रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव में पहला चरण मात्र एक हफ्ते दूर है और सूबे की राजनीति इस समय परफेक्ट क्लाइमेक्स की ओर बढ़ रही है। हर तरफ घोषणाओं की झड़ी लग गई है, और तो और, गारंटी पत्र और संकल्प पत्र के बीच सियासी जंग छिड़ गई है। दोनों पक्ष अपने-अपने वादों की झांकी में जनता को ललचा रहे हैं, परंतु क्या ये सभी वादे सच में पूरे होंगे? सवाल यही है।
पहले हम बात करते हैं इंडिया एलायस की, जो एनडीए से भी ज्यादा लुभावने वादों के साथ सामने आया। सात गारंटी का बड़बोला वादा करने वाले इन महाशयोंने अपने घोषणा पत्र को जनता के ‘संपत्ति’ बनाने का दावा किया। लेकिन भाजपा तो इसको छलावा बता रही है और कह रही है कि यह ‘झूठ का पुलिंदा’ है। भाजपा के अनुसार, सिर्फ मोदी की गारंटी ही सही है—क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी पर हर किसी को भरोसा है। लेकिन फिर सवाल यह उठता है, क्या मोदी की गारंटी से रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य की समस्याएं सुलझ सकती हैं?
बीजेपी ने अपनी ओर से हेमंत सरकार को याद दिलाया कि कैसे 2019 में किए गए 5 लाख नौकरियों के वादे आज भी अधूरे हैं। वहीं, आरजेडी के जयप्रकाश यादव ने भाजपा के संकल्प पत्र को ‘नकली’ बताते हुए तंज कसा कि भाजपा का चुनाव चिन्ह ही नकली है, और कमल के फूल से कभी खुशबू नहीं आ सकती। ऐसे में झारखंड की जनता के सामने सवाल खड़ा हो जाता है कि कौन सा ‘गुलाब’ सचमुच महक रहा है?
इसी बीच, चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी आरवी भी अपनी दावेदारी पेश कर रही है। केंद्रीय मंत्री के साथ सांसद राजेश वर्मा ने हेमंत सरकार को ‘ठग’ और राज्य में भ्रष्टाचार का चैंपियन बताया। अब देखिए, एक तरफ पार्टी कह रही है कि भ्रष्टाचार पूरी तरह से बढ़ चुका है, दूसरी ओर, दूसरी पार्टियां आरोप-प्रत्यारोप के खेल में व्यस्त हैं। लेकिन अंत में जनता ही फैसला करेगी कि इस चुनावी खिचड़ी में किसका ‘धोखा’ असली है और किसका वादा झूठा।
दरअसल, अब यह सब सिर्फ शब्दों का खेल बनकर रह गया है। घोषणा पत्र बनाम संकल्प पत्र, गारंटी बनाम झूठ, एक ओर चमकती हुई राजनीति और दूसरी ओर दरकते हुए वादे। और इस तमाम सियासी शोर में झारखंड की जनता शायद यही सोच रही होगी, “किसकी गारंटी को हम सच मानें?”