रांची: झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र 28 जुलाई से शुरू होने की तैयारियां हो रही हैं। यहां अब तक सदन बिना नेता प्रतिपक्ष के चल रहा है, क्योंकि बाबूलाल मरांडी पर दलबदल मामले में स्पीकर ट्रिब्यूनल का फैसला आना बाकी है।
मामले को लेकर हाईकोर्ट में जारी हुए सुनवाई में दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं ने अपनी दलीलें पेश की।
विधानसभा की ओर से अधिवक्ता अनिल कुमार ने दायर शपथ पत्र में बताया कि जब तक दलबदल मामले में स्पीकर के ट्रिब्यूनल से फैसला नहीं आता, तब तक हाईकोर्ट किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भी पक्ष रखा और कहा कि संविधान के अनुच्छेद 212(1)(2) के तहत कोर्ट को विधानसभा अध्यक्ष की कार्रवाई में किसी तरह के हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है।
मामले के बारे में जानकारी के अनुसार, जेवीएम के विधायक बाबूलाल मरांडी ने अपने पार्टी भाजपा में विलय कर लिया था और इसके बाद से ही दलबदल मामला चल रहा है। विलय को मान्यता देने के बाद भी उन्हें नेता प्रतिपक्ष की मान्यता नहीं मिली है, जिसके कारण कई संवैधानिक संस्थाओं में पद रिक्त हैं और उन्हें भरने की कवायद शुरू कर दी गई है।
हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करने के बाद खास बात है कि इस मामले को लेकर अभी तक स्पीकर के ट्रिब्यूनल से फैसला आना बाकी है, जिससे संवैधानिक संस्थाओं में रिक्त पदों को भरने में अटकाव आ गया है। अगली सुनवाई 30 अगस्त को होगी, जिसमें महाधिवक्ता राजीव रंजन भी शामिल होंगे।
नेता प्रतिपक्ष ने भाजपा से नाम मांगा था लेकिन उन्हें नहीं दिया गया, जिससे विधानसभा में उनके साथ जुड़े कुछ संवैधानिक संस्थाएं डिफंक्ड हो गईं।
इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने संविधान के अनुच्छेद 212(1)(2) के तहत कोर्ट को विधानसभा अध्यक्ष की कार्रवाई में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है यह बताया।
सरकार और विधानसभा के सचिव से पूछे जाने वाले सवालों के जवाब देने के बाद खंडपीठ ने सुनवाई की अगली तारीख 30 अगस्त को तय कर दी है।