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Friday, April 19, 2024

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असुर जनजाति के आराध्य हैं महिषासुर

Ranchi-महिषासुर की आराधना- एक तरफ जहां हिंदू समुदाय मां दुर्गा की पूजा अराधना में लगा है.

लेकिन इसी झारखंड में असुर जनजाति के द्वारा महिषासुर की पूजा की जाती है.

दूसरे समुदायों की तरह ही असुर जनजाति के लोग भी अपने आराध्य देव महिषासुर पूजा करते हैं.

गुमला, लोहरदगा, पलामू और लातेहार जिलों में इनकी बड़ी आबादी है.

इसके साथ ही ये झारखंड कई दूसरे जिलों में भी निवास करते हैं.

दीपावली की रात होती है महिषासुर की आराधना

यहां बता दें कि असुर जनजाति के तीन उपवर्ग हैं-

बीर असुर, विरजिया असुर और अगरिया असुर. बीर उपजाति के विभिन्न नाम हैं,

जैसे सोल्का, युथरा, कोल इत्यादि.

विरजिया एक अलग आदिम जनजाति के रूप में अधिसूचित है.

असुर हजारों सालों से झारखण्ड में रहते आए हैं.

मुण्डा जनजाति समुदाय के लोकगाथा ‘सोसोबोंगा’ में असुरों का उल्लेख मिलता है

प्रोटो-आस्ट्रेलाइड समूह का हिस्सा है असुर जन जाति

असुर जनजाति प्रोटो-आस्ट्रेलाइड समूह के अंतर्गत आती है.

ऋग्वेद तथा ब्राह्मण, अरण्यक, उपनिषद्, महाभारत आदि ग्रन्थों में

असुर शब्द का अनेकानेक स्थानों पर उल्लेख हुआ है.

बनर्जी एवं शास्त्री (1926) ने असुरों की वीरता का वर्णन करते हुए लिखा है कि

वे पूर्ववैदिक काल से वैदिक काल तक अत्यन्त शक्तिशाली समुदाय के रूप में प्रतिष्ठित थे.

मजुमदार (1926) का मानना है कि असुर साम्राज्य का अन्त आर्यों के साथ संघर्ष में हो गया.

प्रागैतिहासिक संदर्भ में असुरों की चर्चा करते हुए बनर्जी एवं शास्त्री ने

इन्हें असिरिया नगर के वैसे निवासियों के रूप में वर्णन किया है,

जिन्होंने मिस्र और बेबीलोन की संस्कृति अपना ली थी.

सिन्धु सभ्यता के प्रतिष्ठापक थें असुर जनजाति के लोग

भारत में सिन्धु सभ्यता के प्रतिष्ठापक के रूप में असुर ही जाने जाते हैं.

राय ने भी असुरों को मोहनजोदड़ो और हड़प्पा संस्कृति से संबंधित बताया है. इसके साथ ही उन्हे

ताम्र, कांस्य एवं लौह युग का सहयात्री माना है.

सुप्रसिद्ध नृतत्वविज्ञानी एस सी राय (1920) ने झारखंड में करीबन

सौ स्थानों पर असुरों के किले और कब्रों की खोज की है.

महिषासुर की आराधना लेकिन मूर्ति पूजक नहीं है असुर जनजाति

यहां बता दें कि असुर जनजाति में महिषासुर की प्रतीमा बनाने की परंपरा नहीं है.

इनके द्वारा दीपावली की रात मिट्टी का छोटा पिंड महिषासुर की पूजा की जाती है.

इस दौरान वे अपन दूसरे पूर्वजों को भी याद करते हैं.

आधुनिकता और वैश्वीकरण एक इस दौर में भी असुर समाज अपनी सभ्यता और संस्कृति के प्रति बेहद जागरुक है. अपने पूर्वजों को याद कर वह अपनी संततियों को याद दिलाता रहता है कि इस घरती के हम ही कभी राजा था, यह धरती हमारी थी, और हम ही इसके शासक थें.

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