Munger: बिहार समेत पूरे देश और दुनिया में लोक आस्था का महापर्व चार दिवसीय छठ पर्व की शुरुआत होने ही वाली है। छठ पर्व की धूम पूरे देश और दुनिया में है। छठ पर्व की तैयारी पूरे जोरों पर है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि छठ पर्व की शुरुआत कब और कैसे हुई थी? दरअसल ऐसी मान्यता है कि बिहार में छठ पूजा का नाता त्रेतायुग में मां सीता तो द्वापर युग में दानवीर कर्ण से जुड़ा है।
माता सीता और कर्ण ने जिन दो मंदिरों के पास पूजा अर्चना की थी वहां की स्थिति आज पूरी तरह से बदहाल है। मुंगेर के दियारा क्षेत्र स्थित सीता चरण मंदिर है जो सालों भर कीचड़ और पानी से गिरा रहता है। छठ पूजा के दौरान स्थानीय लोग के साथ मिलकर प्रशासन जैसे तैसे यहां पूजा को लेकर व्यवस्था करते हैं इस वर्ष कल 5 नवंबर से नहाए खाए के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ की शुरुआत हो रही है। 6 नवंबर को खरना होगा, फिर 7 नवंबर को छठवर्ती डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देंगे, और 8 नवंबर को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ पर्व समाप्त हो जायेगा।
सीता चरण मंदिर के पास हर साल हजारों लोग छठ करने के लिए आते हैं। गंगा के दियारा इलाके में स्थित इस मंदिर तक जाने का रास्ता बहुत ही कठिन है। इस साल आई बाढ़ ने आने-जाने की परेशानी और बढ़ा दी है। राजधानी पटना से करीब 185 किलोमीटर दूर सीता चरण मंदिर जाने के लिए मुंगेर मुख्यालय के बबुआ गंगा घाट से नाव के सहारे गंगा नदी पार करनी पड़ती है। इसके बाद दियारा में करीब 3 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।
जब गंगा में पानी ज्यादा रहता है तब यह इलाका पूरी तरह से डूबा रहता है। लोग नाव के माध्यम से सीधे मंदिर के पहले फ्लोर तक पहुंच सकते हैं। सीताचरण मंदिर अभी पूरी तरह से कीचड़ से घिरा हुआ है।
छठ पर्व को लेकर धार्मिक एवं पौराणिक मान्यता है कि रामायण काल में मुंगेर के गंगा नदी के तट पर मां सीता ने पहली बार छठ व्रत किया था। इसके बाद से छठ व्रत मनाया जाने लगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां सीता ने सबसे पहले मुंगेर के कष्टहरनी गंगा घाट पर छठ व्रत किया था। जिस स्थान पर मां सीता ने छठ पूजा की थी बबुआ गंगा घाट के पश्चिमी तट पर स्थित मंदिर में माता का चरण पदचिह्न और सूप का निशान एक विशाल पत्थर पर अंकित है। यह पत्थर 250 मीटर लंबा 30 मीटर चौड़ा है। यहां पर एक छोटा सा मंदिर भी बना हुआ है।
धर्म के जानकार पंडित का कहना है कि ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां सीता ने 6 दिनों तक रहकर छठ पूजा की थी। जब भगवान राम 14 साल का बनवास काटकर अयोध्या वापस लौटे थे तो उन पर ब्राह्मण हत्या का पाप लग गया था। क्योंकि रावण ब्राह्मण कुल से आते थे। इस आप से मुक्ति पाने के लिए ऋषि मुनियों के आदेश पर राजा राम ने राजसूय यज्ञ कराने का फैसला किया। इसके बाद मुद्गल ऋषि को आमंत्रित किया गया था लेकिन मुद्गल ऋषि ने अयोध्या आने से पूर्व भगवान राम और सीता को अपने आश्रम बुलाया और उन्हें सूर्य की उपासना करने की सलाह दी थी।
मां सीता के मुंगेर में छठ व्रत करने का उल्लेख आनंद रामायण के पृष्ठ संख्या 33 से 36 में भी है जहां मां सीता ने व्रत किया वहां माता सीता के दोनों चरणों के निशान मौजूद हैं। इसके अलावा शीलापठ सूप, डाला और लोटा के निशान हैं। मंदिर का गर्भगृह साल में 6 महीने तक गंगा के गर्भ में समाया रहता है। इस मंदिर को सीता चरण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर 1974 में बनकर तैयार हुआ था जहां दूर-दूर से लोग छठ व्रत करने के लिए आते हैं। मान्यता है कि छठ व्रत करने से लोगों के सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
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मुंगेर से मिथुन कुमार की रिपोर्ट
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