आज हम बात करेंगे बिहार की किशनगंज लोकसभा सीट की जहां मोदी लहर का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और बीते 3 टर्म से किशनगंज कांग्रेस की झोली में गई.
बिहार की किशनगंज लोकसभा सीट में मुस्लिम वोटरों की आबादी सबसे अधिक है. किशनगंज जिला पश्चिम बंगाल, नेपाल और बंग्लादेश के बॉर्डर से जुड़ा हुआ है. किशनगंज लोकसभा सीमांचल के अंतर्गत आता है. यहां करीब 68 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं.
इस सीट का इतिहास दिलचस्प रहा है .किशनगंज सीट से भाजपा आजतक सिर्फ एक बार ही जीत हासिल कर पाई है ,16 बार हुए चुनाव में 15 बार यहां से मुस्लिम कैंडिडेट ही जीते हैं केवल 1 हिंदू प्रत्याशी अब तक सांसद बने हैं.
इस बार किशनगंज में त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना जताई जा रही है.
किशनगंज में जदयू- कांग्रेस और AIMIM के बीच टक्कर होगी. तीनों पार्टियों ने अपने-अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है.
AIMIM ने पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान को मैदान में उतारा है वहीं कांग्रेस ने वर्तमान सांसद डॉ. मोहम्मद जावेद को एक बार फिर से किशनगंज में अपना प्रत्याशी बनाया है. मोहम्मद जावेद ने मोदी लहर में भी किशनगंज में पंजे का परचम लहराया था.
वहीं एनडीए की तरफ से यह सीट जदयू के पास गई , एनडीए की तरफ से 2020 के विधानसभा चुनाव में कोचाधामन विधानसभा क्षेत्र के जदयू प्रत्याशी मुजाहिद आलम अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
किशनगंज लोकसभा के अंतर्गत किशनगंज जिला, पूर्णिया जिले की विधानसभा सीटे आती है. यहां 6 विधानसभा की सीटें हैं. जिसमें बहादुरगंज, ठाकुरगंज, किशनगंज, कोचाधामन, अमौर और बायसी हैं.
इन 6 विधानसभा की सीटों पर राजद का दबदबा है. 4 सीटें राजद के पास है वहीं 1 सीट कंग्रेस और 1 सीट AIMIM के पास है.
बहादुरगंज में मोहम्मद अंजार नईमी राजद के विधायक हैं.हालांकि इन्होंने AIMIM के टिकट से जीता लेकिन फिर राजद में शामिल हो गए.
ठाकुरगंज से सउद आलम भी राजद के टिकट से जीते हैं.
किशनगंज विधानसभा पर कांग्रेस ने कब्जा किया है और इजहारुल हुसैन जीते.
कोचाधामन से राजद विधायक मुहम्मद इजहार असफी हैं. इन्होंने AIMIM के टिकट से जीता लेकिन फिर राजद में शामिल हो गए.
अमौर से अख्तरुल ईमान एआईएमआईएम से विधायक हैं.
वहीं बायसी से सैय्यद रुकनुद्दीन अहमद राजद विधायक हैं. इन्होंने AIMIM के टिकट से जीता लेकिन फिर राजद में शामिल हो गए.
किशनगंज लोकसभा के इतिहास की बात करें तो इस सीट पर 1957 से अब तक 16 बार चुनाव हुए हैं. इस सीट से मोदी कैबिनेट में विदेश राज्य मंत्री रहे एमजे अकबर भी सांसद बने. भाजपा ने यहां एक बार जीत दर्ज की 1999 के लोकसभा चुनाव में शाहनवाज हुसैन यहां से जीते.
1957 में यहां से पहली बार कांग्रेस ने जीत हासिल की और मोहम्मद ताहिर पहले सांसद बने.
कांग्रेस ने दूसरी बार भी अपनी जीत बरकरार रखी और 1962 में मोहम्मद ताहिर ही सांसद बने.
1967 में पहली बार ये सीट किसी गैर मुस्लिम ने जीती तब किशनगंज से लखन लाल कपूर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जीते थे.
वहीं 1971 में जमी उल रहमान ने कांग्रेस की वापसी कराई.
1977 के चुनाव में जनता पार्टी से हमीमुद्दीन अहमद जीते.
जिसके बाद 1980 , 1984 के चुनाव में लगातार जमी उल रहमान कांग्रेस के टिकट से जीतकर दिल्ली पहुंचे.
1989 में कांग्रेस ने एक बार फिर अपना परचम लहराया और एमजे अकबर सांसद बने. लेकिन एमजे अकबर ने 2014 में भाजपा का दामन थाम लिया था.
1991 के चुनाव में किशनगंज में सैयद शहाबुद्दीन जनता दल के टिकट पर जीते.
1996 के लोकसभा चुनाव में तस्लीमुद्दीन जनता दल के टिकट से जीते.
1998 में तस्लीमुद्दीन ने अपनी जीत दुहराई लेकिन वो इस बार राजद से सांसद बने.
1999 के चुनाव में भाजपा ने किशनगंज में अपनी पहली जीत दर्ज की. भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने भाजपा को किशनगंज से पहली बार जीत दिलवाई.
2004 में एक बार फिर से तस्लीमुद्दीन ने किशनगंज की सीट राजद की झोली में डाल दी.
जिसके बाद लगातार तीन चुनावों में कांग्रेस ने जीत की हैट्रिक लगाई.
2009 में कांग्रेस की टिकट से असरारुल हक कासमी जीते.
वहीं 2014 और 2019 में जहां पूरे देश में मोदी लहर थी, वहीं किशनगंज में मोदी लहर का प्रभाव देखने को नहीं मिला, दोनों चुनावों में किशनगंज से कांग्रेस ने बाजी मारी.
2014 में कांग्रेस के असरारुल हक कासमी ने जीत हासिल की.
2019 में मोहम्मद जावेद ने किशनगंज में कांग्रेस का परचम लहराया और एक बार फिर किशनगंज इंडिया गठबंधन की ओर से कांग्रेस की झोली में गई है.
अब किशनगंज में कांग्रेस चौथी बार जीत दर्ज करने में सफल होती है या जदयू और AIMIM कांग्रेस का खेल बिगाड़ते हैं. ये तो चुनावी नतीजों के बाद ही पता चल पाएगा.