Rajasthan : 2024 को इतिहास में अब तक का सबसे गर्म साल दर्ज किया गया है। यूरोपीय संघ की कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के अनुसार, यह पहला वर्ष था जब वैश्विक औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया–जो औद्योगिक क्रांति से पहले (1850-1900) के औसत तापमान से काफी ज्यादा था।
इस बढ़ते तापमान का सबसे गहरा असर आने वाली पीढ़ी ‘जनरेशन अल्फा’ पर पड़ेगा। स्टेट ऑफ इंडियाज़ एनवायरनमेंट 2025 रिपोर्ट के अनुसार, यह पीढ़ी एक पूरी तरह से बदले हुए जलवायु परिदृश्य के साथ बढ़ेगी। जहां पिछली पीढ़ियों के लिए जलवायु परिवर्तन एक चेतावनी मात्र था, वहीं जनरेशन अल्फा इसे एक नई वास्तविकता के रूप में अनुभव करेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024 की वैश्विक औसत तापमान वृद्धि 1.60 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गई, जिससे यह साल जलवायु परिवर्तन के युग को स्पष्ट रूप से विभाजित करने वाला वर्ष बन गया।
अनिल अग्रवाल संवाद 2025 में रिपोर्ट जारी
स्टेट ऑफ इंडियाज़ एनवायरनमेंट 2025 रिपोर्ट को राजस्थान के निमली में आयोजित अनिल अग्रवाल संवाद 2025 में जारी किया गया। इस अवसर पर भारत के जी20 शेरपा अमिताभ कांत, योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया, प्रबंधन विशेषज्ञ राज लिबरहान, और सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने इसे संयुक्त रूप से प्रस्तुत किया।
इस संवाद में देशभर से 80 से अधिक पत्रकारों और 20 से ज्यादा विशेषज्ञों ने भाग लिया और भारत की पर्यावरणीय चुनौतियों पर चर्चा की। सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण ने कहा, “2025 की शुरुआत एक मिश्रित तस्वीर पेश कर रही है। अच्छी बात यह है कि अब पर्यावरणीय मुद्दों को अधिक गंभीरता से लिया जा रहा है। 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में स्वच्छ हवा, स्वच्छ यमुना और कचरा प्रबंधन जैसे विषय चुनावी एजेंडा में शामिल रहे। सरकारें पर्यावरण से जुड़े कार्यक्रम लागू कर रही हैं, किसान अपने जल और मिट्टी की रक्षा के लिए जागरूक हो रहे हैं, और उद्योग भी संसाधनों की सुरक्षा को प्राथमिकता दे रहे हैं।”
हालांकि, उन्होंने चिंता जताई कि “बड़ी योजनाओं की कमी, कमजोर संस्थाएं और महंगे तथा गैर-समावेशी पर्यावरण प्रबंधन से हमें अभी भी संघर्ष करना पड़ रहा है।”
“42 भारतीय शहर दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में” – अमिताभ कांत
भारत के जी20 शेरपा अमिताभ कांत ने शहरी प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा,
“अगर दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 42 भारत में हैं, तो यह हमारे नगर निगम प्रशासन की भारी असफलता को दर्शाता है। हमें सूरत और इंदौर जैसे सफल शहरी मॉडल को अपनाना होगा, जहां नगर निकायों ने प्रभावी समाधान विकसित किए हैं।”
“जल संकट और औद्योगिक प्रदूषण को लेकर कड़े कदम उठाने होंगे”–मोंटेक सिंह अहलूवालिया
पूर्व योजना आयोग उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने जल संकट और औद्योगिक प्रदूषण को लेकर चेताया।
“समय के साथ जल संकट और गंभीर होता जाएगा। हमें या तो पूरे जल आपूर्ति तंत्र का राष्ट्रीयकरण कर इसे राशनिंग करना होगा, या फिर जल उपयोग का उचित मूल्य निर्धारण करना होगा। इसके बिना जल संकट को हल करना संभव नहीं होगा।”
औद्योगिक प्रदूषण पर उन्होंने कहा, “चाहे छोटा उद्योग हो या बड़ा, पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। ‘पोल्यूटर पे’ सिद्धांत को सख्ती से लागू करना होगा।”
सीएसई की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में भारत में चरम मौसम घटनाएँ पहले की तुलना में अधिक और तीव्र थीं। वर्ष के पहले नौ महीनों में 255 दिन चरम मौसम घटनाएँ दर्ज की गईं, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 235 दिन और 2022 में 241 दिन था।
बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ा। 2024 में 3.2 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि जलवायु आपदाओं से प्रभावित हुई, जो 2022 की तुलना में 74% अधिक थी।
सीएसई की कार्यक्रम निदेशक किरण पांडेय ने कहा,
“प्रत्येक 1 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के साथ वायुमंडलीय आर्द्रता स्तर 7% बढ़ जाता है। यह स्थिति जलवायु अस्थिरता और चरम मौसम की घटनाओं को और अधिक गंभीर बना देती है।”
क्या हो सकते हैं समाधान?
रिपोर्ट के अनुसार, भारत को नवीकरणीय ऊर्जा, जल संरक्षण, और प्रदूषण नियंत्रण पर बड़े और प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है।
इसके लिए निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:
1. स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा – कोयले और तेल जैसे प्रदूषणकारी ऊर्जा स्रोतों की जगह सौर और पवन ऊर्जा को प्राथमिकता दी जाए।
2. जल संरक्षण नीतियां – जल के दुरुपयोग को रोकने और वर्षा जल संचयन को अनिवार्य बनाने की जरूरत।
3. प्रदूषण नियंत्रण – सख्त नियमों के साथ-साथ नागरिकों को पर्यावरण की रक्षा के लिए जागरूक करना आवश्यक।
4. नगर प्रशासन में सुधार – सफल शहरी मॉडल को अपनाकर प्रदूषण नियंत्रण और कचरा प्रबंधन को बेहतर बनाना।
2024 के रिकॉर्डतोड़ तापमान और बढ़ते जलवायु संकट के बीच, भारत को अब ठोस नीतिगत बदलावों की आवश्यकता है। अगर सही कदम नहीं उठाए गए, तो जनरेशन अल्फा को एक और अधिक गर्म, अस्थिर और संकटग्रस्त दुनिया विरासत में मिलेगी।