Palamu: जिले के सदर प्रखंड अंतर्गत कुम्हार टोली में रहने वाले कुम्हार समाज के लोग आज भारी परेशानी में हैं। मिट्टी के बर्तन और दीये बनाना इस समाज का खानदानी पेशा रहा है, लेकिन अब यह परंपरा धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर पहुंच गई है। चाइनीस बल्ब के आगे मिट्टी के दीयों का उजाला फीका पड़ा गया है।
मिट्टी के दीयों की बिक्री लगभग ठपः
कुम्हार परिवारों का कहना है कि पहले दीपावली जैसे त्योहारों में मिट्टी के दीयों और बर्तनों की मांग इतनी अधिक होती थी कि महीनों पहले से तैयारी करनी पड़ती थी। लेकिन अब हालात बिल्कुल बदल गए हैं। बाजार में चाइनीज बल्ब, इलेक्ट्रॉनिक दीये और लाइटिंग स्ट्रिप्स के आने से मिट्टी के दीयों की बिक्री लगभग ठप पड़ गई है।
एक कुम्हार ने दुख जताते हुए कहा कि जब से चाइनीज बल्ब आया है, तब से हम लोगों को मजदूरी का पैसा भी नहीं मिल पा रहा है। जितना मेहनत करते हैं, उतना दाम नहीं मिलता। मिट्टी, रंग, तेल सबकी कीमत बढ़ गई है, लेकिन हमारे दीये का भाव घट गया है।
विदेशी उत्पादों का दबदबा बढ़ गयाः
कुम्हारों ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब “हर घर दीया जलाने” की अपील की थी, तब दीयों की बिक्री में थोड़ी रौनक आई थी। उस समय लोग ‘वोकल फॉर लोकल’ के नारे से प्रेरित होकर मिट्टी के दीये खरीद रहे थे, लेकिन अब बाजार में फिर से विदेशी उत्पादों का दबदबा बढ़ गया है।
कुम्हार टोली के एक बुजुर्ग ने कहा कि मोदी जी कहते हैं स्वदेशी अपनाओ, लोकल पर फोकल करो लेकिन हकीकत में ऐसा देखने को नहीं मिल रहा। अगर सरकार हमारी मदद नहीं करेगी तो आने वाले कुछ वर्षों में मिट्टी का दिया सिर्फ किताबों में रह जाएगा।
कुम्हार समाज ने प्रशासन से मांग की है कि स्थानीय कारीगरों को आर्थिक सहायता, प्रशिक्षण और बाजार उपलब्ध कराया जाए, ताकि उनकी पारंपरिक कला और आजीविका दोनों को बचाया जा सके।
रिपोर्टः बिनोद सिंह
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