चाय के दुख को कौन समझेगा

चाय के दुख को कौन समझेगा
चाय दिवस पर विशेष

इस कलयुग में चाय का अपना दुख है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि चाय के दुख को कौन सुनेगा कौन समझेगा।

चाय जब दुखी होती है तो एक देश की अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो सकती है। (श्रीलंका की हालत के संदर्भ में)।

एक चाय की प्याली घर में पति और पत्नी में झगड़ा करा सकती है, ऑफिस में सहयोगियों को दुश्मन बना सकती है, बहुत ताकत है एक चाय की प्याली में….. पर ताकतवर होने के बाद भी आज चाय की प्याली दुखी है और कमजोर है‌।कितना काम बढ़ गया है चाय की प्याली का देश की अर्थव्यवस्था संभालना

पति-पत्नी के बीच प्यार बनाना, काम के तले बोझ में दबे ऑफिस में कर्मचारियों को तरो ताजा करना,ऑफिस में सहयोगियों के बीच प्यार बनाना, तो प्यार करने वालों के बीच दूरियां कम करना यह सभी काम एक चाय की प्याली करती है, लेकिन चाय के लिए आज कौन सोचता है कितनी दुखी है वह, चाय का दुख सबसे बड़ा यह है कि अब उसे सब भूलते जा रहे हैं और कॉफी और कोलड्रींक की तरफ जा रहे हैं।

लेकिन जो मजा चाय की चुस्की में है वह इनमें कहां, कुछ दिनों पहले चाय दुखी हुई तो श्रीलंका बर्बाद हो गया।

एक घर में चाय दुखी हुई तो पति के माथे का बाल गायब हो गया, एक ऑफिस में चाय दुखी हुई तो दो सहयोगी कट्टर दुश्मन बन गए।

इसलिए आज के दौर में सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि चाय को दुखी ना करें और चाय का सेवन शुद्ध आत्मा के साथ करें यही आज चाय दिवस पर परम ज्ञान है।

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