Tuesday, July 1, 2025

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नशा उन्मूलन पर रांची में डालसा का कार्यक्रम

रांची. झालसा के निर्देश पर न्यायायुक्त-सह-अध्यक्ष के मार्गदर्शन में आज संत जेवियर स्कूल, धुर्वा रांची में छात्र-छात्राओं के लिए नशा मुक्ति पर एक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। लाइफ सेवर्स के अतुल गेरा, एलएडीसीएस डिपूटी चीफ, राजेश कुमार सिन्हा और एनसीबी के मनोहर मंजुल, सीआईडी के एस.आई. रिजवान अंसारी स्कूल के शिक्षकगण समेत अन्य उपस्थित थे।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अतुल गेरा ने बताया कि नशा हमारे देश को कैसे खोखला कर रहा है और नशा से बचने के लिए छात्र-छात्राओं को जागरूक करना अति आवश्यक है। नशा के पेडलर नवयुवक एवं छात्रों को इस व्यवसाय में आसानी से उपयोग करते है, जिससे हमलोगों को सचेत रहना है और किसी भी तरह का ड्रग्स पेडलरों के द्वारा दिये जा रहे लालच में न आये।

एलएडीसीएस अधिवक्ता राजेश कुमार सिन्हा ने भारतीय संविधान का अनुच्छेद 47 राज्य को निर्देशित करता है कि वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मादक पेय और नशीली दवाओं के सेवन को औषधीय उद्देश्यों को छोड़कर, समाप्त करने का प्रयास करेगा। अफीम या पोस्ता के उत्पादन या कब्ज़े पर एनडीपीएस अधिनियम 1985 के तहत मात्रा के आधार पर 20 साल तक के कठोर कारावास एवं 2 लाख रुपये के जुर्माने की सजा हो सकती है।

बार-बार अपराध करने पर मृत्युदंड तक दिया जा सकता है। काँके के पुनर्वास केंद्रों के साथ-साथ एनजीओ भी नशा करने वालों को ठीक करने में मदद करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि सीआईपी और रिनपास में जिला विधिक सेवा प्राधिकार का लिगल एड क्लिनिक है, वहां पर वैसे नशा करनेवाले व्यक्तियों को ईलाज किया जाता है। इसमें जिला विधिक सेवा प्राधिकार, रांची सहायता प्रदान करती है। नशा से संबंधित पदार्थों के बारे में सिन्हा ने विस्तार से बताया। उन्होंने सजा के प्रावधान के बारे में भी बताया और उन पदार्थों के बारे में बतलाया जिसका तस्करी करने से रखने से एक जगह से दूसरे जगह ले जाने पर एवं किसी व्यक्ति के पास पाये जाने पर वह एनडीपीएस कानून के तहत सजा के भागी होंगे। आगे उन्होंने उन मादक पदार्थों के बारे में भी जानकारी दी और मादक पदार्थों की मात्रा पर सजा का निर्धारण को विस्तार से बताया।

एनसीबी के मनोहर मंजूल ने कहा कि झारखंड में इस नशे की समस्या को रोकने के लिए नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह कानूनों के कार्यान्वयन और हितधारकों के बीच समन्वय के लिए ज़िम्मेदार है। नशे की दवाओं का उत्पादन और वितरण इस समस्या की जड़ तक पहुंचता है। अधिकांश तस्करी के गिरोह संसाधनों की कमी के कारण पकड़े नहीं जाते। गृह मंत्रालय ने पिछले महीने मादक द्रव्यों के सेवन से संबंधित किसी भी संदेह की जानकारी देने के लिए आम जनता के लिए मानस हेल्पलाइन (टोल फ्री नं. 1933) स्थापित की है।

सी.आई.डी के रिजवान अंसारी ने मादक पदार्थों की तस्करी से संबंधित जानकारी प्रदान की तथा मादक पदार्थों की तस्करी में बच्चों और नवयुवकों को कैसे उपयोग में लिया जा रहा है, इससे बचने के लिए उन्होंने छात्रों को बतालाया। आगे उन्होंने कहा कि कैसे साधारण खांसी की सिरप जैसी चीज़ों का नशे के लिए उपयोग किया जाता है। झारखंड राज्य न केवल नशीली दवाओं का उपभोग करता है, बल्कि भारी कार्रवाई के बावजूद इनका उत्पादन भी करता है।

ज्ञात हो कि अन्य वक्ताओं ने कहा कि नशा करने से व्यक्ति और परिवार, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कुछ लोगों के लिए नशे की यात्रा 16 वर्ष या इससे कम उम्र से ही शुरू हो जाती है। पुनर्वास केंद्रों की अधिक जनसंख्या उनके लिए एक बड़ी समस्या बन गई है। यदि रांची में नशे की समस्या पर नियंत्रण पाया जाए तो अपराध दर में लगभग 70 प्रतिशत की कमी आ सकती है। रांची में नशीली दवाओं से संबंधित किसी भी संदिग्ध गतिविधि की सूचना अधिकारियों को देने की सलाह उन्होंने दी।

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