Wednesday, July 2, 2025

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मायावती ने Kanshiram को बखाना जिनका पूरा सियासी सफर रहा रोचक

जनार्दन सिंह की रिपोर्ट

लखनऊ / वाराणसी : मायावती ने Kanshiram को बखाना जिनका पूरा सियासी सफर रहा रोचक। यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने शनिवार को राजधानी लखनऊ में बसपा के संस्थापक रहे स्व. Kanshiram को उनकी जयंती पर जमकर बखाना एवं बहुजन समाज के लिए उनके योगदानों का विस्तार से उल्लेख किया।

इसके काफी सियासी मायने हैं – बसपा के लिहाज से भी दिल्ली की सत्ता तक रास्ता दिखाने वाले सबसे ज्यादा निर्वाचित प्रतिनिधियों वाले यूपी के लिहाज से भी। बसपा का अब अपना आधार वोट बैंक हाल के चुनाव में खिसककर दूसरी राजनीतिक दलों के पाले में गोलबंद होता दिखा जो कि बसपा नेतृत्व के लिए चिंता का सबब बना हुआ है।

ऐसे में बसपा नेतृत्व में संगठन में आमूलचूल बदलाव करके जिस तरह से ओवरहालिंग की है, उससे उसके नए सिरे से सियासी जमीन पर उतरने की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है।

ऐसे में जंयती पर बसपा संस्थापक Kanshiram को याद करते हुए अनायास ही पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने उनके बहुजन समाज के लिए रोचक सियासी सफर को नहीं सुनाया। Kanshiram के रोचक सियासी सफर की गाथा बसपा और उसके वोट बैंक के लिए काफी मायने रखती है।

Kanshiram का मंत्र – सत्ता की मास्टर चाबी…

बसपा प्रमुख मायावती ने Kanshiram की 91वीं जयंती पर उनके चित्र पर पुष्पार्पित करके उन्हें नमन किया। इस मौके पर Kanshiram का मंत्र रूपी बहुजन समाज के लोगों के लिए संदेश भी पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अपने अंदाज में सुनाया।

मायावती ने कहा कि – ‘…बसपा के संस्थापक Kanshiram की जयंती पर देशभर में पार्टी कार्यकर्ताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। हम सबने Kanshiram के सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति के आंदोलन को और मजबूत करने का संकल्प लिया है।

…बहुजन समाज को सत्ता की चाबी हासिल करना जरूरी है। …यही आज का संदेश है…यही Kanshiram का संदेश है।

15 मार्च 1934 को पंजाब के रूपनगर में जन्मे Kanshiram ने पिछड़ा वर्ग के लोगों के उत्थान और राजनीतिक लामबंदी के लिए काम किया। …Kanshiram ने 1971 में अखिल भारतीय पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी महासंघ (बामसेफ) की स्थापना की।

…1981 में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति की स्थापना की। साल ।984 में बसपा का गठन किया।  …Kanshiram 1991 में यूपी के इटावा से और 1996 में पंजाब के होशियारपुर से लोकसभा सदस्य चुने गए।

…1998 से 2004 तक उन्होंने राज्यसभा सदस्य के रूप में भी काम किया। 9 अक्टूबर 2006 को 71 वर्ष की आयु में दिल्ली में उनका निधन हो गया।’

स्व. कांशीराम संग पूर्व सीएम मायावती की फाइल फोटो
स्व. कांशीराम संग पूर्व सीएम मायावती की फाइल फोटो

महाराष्ट्र से शुरू हुई बसपा संस्थापक Kanshiram की गाथा…

Kanshiram की जयंती पर उनके रोचक सियासी गाथा को जानना जरूरी है। कुछ गाथा तो जयंती पर पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने सुनाए लेकिन कुछ किस्से सियासी पन्नों पर मजबूती से दर्ज हैं जिनको जानना भी जरूरी है।

उत्तर भारत खासकर उत्तर प्रदेश में दलित राजनीति के मसीहा बने Kanshiram का जन्म पंजाब के रूपनगर में हुआ था। उनके सियासी गाथा की रोचकता वहीं से शुरू होती है।

पंजाब में 15 मार्च 1934 को जन्मे Kanshiram की विरासत को आज भले ही केवल यूपी में बहुजन समाज पार्टी और मायावती तक जोड़कर देखा जाता है, पर इसकी शुरुआत महाराष्ट्र से हुई थी। दरअसल, Kanshiram महाराष्ट्र में पुणे की गोला-बारूद फैक्टरी में क्लास वन अफसर थे।

वहीं पर जयपुर (राजस्थान) के दीनाभाना चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। दीनाभाना वहां एससी/एसटी वेलफेयर एसोसिएशन से भी जुड़े थे। दीनाभाना का अपने सीनियर से आंबेडकर जयंती पर छुट्टी के लिए विवाद हुआ तो उनको सस्पेंड कर दिया गया था। दीनाभाना का साथ महाराष्ट्र के डीके खापर्डे ने दिया तो उनको भी निलंबित कर दिया गया।

इस घटनाक्रम की जानकारी Kanshiram को हुई तो Kanshiram ने ठान लिया कि बाबा साहेब की जयंती पर छुट्टी न देने वाले की छुट्टी करने तक चैन से नहीं बैठूंगा। इसके बाद Kanshiram लड़ाई में उतरे तो उनको भी निलंबित कर दिया गया। इस पर Kanshiram ने निलंबित करने वाले अफसर की पिटाई कर दी।

यूपी में सीएम रहीं मायावती संग स्व. कांशीराम की फाइल फोटो
यूपी में सीएम रहीं मायावती संग स्व. कांशीराम की फाइल फोटो

अफसर को पीट छोड़ी नौकरी और सियासी पिच पर उतरे Kanshiram

उसके बाद दीनाभाना नौकरी में बहाल हुए तो उनका स्थानांतरण दिल्ली कर दिया गया। वहीं, Kanshiram सोचने लगे कि जब उनके जैसे अफसरों पर इस कदर अन्याय होता है तो बाकी दलितों-पिछड़ों का क्या हाल होगा। इस पर Kanshiram ने नौकरी छोड़ दी।

उसके बाद Kanshiram के पास समय ही समय था। दीनाभाना जिस एससी/ एसटी वेलफेयर एसोसिएशन से जुड़े थे, Kanshiram को उसका अध्यक्ष बना दिया गया। इसी बीच, Kanshiram को लगा कि सिर्फ एससी/एसटी के लिए काम करने से काम नहीं चलेगा।

कुछ बदलाव लाना है तो एससी/एसटी, ओबीसी और दूसरे अल्पसंख्यकों को भी जोड़ना होगा। फिर 6 दिसंबर 1973 को एक ऐसा संगठन बनाने के बारे में सोचा गया, जिसके जरिए सबके लिए काम किया जा सके।

उसी दिन 6 दिसंबर 1978 को दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के सामने स्थित बोट क्लब मैदान पर बैकवर्ड एंड माइनोरिटी कम्युनिटीज एम्प्लाइज एसोसिएशन (बामसेफ) की औपचारिक स्थापना की गई। इस संगठन के बैनर के नीचे Kanshiram और उनके साथ के लोगों ने दलितों पर अत्याचार का विरोध शुरू किया।

Kanshiram ने दिल्ली के साथ ही महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा से लेकर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश तक दलित कर्मचारियों का मजबूत संगठन बनाया। साल 1981 में Kanshiram ने दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (डीएस4) का गठन किया।

जीवनकाल के अंतिम दिनों में स्व. काशीराम की फोटो।
जीवनकाल के अंतिम दिनों में स्व. काशीराम की फोटो।

साल 1983 में डीएस4 ने एक साइकिल रैली की। उसमें संगठन की ताकत दिखाई दी, जिसमें तीन लाख से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया था। साल 1984 तक आते-आते Kanshiram एक पूर्णकालिक सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता बन गए और बसपा (‍BSP) की स्थापना की।

वामसेफ ने Kanshiram के समय तक बसपा के लिए उसी तरह से काम किया, जैसा ‍BJP लिए RSS करता है। साल 1992 के दौर में जब भाजपा राम मंदिर आंदोलन के साथ हिंदुत्व कार्ड खेल रही थी, बीएसपी दलितों को समझाने में लगी थी कि उसकी बिरादरी से भी मुख्यमंत्री बन सकता है।

Kanshiram साल 1995 में इसमें कामयाब भी हो गए और मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। हालांकि, मायावती जितनी तेजी से उत्तर प्रदेश में आईं, उसी तेजी से केवल एक जातिगत चेहरा बनकर रह गईं।

Kanshiram का शुरू किया गया दलित आंदोलन केवल सोशल इंजीनियरिंग तक सीमित रह गया। साल 2006 में Kanshiram का निधन हो गया पर उसके 3 साल से अधिक समय पहले से ही Kanshiram सक्रिय नहीं थे।

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