रामगढ़: रामगढ़, जहाँ हर गली के कोने में राजनीति की जंग छिड़ी हुई है, वहीं की कोयले की खदानें भी अपने अंदर कई रहस्यों को छुपाए हुए हैं। जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, प्रत्याशियों के चेहरे की चमक से ज्यादा, इन खदानों में दबे रहस्यों की बातें हो रही हैं। क्या रामगढ़ के कोयले की खदानें वोटरों को भी उसी तरह भरपूर ऊर्जा दे पाएंगी, जैसा ये खनन करते वक्त करती हैं?
अब बात करते हैं ममता देवी और सुनीता चौधरी की, जो राजनीति के इस कोयले की खदान में अपने-अपने वोटों की खदानें खोदने में लगी हैं। ममता देवी ने पिछले चुनाव में जीत हासिल की थी, लेकिन क्या इस बार सुनीता चौधरी अपनी खदान से कुछ ज्यादा ही कीमती वोट निकाल पाएंगी?
आजसू और कांग्रेस के बीच चल रही इस तकरार में तो लगता है जैसे हर प्रत्याशी को अपने लिए एक-एक वोट खींचने के लिए खदानों की खुदाई करनी पड़ेगी। कुड़मी समुदाय, आदिवासी वोट, और मुस्लिम जनसंख्या—ये सब मिलकर एक सियासी कोयला बनाते हैं।
सच कहें तो, रामगढ़ की राजनीति भी किसी पुरानी कोयले की खदान जैसी है—जो दिखती है उसके पीछे कई परतें हैं। एक तरफ आजसू, जो कुड़मी वोटों की खदान में पहले से ही खोदाई कर चुकी है, वहीं दूसरी ओर ममता देवी, जिनका वोट बैंक कुछ समय पहले चमकता था, अब उस पर भी धूल जमने लगी है।
कुल मिलाकर, रामगढ़ की राजनीति एक पहेली बन चुकी है। जहां हर कोई अपने पक्ष को मजबूत करने में जुटा है, वहीं जनता के बीच एक गहरी बेचैनी भी है। क्या इस बार ममता देवी फिर से चमत्कार दिखाएंगी, या सुनीता चौधरी उनके खेमे को ध्वस्त कर देंगी?
रामगढ़ की सियासत में रहस्य और रोमांच का कोई अंत नहीं। बस देखना यह है कि इस कोयले की खदान से कौन सा प्रत्याशी अपनी मुट्ठी में सबसे अधिक कीमती वोट समेटने में सफल होता है। चुनावी नतीजे तो केवल समय बताएगा, लेकिन इस खदान के रहस्य अनलॉक करने के लिए हमें अभी और गहराई में खुदाई करनी होगी।
अंत में, यह कहना गलत नहीं होगा कि रामगढ़ की राजनीति की गहराई में छिपे रहस्यों को समझने के लिए हमें एक बार फिर कोयले की खदान की ओर लौटना होगा—क्योंकि असली खजाना तो वहीं दफन है।