Ranchi : केंद्र सरकार द्वारा जनगणना की अधिसूचना जारी किए जाने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के केंद्रीय महासचिव व प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस फैसले पर गंभीर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि 2014 से 2025 तक के लंबे इंतज़ार के बाद केंद्र ने आखिरकार जनगणना की अधिसूचना जारी की, लेकिन इसके पीछे कई साजिशें छिपी हैं।
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Breaking : राजनीतिक संतुलन हो सकती है प्रभावित
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा, “जिस तरह के जुमले प्रधानमंत्री जी लाते हैं, उसी तरह अब जनगणना को दो हिस्सों में बांटा गया है–मकान आधारित और व्यक्ति आधारित। ये पूरी प्रक्रिया डिजिटल होगी, जिससे एक बड़ा डेटा तैयार किया जाएगा। लेकिन सवाल यह है कि यह डेटा किसके लिए और किस मकसद से इस्तेमाल होगा?”
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भट्टाचार्य ने कहा कि सरकार द्वारा तय की गई समयसीमा किसी भी हालत में 2029 से पहले पूरी नहीं हो सकती। उन्होंने आशंका जताई कि उसी समय आम चुनाव और परिसीमन की प्रक्रिया भी चलेगी, जिससे राजनीतिक संतुलन को प्रभावित करने की कोशिश की जाएगी।
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न्योता देकर गायब हो जाती है केन्द्र सरकार
उन्होंने महिला आरक्षण विधेयक (महिला वंदन अधिनियम) का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह अब तक अमल में नहीं आ पाया, और केंद्र केवल “न्योता देकर गायब हो जाती है।” उन्होंने आरोप लगाया कि नीतीश कुमार के साथ मिलकर केंद्र सरकार ने जातीय समीकरणों को खंडित करने की योजना बनाई है, जो 1 मार्च 2027 से झारखंड में लागू की जाएगी।
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प्रवक्ता ने यह भी सवाल उठाया कि जब अधिसूचना जारी की गई है, तो जनगणना का फॉर्मेट क्यों नहीं जारी किया गया? उन्होंने आशंका जताई कि चूंकि यह डिजिटल माध्यम से होगा और इंटरनेट से जुड़ा रहेगा, इसलिए इसके हैक होने की पूरी संभावना है। “यह एक प्रकार की पापुलेशन हैकिंग की साजिश है,” उन्होंने कहा।
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सुप्रियो भट्टाचार्य ने मांग की कि सरकार पारदर्शिता के साथ जनगणना प्रक्रिया की पूरी जानकारी साझा करे और इसके फॉर्मेट व डेटा सुरक्षा के उपायों को सार्वजनिक करे। अन्यथा, यह महज एक चुनावी चाल और जनसंख्या नियंत्रण का राजनीतिक हथकंडा बनकर रह जाएगा।
नीरज आर्या की रिपोर्ट–
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