर के ऊपरी तल पर रिफ्लेक्टर और लेंस स्थापित किया। सूर्य रश्मियों को घुमा फिराकर रामलला के ललाट तक पहुंचाया गया। सूर्य की किरणें ऊपरी तल के लेंस पर पड़ीं। उसके बाद तीन लेंस से होती हुई दूसरे तल के मिरर पर आईं। सूर्य तिलक के लिए आईआईटी रुड़की सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ने एक खास ऑप्टोमैकेनिकल सिस्टम तैयार किया था। इसमें मंदिर के तीसरे तल पर लगे दर्पण पर ठीक दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें पड़ीं।
रामलला के ललाट पर लगा 75 मिमी का सूर्य तिलक
दर्पण से 90 डिग्री पर परावर्तित होकर ये किरणें एक पीतल के पाइप में पहुंची। पाइप के छोर पर एक दूसरा दर्पण लगा है जिससे सूर्य किरणें एक बार फिर से परावर्तित होकर पीतल की पाइप के साथ 90 डिग्री पर मुड़ गईं। अंत में सूर्य की किरणें रामलला के ललाट पर 75 मिलीमीटर के टीके के रूप में दैदीप्तिमान होती रहीं और ये लगभग चार मिनट तक टिकी रहीं। दूसरी बार परावर्तित होने के बाद सूर्य किरणें लंबवत दिशा में नीचे की ओर चलीं। किरणों के इस रास्ते में एक के बाद एक तीन लेंस पड़े जिनसे इनकी तीव्रता और बढ़ी। लंबवत पाइप के दूसरे छोर पर लगे एक और दर्पण पर किरणें पड़ीं और 90 डिग्री पर मुड़कर सीधे रामलला के मस्तक पर स्पर्श कीं। इस प्रकार रामलला का सूर्य तिलक हुआ। इसके साथ ही दोपहर 12 बजे से प्रभु राम का जन्मोत्सव मनाया गया।