बोरियो: झारखंड की बोरियो विधानसभा सीट पर चुनावी नाटक एक बार फिर से रंगीन हो गया है। इस बार मुकाबला ऐसा है, जैसे अकबर और बीरबल की कहानी में नया मोड़ आ गया हो। एक तरफ हैं झामुमो के सम्राट हेमंत सोरेन, जिनका वर्चस्व इस चुनाव में देखने को मिलेगा। दूसरी ओर हैं लोबिन हेम्ब्रम, जो अब भाजपा की ओर से चुनावी दंगल में कूद पड़े हैं। जैसे बिरबल ने अकबर की कुशाग्र बुद्धि को चुनौती दी, वैसी ही चुनौती लोबिन ने झामुमो को दी है।
लोबिन की यात्रा में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। पहले झामुमो के साथ रहकर उन्होंने ‘बीरबल’ का किरदार निभाया, लेकिन हाल ही में पार्टी से निष्कासन के बाद अब वे भाजपा की ओर चले गए हैं। जैसे बीरबल के पास अपनी चालें थीं, वैसे ही लोबिन के पास भी अपना जनाधार है। लेकिन क्या वे अपने पुराने दोस्तों के बीच अपने नए रंग में ढल पाएंगे? यह तो चुनावी नतीजे ही बताएंगे।
दूसरी ओर, झामुमो ने धनंजय सोरेन को मैदान में उतारा है। वे नए हैं, बिल्कुल नए चेहरे के साथ, जैसे एक नया मंत्री दरबार में दाखिल हुआ हो। लेकिन क्या वे अपने ज्ञान और चतुराई से बोरियो की जनता का दिल जीत पाएंगे? जनता के मन में यही सवाल गूंज रहा है।
बोरियो की राजनीति में आदिवासी और मुस्लिम वोटरों का बड़ा हाथ है। लगभग 47% आदिवासी और 17.4% मुस्लिम वोटर हैं। यह स्थिति ऐसी है, जैसे अकबर को अपनी बहू के लिए सही वर चुनना हो। अब देखना है कि लोबिन का भाजपा में आना इन समीकरणों को कैसे प्रभावित करेगा। क्या मुस्लिम वोटर उनके साथ रहेंगे, या वे फिर से झामुमो की ओर लौटेंगे, जैसे बिरबल ने कभी अकबर के दरबार में वापस लौटने का सोच लिया हो?
इतिहास की बात करें तो हर बार बोरियो सीट पर नया विधायक चुना गया है। लोबिन ने 2000 और 2009 में जीत हासिल की थी, जबकि ताला मरांडी ने 2005 और 2014 में भाजपा के लिए कामयाबी पाई थी। अब 2019 के बाद, लोबिन की वापसी ने इस सीट को और दिलचस्प बना दिया है।
इस चुनावी महासंग्राम में बड़ा सवाल यही है—क्या लोबिन अपने पुराने जनाधार को बचा पाएंगे, या हेमंत सोरेन की अगुवाई में झामुमो अपने किले को सुरक्षित रखेगा? बोरियो की जनता का निर्णय ही बताएगा कि वे किसकी राजनीतिक विरासत को अपनाते हैं—एक अनुभवी ‘अकबर’ की या एक नई पीढ़ी के ‘बीरबल’ की। सच में, यह चुनाव अकबर और बीरबल की कहानी का एक नया अध्याय लिखने का समय है।