डिजिटल डेस्क : महाकुंभ 2025 में नागा साधु बनने वालों की धर्मध्वजा के नीचे होगी तपस्या। महाकुंभ 2025 में शुक्रवार से शूरू हुई नागा साधुओं की प्रक्रिया ने सभी का ध्यान आकृष्ट किया है। यह प्रक्रिया इस समय सुर्खियों में है लेकिन इसमें नागा साधु बनने के लिए पर्ची कटाने वालों को कड़ी परीक्षा प्रक्रिया के साथ कुछ कठिन तपस्या संस्कारों से भी गुजरना है।
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इसके तहत गंगा में 108 डुबकियां लगाने के अलावा क्षौर कर्म, विजय हवन और लंगोट त्यागने के अलावा विशेष तपस्या संस्कार के क्रम से गुजरना है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, नागा बनने के लिए प्रशिक्षु को आज यानी शुक्रवार 17 जनवरी से धर्म ध्वजा के नीचे तपस्या करनी होगी।
इसी के साथ संस्कार की शुरुआत होगी। फिर 24 घंटे तक बिना भोजन-पानी के यह तपस्या करनी होगी। उसके बाद अखाड़ा कोतवाल के साथ सभी को गंगा तट पर ले जाया जाएगा।
गुरू काटेंगे प्रशिक्षु की चोटी, फिर शुरू होगी आखिरी प्रक्रिया…
बताया जा रहा है कि नागा बनाने के दौरान दो क्रियाएं सबसे अहम मानी जाती हैं। पहली अहम क्रिया चोटी काटने की होती है। शिष्य का पिंडदान कराने के बाद गुरु उसके सामाजिक बंधनों को चोटी के माध्यम से काटते हैं। चोटी कटने के बाद दोबारा कोई नागा सामाजिक जीवन में नहीं लौट सकता। सामाजिक जीवन में लौटने के उसके दरवाजे बंद हो जाते हैं।

गुरु की आज्ञा ही उनके लिए आखिरी होती है। दूसरी अहम क्रिया तंग तोड़ की होती है। यह क्रिया गुरु खुद से न करके दूसरे नागा से करवाते हैं। तंग तोड़ नागा बनाने की सबसे आखिरी क्रिया होती है। संस्कार पूरा होने के बाद सभी नवदीक्षित नागा मौनी अमावस्या पर अखाड़े के साथ अपना पहला अमृत स्नान करेंगे।

महाकुंभ 2025 में जूना अखाड़े में सबसे ज्यादा नागा साधु बनाए जाने की है तैयारी
नागा बनाने की शुरुआत सबसे पहले जूना अखाड़े से हो रही है। शुक्रवार को धर्मध्वजा के नीचे तपस्या के साथ यह आरंभ हो चली है। दो दिन के बाद नस तोड़ अथवा तंगतोड़ क्रिया के साथ नागा संन्यासियों की दीक्षा पूरी होगी। जूना के बाद निरंजनी अखाड़े में भी नागा संन्यासी बनाए जाएंगे।
महानिर्वाणी अखाड़े की तिथि अभी तय नहीं है लेकिन, महंत यमुना पुरी का कहना है कि मौनी आमावस्या से पहले यह संस्कार पूरे कर लिए जाएंगे। इसी तरह उदासीन अखाड़ों में भी यह क्रिया होगी। महंत रमेश गिरि का कहना है महाकुंभ में सभी अखाड़े 1800 से अधिक साधुओं को नागा बनाएंगे. इनमें सर्वाधिक जूना अखाड़े से नागा बनाए जाएंगे।

महाकुंभ में पधारे अखाड़े अपने विस्तार कार्यक्रम के तहत नागा प्रशिक्षुओं की कर रहे भर्ती…
बताया जा रहा है कि अखाड़ों के लिए कुंभ न सिर्फ अमृत स्नान का अवसर होता है बल्कि उनके विस्तार का भी मौका होता है। खासतौर से महाकुंभ में ही नए नागा संन्यासियों की दीक्षा होती है। प्रशिक्षु साधुओं के लिए प्रयागराज कुंभ की नागा दीक्षा अहम होती है। असल में नागा सन्यासी ही अखाड़ों की सभी अहम जिम्मेदारी संभालते हैं।

इनमें प्रशासनिक समेत आर्थिक दायित्व शामिल हैं। इसे संभालने के लिए पहली शर्त साधु का नागा होना होता है। अखाड़े से जुड़ा कोई साधु अगर नागा नहीं है तो उसे न कोई अहम पद दिया जाएगा न उसे किसी मठ अथवा सपंत्ति के रखरखाव का काम सौंपा जाएगा।
नागा बनने के बाद ही उनको महामंत्री, सचिव, श्रीमहंत, महंत, थानापति, कोतवाल, पुजारी पदों पर तैनात किया जाता है। इस वजह से भी अखाड़े में शामिल होने वाले साधु निश्चित तौर पर नागा संस्कार करवाते हैं। अखाड़ा पदाधिकारियों का कहना है कि नागा साधु बनाने से पहले आंतरिक कमेटी जांच पड़ताल भी करती है। इसके बाद ही नागा बनाया जाता है।