बोकारोः यदि कोई आपसे कहें कि मर्यादा पुरुषोतम राम ने अपनी पत्नी सीता की हठ पर सोने की हिरण का शिकार झारखंड के बोकारो में किया था, तब आप एक बार आश्चर्यचकित होंगे, इसे महज अफवाह मानकर खारिज करने की कोशिश करेंगे. क्योंकि प्रचलित दावे के अनुसार त्रेता युग में राक्षस राज लंकेश ने मां सीता का हरण पंचवटी में किया था.
पहाड़ी पर दो स्थानों पर मौजदू है भगवान श्रीराम के पदचिह्न
लेकिन दावे-प्रतिदावे से अलग बोकारो जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर की दूरी पर कसमार प्रखंड के मंजूरा पंचायत का हिसीम-केदला की पहाड़ी श्रंखला में विद्यमान मृगीखोह में जो पुरातात्विक प्रमाण है, उसे आसानी से झुठलाया नहीं जा सकता. मृगीखोह और राम लखन टुंगरी (छोटा पहाड़) पर दो स्थानों पर मौजूद भगवान श्री राम का पद चिह्न इतिहासकारों और पुरातात्विक विभाग के लिए आज भी एक पहेली बनी हुई है.
भगवान श्रीराम का तीर जिस पहाड़ी से टकराया, वहां से निकल पड़ी दूध की धार
इसी राम-लखन टुंगरी पर झारखंड का सुप्रसिद्ध टुसू मेला लगता है. रामनवमी और दुर्गा पूजा के अवसर पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है. स्थानीय मान्यता के अनुसार जब भगवान श्रीराम और लक्षमण सोने की हिरण की तलाश में दर-दर भटक रहे थें, तब श्रीराम की नजर हिसीम-केदला पहाड़ी श्रंखला के इस मृगीखोह में उस सोने की हिरण पर पड़ी, श्री राम ने सोने की हिरण पर जो तीर चलाया वह खोह के एक हिस्से से टकराई, उस स्थान से दूध की धारा निकल पड़ी.
हिसीम-केदला पहाड़ी श्रंखला में विद्यमान मृगीखोह में दो स्थानों पर भगवान श्रीराम के पद चिन्ह हैं. एक झरना के पास और दूसरा पहाड़ की चोटी पर. झरना के पास स्थित पदचिह्न मंदिर बना हुआ है, जबकि पहाड़ की चोटी पर स्थित पदचिह्न पर मंदिर निर्माणाधीन है. दावे की प्रमाणिकता चाहे जो हो पर निश्चित रुप से यह स्थान रमणीय है, जिस स्थान पर भगवान राम ने मृग पर बाण चलाया था, वहां आज भी गड्ढे का निशान है.
स्थानीय लोगों की मान्यता है कि हिसीम-केदला एक पहाड़ी एक श्रृंखला है और झारखंड से बिहार के रास्ते यह उत्तर प्रदेश के विंध्याचल पर्वत श्रेणी से जुड़ी हुई है. यही पहाड़ी आगे चलकर पश्विम बंगाल में अयोध्या पर्वत श्रृंखला का हिस्सा बनता है.
मिलती है यहां संजीवनी बुटी, स्थानीय लोग सोनपापड़ी के नाम करते हैं उसकी पहचान
रामलखन टुंगरी व आसपास की झाड़ियों में मिलने वाला एक विशेष प्रकार का पौधे पाया जाता है, स्थानीय लोग इसे संजीवनी बुटी या सोनपापड़ी के नाम से जानते है. ऐसी मान्यता है कि इसके सेवन से उदर संबंधी बीमारियां दूर हो जाती है. झरना से निकलने वाला पानी भी व्याधिनाशक है.
पुरातत्व विभाग की केंद्रीय टीम दो बार इस इलाके का निरीक्षण कर चुकी है, यदि राज्य सरकार इस स्थल को पर्यटक स्थल के रुप में विकसित किया जाय तो झारखंड को राजस्व का अच्छा स्रोत बन सकता है.
रिपोर्टः चुमन
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