एस के राजीव, संपादक, बिहार, न्यूज़ 22स्कोपFlood in Bihar
पटना: बिहार में इन दिनों लोग जल त्रासदी से त्रस्त हैं, कभी गंगा लोगों को डरा रही है तो कभी कोसी काल बनकर इलाकों पर मंडरा रही है और अचानक से आई इस प्राकृतिक आपदा के बीच लाखों की आबादी जिंदगी जीने के लिये जद्दोजहद करती दिख रही है। चौंकिए मत, बिहार में बाढ़ की यह तस्वीर कैमरे से कैद की गई महज एक तस्वीर नहीं बल्कि बिहार के लिये वह अभिशाप है जिसे लोग सदियों से झेलते आ रहे हैं और न जानें कब तक आगे भी झेलते रहेंगे।
यूं तो नदियां धरती के लोगों के लिये प्रकृति का वह वरदान है जिसकी बूंदों से मानव से लेकर खुद प्रकृति तक अपना प्यास बुझाती हैं लेकिन जब यही पानी कछारों को तोड़ते हुये अपनी सीमायें लांघती हैं तो सैलाब बनकर ना जानें कितनों की जिंदगी को पानी पानी कर देती है। लोग पानी के भय से इतने भयभीत हैं कि अपना सबकुछ छोड़कर सिर्फ जिंदगी की तलाश के लिये जिंदगी से ही जद्दोजहद कर रहे हैं।
जीवनदायिनी भी बरपाती है कहर
गंगोत्री से चल कर बंगाल की खाड़ी तक जाने वाली गंगा को लोग जीवनदायिनी कहते हैं लेकिन वही गंगा जुलाई से लेकर सितंबर तक सिर्फ कहर बरपाती है और अपनी लहरों के आगोश में सबकुछ समा लेना चाहती है। वहीं बिहार के अभिशाप के नाम से जाने जाने वाली कोसी जब अपने रौद्र रुप में आती है तो लाखों की आबादी के लिये काल बन जाती है। कहा जाता है कि काल तो हमेशा से क्रूर होता है जो अपने आगे किसी की भी नहीं चलने देता। बीते दो दिनों से बिहार के कई जिलों में नदियों का वह क्रूर रुप देखने को मिल रहा है जो लोगों को ही नहीं अब सिस्टम को भी डराने लगा है।
बिहार का शोक कोसी बर्बाद करने के लिए है आतुर
दरअसल में कोसी 1968 के बाद अपने इस रुप में आई है जिसकी प्रलयंकारी आवाज को सुनकर ना सिर्फ कोसी की गोद में बसने वाले लोग थर्रा उठे हैं बल्कि सिस्टम चलाने वाले भी त्राहिमाम कर रहे हैं। लेकिन कोसी अपनी मदमस्त चाल के आगे किसी को ना समझते हुये मानो अपने साथ सबकुछ बहा ले जाने को आतुर है। स्थानीय लोग कहते हैं कि आज तक कोसी का यह रुप किसी ने नहीं देखा और जब देखा तो सबकुछ समाप्त सा हो चला है।
क्या प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का है फल
कहते हैं अगर आप प्रकृति से खिलवाड़ करेंगे तो आपको अंजाम भी भुगतने के लिये तैयार रहना होगा। फिलहाल गंगा, गंडक और कोसी का जो रुप लंबे समय बाद बिहार में देखने को मिल रहा है उसने यह सोचने पर जरुर मजबूर कर दिया है कि क्या नदियों का उफनना महज एक बानगी भर है या फिर हमारे द्वारा की गई भूल का सबक सिखाने के लिये प्रकृति को कभी पानी तो कभी गर्मी के रुप में आकर हस्तक्षेप करना पड़ रहा है।
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