Hazaribagh– राजधानी रांची से करीबन 100 किलोमीटर दूर, सुदूरवर्ती टाटीझरिया पंचायत के मुरकी गांव के महेश मांझी ने वह कर दिखाया जिसके सपने किसी बड़े संस्थान से निकले आईआईटी के लड़के देखते हैं.
सुदूरवर्ती गांवों की जरुरत और संसाधनों को देखते उसने एक ऐसे सिंचाई मशीन का आविष्कार किया है जिसमें न तो पेट्रोल की जरुरत है और न ही बिजली की. बस अपना पैर चलाओ और अपने खेतों में पानी पहुंचाओ.
बताया जाता है कि महेश मांझी के पास एक टुल्लू पंप था, लेकिन वह खराब पड़ा था. पैसे और संसाधन की कमी खेती में आड़े आ रही थी. और खेती की चिंता महेश को खाये जा रही थी, लेकिन खेती तो पानी से ही होगा.
उसके बाद महेश ने देशी जुगाड़ कर खेती के लिए साइकिल का उपयोग करने की ठानी और साइकिल के पैडल से चलने वाला सिंचाई की मशीन बना डाली. बस साइकिल का पैडल मारते रहिए और आपके खेतों में पानी जाता रहेगा. महेश के खेत के ठीक बगल में एक तालाब है, महेश इसी तालाब में साइकिल वाली सिंचाई मशीन लगाकर पैडल मारता है और उसके खेतों में लबालब पानी शरु हो जाता है.
जब महेश से यह पूछा गया कि आपको यह प्रेरणा कहां से मिली तो जबाव मिला वह और भी चौंकाने वाला था, एक ही जबाव भात खाकर हमने यह मशीन बनाई है. वह भी काफी टूटी फूटी हिन्दी में. महेश के पास न तो तन ढंकने के कपड़े है और न ही रहने के घर. लेकिन सपनों की उड़ान में कोई कमी नहीं है.