व्यंग्य विशेष: हे सज्जन, मदिरा मत रोको! नहीं तो झारखंड में सूख जाएगा जीवनरस!

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रांची: हे सज्जन, हे ठेकेदारों और सप्लायर्स के देवता! कृपया रुकिए नहीं, ठहरिए नहीं, बल्कि इस राज्य के प्यासे कंठों तक शीघ्रता से पहुंचाइए वह जीवनदायी द्रव्य – जिसे आप ‘शराब’ कहते हैं और हम ‘शांतिदूत’।

अभी जब झारखंड की सड़कों पर मानसून की पहली फुहारें पड़ी हैं, तब प्रदेश के कोने-कोने में यह डर फैल रहा है कि कहीं इस बारिश के साथ-साथ बोतलों की सप्लाई भी न थम जाए। ऐसे में जब खबर आई कि शराब कंपनियों ने बकाया पैसे के चलते आपूर्ति धीमी कर दी है और भविष्य में बंद भी कर सकते हैं, तो मदिरा प्रेमियों के दिलों की धड़कनें Old Monk की तरह धीमी पड़ गईं।

परंतु शुक्र मनाइए हमारे राज्य के मद्यरक्षक, उत्पाद एवं मद्य निषेध मंत्री योगेंद्र प्रसाद जी का, जिन्होंने कंपनियों से करुणा और कृपा की गुहार लगाते हुए उन्हें बैठक में आमंत्रित किया और कहा – “हे ठेकेदारों! हे वेंडरों! हे सप्लाई चेन के महारथियों! आपूर्ति मत रोको, भुगतान शीघ्र होगा।”

कंपनियों को मार्च और अप्रैल महीने का लगभग 200 करोड़ रुपए बकाया है। सोचिए, इतने में झारखंड के हर मोहल्ले में एक-एक ठेका और हर गली में एक बार खुल सकता है। लेकिन मंत्री जी ने बताया कि पूर्व में अधिकारी की अनुपस्थिति से यह असुविधा हुई, अब पदस्थापन हो चुकी है, अब काम में ‘तेजी’ आएगी – और साथ में ‘नशा’ भी।

बैठक में 80 से 90 फीसदी लोकप्रिय ब्रांडों के वितरकों ने सहमति जताई कि वे राज्य की शराब आपूर्ति नहीं रोकेंगे। इसका सीधा अर्थ यह है कि झारखंड की शामें अब भी गुलज़ार रहेंगी, और हमारे जाम, सरकारी खजाने की आमदनी के साथ-साथ, जनता के तनाव को भी बहाएंगे।

लेकिन प्रिय पाठकों, ज़रा कल्पना कीजिए अगर आपूर्ति रुक जाती! क्या होता अगर राज्य की विशेष शामें चाय और बिस्कुट पर सिमट जातीं? जिन गलियों से “एक पाव दे दीजिए” की पुकार आती थी, वहां अब “एक अदद हाजमोला है?” गूंजती। क्या यह संस्कृति, यह परंपरा का अपमान न होता?

इसलिए मंत्री जी का यह आग्रह अब किसी सरकारी बयान से बढ़कर एक संवेदनशील कविता बन गया है – “हे सज्जन आप हमारे मदिरा की आपूर्ति न रोके,

हमारे राज्य के मदिरा प्रेमी को व्यथा न दें,
आपका बकाया शीघ्र चुकाया जाएगा,
कृपया हमारी पीड़ा समझें और बोतलें भेजें।”

तो आइए, एक जाम उस मंत्री जी के नाम हो जाए, जिनकी कृपा से प्रदेश में बोतल की धार अब भी बहती रहेगी। और कंपनियों से एक अंतिम निवेदन –
“पैसा बाद में, पर प्याला अभी – यही है जनता की सच्ची फरियाद!”

नोट: यह लेख पूरी तरह व्यंग्य है, इसका उद्देश्य किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं बल्कि शराब नीति से जुड़ी व्यवस्था पर हल्के-फुल्के शब्दों में विचार प्रस्तुत करना है।

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