रांची: झारखंड में आलू की किल्लत और बढ़ती कीमतों ने आम जनता को परेशान कर दिया है। पश्चिम बंगाल से आलू की आपूर्ति पर रोक के कारण राज्य में आलू की कीमतें आसमान छू रही हैं, जिससे लोगों की जेब पर सीधा असर पड़ा है। इस स्थिति के लिए राज्य सरकार और बंगाल सरकार के बीच सियासी बवाल बढ़ता जा रहा है।
28 नवंबर 2024 को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुईं, जिससे यह संकेत मिला कि दोनों राज्य एक-दूसरे के साथ सहयोग करेंगे। लेकिन अगले ही दिन, ममता बनर्जी ने बंगाल से आलू अन्य राज्यों में भेजने पर रोक लगा दी। इस निर्णय के बाद से झारखंड में आलू की किल्लत बढ़ गई और दामों में तेजी आई।
हेमंत सोरेन ने इस मुद्दे पर ममता से बातचीत करने का आश्वासन दिया और कहा कि अगर जरूरी हुआ, तो वह खुद भी बंगाल सरकार से इस पर बात करेंगे। हालांकि, ममता बनर्जी ने आलू की कीमतों में वृद्धि को मुनाफाखोरी और आलू की अवैध तस्करी से जोड़ा, और बंगाल से आलू अन्य राज्यों में भेजने पर रोक को जारी रखने का फैसला किया।
इस बीच, झारखंड में आलू की खेती को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। कृषि विभाग के भीतर आलू की खेती की जिम्मेदारी किसे दी जाए, इसे लेकर उलझन बनी हुई है। बिरसा एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का कहना है कि झारखंड में आलू की खेती के लिए उपयुक्त भूमि है, लेकिन राज्य के किसान बड़े पैमाने पर इसकी खेती नहीं करते। छोटे पैमाने पर कुछ किसान आलू की खेती कर रहे हैं, लेकिन उन्हें उचित सरकारी मदद और बाजार उपलब्धता की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
हालांकि, कृषि विभाग ने यह स्पष्ट नहीं किया कि आलू की खेती का जिम्मा कौन सा विभाग लेगा। इस पर निर्णय न होने के कारण किसानों को न तो बीजों पर अनुदान मिल पा रहा है और न ही खराब फसल पर मुआवजा मिल रहा है।
झारखंड में आलू की उत्पादन में वृद्धि की उम्मीद जनवरी से फरवरी तक की जा सकती है, लेकिन अगर उत्पादन में कमी आती है तो आलू की कीमतों में और बढ़ोतरी हो सकती है। ऐसे में किसानों को राहत कब मिलेगी, यह बड़ा सवाल बना हुआ है।