गया : बिहार के गया में एक ऐसी शख्सियत है, जिन्हें पानी का जुनून है। पानी का जुनून अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे बिहार के लिए है। झारखंड बॉर्डर से लेकर नेपाल बॉर्डर तक इस शख्स ने 500 से अधिक गांवों में 2000 से अधिक चापाकल लगवा दिए। महिलाओं को पानी की तकलीफों को देखकर एक बार जो जुनून चढ़ा तो नि:शुल्क चापाकल लगाने शुरू कर दिए। सबसे पहले अपने क्षेत्र फिर गया और अब पूरे बिहार को पानी की समस्या से उबारने की कड़ी में गया के इस युवक की पहल मील का पत्थर साबित हो रही है। पानी की किल्लत दूर कर लाखों लोगों के जीवन में खुशहाली ला दी है।
विवेक कुमार कल्याण को लोग ‘चापाकल मैन’ के नाम से जानते हैं
गया के बोधगया के रहने वाले विवेक कुमार कल्याण को लोग ‘चापाकल मैन’ के नाम से जानते हैं। चापाकल मैन के नाम से उन्हें इसलिए जाना जाता है। क्योंकि इन्हें जैसे ही खबर मिलती है कि पानी की किस इलाके में दिक्कत हो रही है। उस इलाके में 24 घंटे के भीतर चापाकल खड़ा कर दिया जाता है। यदि एक बार भी इन्हें खराब पड़े चापाकल पर नजर पड़ जाए तो उसकी मरम्मती ऐसी करवाते हैं कि कई सालों तक उस चापाकल को छूना नहीं पड़ता है। जिस स्थान पर खासकर गरीब और महादलित बस्तियों में कभी पानी नहीं रहा करती थी। कई किलोमीटर दूर से पानी की किसी प्रकार जुगत होती थी। किंतु अब ऐसे मुश्किलें घटती जा रही है।

इस बड़े बदलाव का पूरा श्रेय बोधगया के विवेक कुमार कल्याण को जाता है
आपको बता दें कि इस बङे बदलाव का पूरा श्रेय बोधगया के विवेक कुमार कल्याण को जाता है। आज जितनी फोन की घंटियां सरकारी महकमे में बजती होगी, उससे कहीं अधिक घंटियां चापाकल मरम्मती, चापाकल लगाने को लेकर विवेक कल्याण के मोबाइल पर बजती दिखती है। बिहार के हर जिलों में इन्होंने पांच लोगों की टीम तैयार कर रखी है जो पानी जैसी बड़ी समस्या को पल भर में ही दूर कर देने की मुद्दत रखते हैं। आज बिहार के गांव शहरों से ही नहीं बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों के फोन भी विवेक कल्याण को आते हैं। इसकी वजह है कि एक सरकारी चापाकल लगवाने में न जाने कितने प्रक्रिया से गुजारने पड़ते हैं। किंतु विवेक कल्याण जो कि चापाकल मैन के नाम से अब विख्यात हैं। उनके पास फोन की घंटी बजते ही उनकी टीम सक्रिय हो जाती है।

उन्हें तब खुशी होती है, जब कोई चापाकल लगाने की मांग करता है – विवेक कुमार
विवेक कुमार कल्याण बताते हैं कि उन्हें तब खुशी होती है जब कोई चापाकल लगाने की मांग करता है। उनके पहल से उस इलाके गांव में चापाकल लग जाती है तो वहां की खुशी देखते ही बनती है। ग्रामीण ज्यादा से ज्यादा इसका लाभ ले, इसके लिए फोन नंबर भी जारी किए। फेसबुक पर भी संपर्क साधने की बात कहते हैं। क्षेत्र के अनुसार, चापाकल के लिए बोरिंग करवाया जाता है। हीरा बोरिंग, डीजल बोरिंग और हाथ बोरिंग ये अलग-अलग क्षेत्र में विभिन्न भौगिक भौगोलिक स्थिति के अनुसार तीनों तरह से अलग-अलग बोरिंग कराए जाते हैं। पहाड़ी इलाकों में हीरा बोरिंग ही काम आती है। एक चापाकल पर कम से कम 50 हजार का खर्च आता है। 2000 चापाकल लगवा कर विवेक की पहल ने मुरझाए चेहरों पर खुशियों की थाप लगा दी है।
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पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी उनके यहां आ चुके हैं – विवेक कुमार कल्याण
विवेक कुमार कल्याण बताते हैं कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी उनके यहां आ चुके हैं। संस्था के तले जो काम हो रहे हैं, उसकी सराहना भी कर चुके हैं। जब रामनाथ कोविंद बिहार के राज्यपाल थे तब आए और मेरे कार्यों को काफी सराहा था। इसके अलावा वियतनाम के राष्ट्रपति का प्रतिनिधिमंडल भी उनके इस पहल को सराह चुका है। आज उसके जुनून को आगे ले जाने में अमेरिका, वियतनाम और मलेशिया के लोग भी शामिल हैं।

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आशीष कुमार की रिपोर्ट
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