एक महाकवि की तरह, राज और रानी का संघर्ष

एक महाकवि की तरह, राज और रानी का संघर्ष

रांची: झारखंड की धरती पर 23 नवंबर का दिन चुनावी समर में नया मोड़ लाने वाला है। यह महाकवि की कहानी की तरह है, राजा और रानी सत्ता की कुर्सी की ओर बढ़ रहे हैं। राजा और उनकी रानी के चेहरे पर चमक और जनता के बीच उमड़ी भीड़ इस बात की गवाह है कि यह राजनीति की एक नई गाथा है।

राजा ने अपनी सत्ता की नींव रखी है। वे आदिवासियों और पिछड़े वर्गों की आवाज बनकर उभरे हैं, रानी ने अपने पति का समर्थन करते हुए राज्य की महिलाओं के मुद्दों को अपने हाथ में लिया है। उनकी रैलियों में महिलाओं की भागीदारी यह दर्शाती है कि वे केवल एक सहायक नहीं, बल्कि एक सक्रिय नेता बनकर उभरी हैं।

राजा के प्रमुख सिपाही और उनके दोस्त जो कुछ माह पहले भी राजा के विकट परीस्थित में चट्‌टान की तरह उनके साथ खड़ा था ने चाणक्य की तरह चुनावी रणभूमि में एक कुशल रणनीतिकार बनकर योजना बना रहें है उनकी योजनाओं ने भाजपा के कई बड़े नेताओं को झामुमो की ओर मोड़ने में सफलता दिलाई है। उनका कंधा थामकर झामुमो ने एक महत्वपूर्ण सियासी ऑपरेशन को अंजाम दिया है।

जेएमएम के चचा, जो चुनावी मुद्दों को बारीकी से देख रहे हैं, ने भाजपा को बैकफुट पर लाने के लिए कई रणनीतियां बनाई हैं। वे चुनावी माहौल को अपनी चतुराई से बदलने का प्रयास कर रहे हैं, जैसे एक कुशल युद्ध के रणनीतिकर हो वह हर शाम भोंपू के माध्यम से चुनावी शतरंज की चाल चलते है।

एक और चाणक्य  संजीवनी शक्ति की तरह काम कर रहे हैं, उम्मीदवारों के चयन और बगावत रोकने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने रानी को राजनीति में स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया है।

इस राजनीतिक महासंग्राम में, झामुमो की कहानी महाभारत की गाथा की तरह है, जहां जीत और हार का फैसला अब जनता के हाथ में है।

23 नवंबर को चुनावी नतीजों के साथ यह स्पष्ट होगा कि क्या राजा और रानी की यह गाथा साकार होती है या नहीं। झारखंड की राजनीति में एक नया अध्याय लिखने की तैयारी हो चुकी है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि किसके हाथ लगेगा सत्ता का ताज।

 

 

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