Sunday, August 17, 2025

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ग्राम प्रधान से शिक्षा मंत्री तक : रामदास सोरेन नहीं रहे, झारखंड की राजनीति ने खोया अपना समर्पित सिपाही

रांची: झारखंड की राजनीति और समाज के लिए 15 अगस्त की रात गहरे सदमे की खबर लेकर आई। राज्य के शिक्षा मंत्री और झामुमो के वरिष्ठ नेता रामदास सोरेन का निधन हो गया। 62 वर्षीय रामदास सोरेन ने दिल्ली के अपोलो अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। 2 अगस्त को जमशेदपुर स्थित अपने आवास के बाथरूम में गिरने से उनके सिर में गंभीर चोट लगी थी। ब्रेन में ब्लड क्लॉटिंग की वजह से उनकी हालत लगातार नाजुक बनी रही। इलाज के लिए उन्हें एयरलिफ्ट कर दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, लेकिन जीवन की जंग हार गए।

ग्राम प्रधान से शिक्षा मंत्री तक
ग्राम प्रधान से शिक्षा मंत्री तक

साधारण परिवार से उठकर बने बड़ा राजनीतिक चेहरा

रामदास सोरेन का जन्म घाटशिला प्रखंड के खरसती गांव में हुआ था। उनके दादा टेल्को कंपनी में कर्मचारी थे और परिवार वहीं जमशेदपुर के पास घोड़ा बांधा में बस गया। यहीं से रामदास सोरेन ने समाजसेवा और राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की। ग्राम प्रधान के रूप में उन्होंने पहली बार लोगों की समस्याओं को उठाया और लोकप्रियता हासिल की। धीरे-धीरे वे झामुमो से जुड़े और संगठन में सक्रिय भूमिका निभाने लगे।

झामुमो का सच्चा सिपाही

झारखंड आंदोलन के दौरान वे झामुमो के अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं में शामिल रहे। उनका स्वभाव सीधा-सादा और जनता से जुड़ा हुआ था। यही कारण था कि 1990 में उन्हें झामुमो का जिला सचिव और बाद में जिला अध्यक्ष बनाया गया। पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा और संघर्षशील छवि ने उन्हें संगठन में खास पहचान दिलाई।

चुनावी संघर्ष : हार और जीत दोनों देखी

रामदास सोरेन का राजनीतिक जीवन संघर्षों से भरा रहा।

  • 1995 में पहली बार जमशेदपुर पूर्वी से चुनाव लड़ा। रघुवर दास के खिलाफ मैदान में उतरे लेकिन महज 7306 वोट ही मिल पाए।

  • 2004 में नाराज होकर निर्दलीय चुनाव लड़े, झूड़ी छाप पर चुनाव लड़कर दूसरे स्थान पर रहे।

  • 2009 का चुनाव उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। झामुमो उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप बालमुचू को 192 वोट से हराकर पहली बार विधानसभा पहुंचे।

  • 2014 में मोदी लहर का असर पड़ा और वे हार गए।

  • 2019 में शानदार वापसी की और भाजपा के लखन चंद्र मारडी को हराकर दूसरी बार विधायक बने।

  • 2024 में एक बार फिर जीत दर्ज कर तीसरी बार विधानसभा पहुंचे।

मंत्री पद की जिम्मेदारी

30 अगस्त 2024 को उन्होंने पहली बार राज्य मंत्री पद की शपथ ली। हालांकि पिछली सरकार में उनका कार्यकाल महज 2 महीने 14 दिन का रहा, लेकिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के भरोसेमंद सहयोगी होने के नाते उन्हें दोबारा मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। इस बार उन्हें स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की जिम्मेदारी दी गई। वे कोल्हान क्षेत्र में दिवंगत चंपाई सोरेन के बाद झामुमो के सबसे बड़े आदिवासी चेहरों में गिने जाते थे।

संगठन और क्षेत्र की राजनीति में गहरी पकड़

रामदास सोरेन न केवल विधायक और मंत्री रहे बल्कि संगठन के भी एक मजबूत स्तंभ थे। झामुमो कार्यकर्ताओं के बीच उनकी छवि एक सच्चे, ईमानदार और संघर्षशील नेता की थी। घाटशिला क्षेत्र में वे गरीब और आदिवासी समाज की आवाज़ बनकर उभरे। यही कारण था कि पार्टी ने उन्हें कोल्हान की राजनीति में बड़ी जिम्मेदारी दी।

राजनीति और समाज दोनों के लिए अपूरणीय क्षति

रामदास सोरेन के निधन से न केवल झामुमो बल्कि पूरे झारखंड की राजनीति को बड़ा झटका लगा है। उनका जीवन इस बात की मिसाल है कि एक साधारण ग्राम प्रधान भी समर्पण और संघर्ष से राज्य का शिक्षा मंत्री बन सकता है।
वे झामुमो के उन नेताओं में शामिल थे जिन्होंने हमेशा संगठन को प्राथमिकता दी और जनता के मुद्दों को आवाज़ दी।

रामदास सोरेन की यादें झारखंड की राजनीति में हमेशा जीवित रहेंगी। वे उस पीढ़ी के नेता थे जिन्होंने संघर्ष के दम पर अपनी पहचान बनाई और आदिवासी समाज की आवाज़ को बुलंद किया। उनका जाना झामुमो और झारखंड के लिए अपूरणीय क्षति है।

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