गयाजी : विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला का आज दूसरा दिन है। इस दिन का विशेष महत्व प्रेतशिला से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि प्रेतशिला पर पिंडदान करने से अकाल मृत्यु प्राप्त आत्माओं को मुक्ति मिलती है और वे प्रेत योनि से निकलकर स्वर्ग जाते हैं। इसी वजह से आज सुबह से ही प्रेतशिला परिसर में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही। धार्मिक परंपरा के अनुसार, प्रेतशिला स्थित ब्रह्मा कुंड सरोवर में स्नान करने के बाद पिंडदान किया जाता है।
पंडितों का कहना है कि यह अनुष्ठान आत्माओं को न केवल प्रेत योनि से मुक्त करता है
कहा जाता है कि जिनकी मृत्यु समय से पहले, दुर्घटनावश, आत्महत्या, हत्या या अन्य किसी अप्राकृतिक कारण से होती है, वे प्रेत योनि में चले जाते हैं। उनकी आत्मा अशांत रहती है और मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो पाती। ऐसी आत्माओं की शांति और मुक्ति के लिए प्रेतशिला की पिंड वेदी पर पिंडदान करने का विधान है। पंडितों का कहना है कि यह अनुष्ठान आत्माओं को न केवल प्रेत योनि से मुक्त करता है, बल्कि उनके लिए स्वर्ग के द्वार भी खोल देता है। यही कारण है कि हर साल पितृपक्ष के दौरान हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विधिवत पिंडदान करते हैं। आज के मौके पर छत्तीसगढ़ से आए रिटायर्ड डीआईजी अपने तीन परिवारों के साथ प्रेतशिला पहुंचे। उन्होंने अपने पूर्वजों और अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों के लिए पिंडदान किया।
गयाजी का महत्व सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश और दुनिया के लोग इसके बारे में जानते हैं
उन्होंने बताया कि गयाजी का महत्व सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश और दुनिया के लोग इसके बारे में जानते हैं। उन्होंने कहा कि गयाजी आने से आत्मा को शांति मिलती है। हमारे बुजुर्ग भी हमेशा कहते आए हैं कि पूर्वजों की मुक्ति के लिए यहां पिंडदान करना आवश्यक है। स्थानीय पंडितों के अनुसार, प्रेतशिला पर पिंडदान करना पितरों के उद्धार का सबसे खास माध्यम माना जाता है। यहां पहुंचने वाले हर परिवार का यही विश्वास होता है कि उनके पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होगा और परिवार पर पितरों का आशीर्वाद बना रहेगा।
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पितृपक्ष मेले के दूसरे दिन श्रद्धालुओं की भीड़ से प्रेतशिला परिसर गूंजता रहा
पितृपक्ष मेले के दूसरे दिन श्रद्धालुओं की भीड़ से प्रेतशिला परिसर गूंजता रहा। भजन-कीर्तन और वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच जब लोग पिंडदान करते हैं तो पूरा वातावरण आस्था और श्रद्धा से भर उठता है। गयाजी की इस परंपरा को देखने और समझने के लिए देश-विदेश से पर्यटक भी यहां आते हैं। गया का यह अद्भुत दृश्य हर साल यह संदेश देता है कि पूर्वजों की स्मृति और उनके उद्धार के लिए श्राद्ध और पिंडदान की परंपरा भारतीय संस्कृति की आत्मा है।
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आशीष कुमार की रिपोर्ट
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