गया : बिहार के गया में फिल्म अभिनेता संजय दत्त की नानी जद्दनबाई हुसैन का महल आज भी मौजूूद है। इसकी प्रसिद्धी इतनी है कि इसे देखने न सिर्फ देश के राज्यों से लोग आते हैं बल्कि इनकी कलाकारी की मुरीद रहे पीढी के लोग विदेशों से भी आते हैं। ठुमरी की प्रसिद्ध नृत्यांगना जद्दनबाई हुसैन को कौन नहीं जानता। जिन्होंने नृत्य संगीत के अलावे फिल्म अभिनेत्री और देश की पहली महिला गायिक के रूप में भारतीय हिन्दी सिनेमा के क्षेत्र में अपनी ऐतिहासिक छाप छोड़ी है।
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संजय, नरगिस और जद्दन यह 3 ऐसे नाम हैं जो एक दूसरे से परिवारिक ताल्लुकात रखते हैं
संजय दत्त, नरगिस दत्त और जद्दनबाई हुसैन यह तीन ऐसे नाम हैं जो एक दूसरे से परिवारिक ताल्लुकात रखते हैं। हिंदी सिनेमा की प्रसिद्ध अभिनेत्री नरगिस की मां जद्दनबाई थी। वहीं, सिने स्टार संजय दत्त भी कई बार कह चुके हैं कि उन्हें गया से बड़ा लगाव है। गया में उनका ननिहाल भी है। अपनी नानी जद्दन बाई के महल को देखने संजय दत्त गया डायट को भी आ चुके हैं। हालांकि, गया डायट में रहे नानी जद्दन बाई के महल को संरक्षित करने की दिशा में उन्होंने ठोस प्रयास नहीं किया। नतीजतन आज जद्दनबाई का महल जर्जर और जीर्ण शीर्ण हालत में आ गया है। यही स्थिति बनी रही तो महल को पूरी तरह से ध्वस्त करने की नौबत आ सकती है।
जद्दनबाई का महल गया शहर के पंचायती अखाड़ा में डायट परिसर के बीचों बीच धरोहर के रूप में है
जद्दनबाई का महल गया शहर के पंचायती अखाड़ा में डायट परिसर के बीचों बीच धरोहर के रूप में है, जिसे संरक्षित करने की जरूरत है। कुछ लोग जद्दन बाई हुसैन के महल का जीर्णोद्धार कर संगीत विद्यालय खोलने की बात करते हैं, ताकि महल का अस्तित्व भी बना रहे। वहीं, कुछ इस धरोहर को संरक्षित कर रखे जाने की बात बताते हैं। सरकार द्वारा नए योजना के तहत करीब 9.5 करोड़ रुपए की राशि से सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के तहत शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए कई भवन बनाने की रूपरेखा भी तैयार कर ली गई है। इसके पहले भी महल के चारों ओर कई नए भवनों का निर्माण हो चुका है। ताबड़तोड़ निर्माण को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इस महल का अस्तित्व अब खतरे में आ गया है।
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जद्दनबाई हुसैन का जन्म यूपी के बनारस में वर्ष 1892 में हुआ था
फिल्म अभिनेता संजय दत्त की नानी जद्दनबाई हुसैन का जन्म यूपी के बनारस में वर्ष 1892 में हुआ था। बनारस में जन्म लेने वाली जद्दनबाई हुसैन की प्रसिद्धी का बड़ा संबंध बिहार के गया से रहा। जानकार बताते हैं कि उनकी सफलता और दबदबे की पटकथा पूरी तरह से बिहार के गया से ही जुड़ी हुई है। तब गया कोलकाता, बनारस और मुंबई की तरह नृत्य संगीत का बड़ा केंद्र होता था। गया आने के बाद जद्दनबाई गया घराने से जुड़ी थी। गया घराने से जुड़ने के बाद वह हर क्षेत्र में पारंगत होती चली गई। गया का जहां आज पंचायती अखाड़ा है वह कभी दौलताबाद नाम से राजवाड़ा था। उस रजवाड़े के जफर नवाब संगीत प्रेमी थे। जद्दनबाई को जफर नवाब का प्रश्रय मिला। जफर नवाब इतने बड़े संगीत प्रेमी थे कि उन्होंने अपनी हवेली के बीच में जद्दनबाई के लिए एक हवेली दे दी। जहां आज वर्तमान में डायट के भवन मौजूद हैं और इसके बीच आज भी जद्दनबाई का महल खड़ा है।
बनारस, कोलकाता, मुंबई के अलावा गया नृत्य संगीत का बड़ा केंद्र होता था
उस समय बनारस, कोलकाता और मुंबई के अलावा गया नृत्य संगीत का बड़ा केंद्र होता था। जद्दनबाई गया घराना से जुड़ी थी। जद्दनबाई के महल में उनके ठुमरी गायन नृत्य के कद्र करने वालों में रईस और प्रसिद्ध राजा रजवाड़े के वंशज होते थे। जद्दन बाई की ठुमरी गायन के हर कोई मुरीद थे। गया से ही जद्दनबाई के कोलकाता मुंबई के रास्ते खुले और फिर नृत्य संगीत ही नहीं बल्कि अभिनेत्री के रूप में भी चर्चित हुई। वह पहली महिला संगीतकार के रूप में जानी गई। आज जद्दनबाई का महल जिस हालत में है कभी वहां जद्दन बाई के ठुमरी नृत्य और संगीत की गूंज हुआ करती थी। आज इस धरोहर भी अस्तित्व खोने का कगार पर पहुंचता जा रहा है।
वर्ष 1986 से महल को देख रही है और देखभाल भी कर रही है – उर्मिला देवी
डायट में चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के रूप में काम करने वाली उर्मिला देवी बताती हैं कि वर्ष 1986 से महल को देख रही है और देखभाल भी कर रही है। तब यह महल काफी सुंदर था। लेकिन धीरे-धीरे इसकी हालत जीर्ण शीर्ण हो गई है। इसे बचा लिया जाता तो अच्छा होता। जद्दनबाई के इस महल में राजा रजवाड़े उनके ठुमरी गायन संगीत को देखने सुनने आते थे। आज इस महल को देखने विदेश से भी लोग आते हैं।
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आशीष कुमार की रिपोर्ट