बोकारोः जी हां चौकिए मत! बोकारो का एक ऐसा गांव जहां पानी की घोर किल्लत है. ग्रामीण एक घूंट पानी के लिए तरस रहे हैं. जो ग्रामीण रैयत अपनी जमीन बीएसएल और रेलवे तथा सेल को दी. उसी की सुद लेने वाला ना बीएसएल है ना रेलवे है और ना ही सरकार है. इस गांव को आज तक पंचायत में भी शामिल नहीं किया गया है. लिहाजा ग्रामीण सरकारी लाभ से वंचित हैं. पंचायत एवं सेल के सीएसआर से वंचित बनसिमली गांव के बाउरी टोला तथा मिर्धा पाड़ा के लोग आजादी के इतने साल बाद आज भी विस्थापित होने का दंश झेल रहे है. यह स्थिति तब है जब देश में अमृत काल का दौर चल रहा है. वहीं दूसरी और गरगा डैम के लिए जमीन देने वाले विस्थापित की प्यास नहीं बुझ रही है.
जान जोखिम में डालकर पानी लाने जाती हैं महिलाएं
दोनों टोला की दर्जनों महिलाएं पानी के लिए रोजाना करीब एक से डेढ़ किलोमीटर की दूरी सफर करती हैं. दुर्गम पथरीली रास्ते से होकर आना जाना आसान नहीं है. क्या गर्मी क्या बरसात हर मौसम मे रोज का यही कहानी है. ग्रामीण कहते हैं इस गांव की आबादी लगभग चार-पांच हजार है. जिसमें बांउरी टोला मे सवा सौ की आबादी है. लेकिन पानी के लिए सरकारी हैंड पंप नहीं है. इक्का दुक्का घर मे चापाकल-कुआं है लेकिन पानी पीने योग नहीं है. रेलवे फाटक के निचले हिस्से मे बना गरगा डैम से निकली हुई नदी से पानी लेने के लिए दर्जनो महिलाएं हर दिन जान जोखीम मे डाल करीब 10-15 फीट नीचे उतरने के लिए पथरीली रास्तों से गुजरना पड़ता है. जो जोखिम भरा है. इस रास्ते वनसिमली की महिलाएं पानी लाती हैं. महिलाओं के मुताबिक हम जान जोखिम में डालकर पानी लाने जाते हैं.
जिला प्रशासन को कई बार समस्या से कराया अवगत
ग्रामीणों का कहना है पानी की समस्या को लेकर कई बार जिला प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधि के सामने आवाज उठाई गई है. लेकिन आज तक इनका कोई सुद नही लिया गया. चुनाव आते ही बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं. लेकिन चंद दिनों बाद स्थिति जस की तस रह जाती है. उन्होंने कहा कि वोट के समय विधायक आते हैं और बड़े-बड़े वादे कर चले जाते हैं. लेकिन आज तक कोई सुविधा नहीं मिली. दो बार विधायक रहे आज तक गांव में देखने तक नहीं आए वोट के समय आते हैं वोट मांग कर चले जाते हैं.
रिपोर्टः चुमन कुमार