Thursday, July 3, 2025

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Amit Shah meets Raja Bhaiya : यूपी में मिशन 80 में जुटे भाजपा के चाणक्य

डिजीटल डेस्क : Amit Shah meets Raja Bhaiya – यह घटनाक्रम लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा की रणनीति से काफी अहम है। दिल्ली की सत्ता तक का रास्ता जिस यूपी से होकर जाता है, उसी यूपी में भाजपा 400 पार के नारे को सफलीफूत करने के लिए मिशन 80 में जुटी है। यूपी में इस बार क्लीन स्वीप के लिए भाजपा के लिए मुफीद हर अहम चेहरे और सियासी शख्सियत को साधने के हरसंभव प्रयास जारी है।

इसकी कमान भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री Amit Shah ने खुद संभाल रखी थी। वर्ष 2014 में भी Amit Shah की किलेबंदी ने यूपी में भाजपा को अप्रत्याशित सफलता दिलाई थी। अब उसी किलेबंदी के नट-बोल्ट कसे जाने का क्रम फिर शुरू है। इसी क्रम 4 मई को बंगुलरु में Amit Shah के साथ हुई Raja Bhaiya की मुलाकात को सियासी लिहाज से काफी अहम माना जा रहा है।

को Raja Bhaiya से Amit Shah के बीच हुई सियासी मुलाकात को लेकर यूपी की सियासत के लिए काफी मायने निकाले जा रहे हैं।
Raja Bhaiya

Raja Bhaiya से Amit Shah के बीच सियासी मुलाकात के मायने

बंगलुरू में शनिवार 4 मई को Raja Bhaiya से Amit Shah के बीच हुई सियासी मुलाकात को लेकर यूपी की सियासत के लिए काफी मायने निकाले जा रहे हैं। इस सियासी मुलाकात ने यूपी की सियासत को गरमा दिया है। भले ही यह मुलाकात दक्षिण भारत में हुई है, लेकिन इसका असर यूपी में प्रतापगढ़ से लखनऊ तक दिख रहा है। इसके अलग ही मायने निकाले जा रहे हैं।

सियासी हलके में कहा जा रहा है कि इस मुलाकात ने साफ कर दिया है कि इस बार उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव की राजनीतिक जमीन पर एक बार फिर बदलाव होता दिख रहा है। भारतीय जनता पार्टी यूपी में मिशन-80 के साथ चुनावी मैदान में है। ऐसे में पार्टी हर सीट के लिए चुनावी समीकरण को तैयार करके बैठी है। इस समीकरण को साधने के लिए पार्टी के तमाम शीर्ष नेता अपने स्तर पर काम करते दिख रहे हैं।

एक तरफ पीएम नरेंद्र मोदी लगातार रैलियों और रोड शो के जरिए यूपी के राजनीतिक माहौल को एक बार फिर भाजपा के पक्ष में मोड़ने की कोशिश में हैं, वहीं Amit Shah के साथ हुई Raja Bhaiya की मुलाकात अनायास नहीं है अथवा शिष्टाचार भेंट तक सीमित नहीं है।

Raja Bhaiya से Amit Shah के बीच हुई सियासी मुलाकात को लेकर यूपी की सियासत के लिए काफी मायने निकाले जा रहे हैं।
Raja Bhaiya
Raja Bhaiya से क्षत्रिय ठाकुर / वोटरों के समीकरण को साधने का प्रयास

जनसत्ता पार्टी लोकतांत्रिक के अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया (Raja Bhaiya) संग भाजपा के चाणक्य की इस भेंट को यूपी की सियासत में क्षत्रिय वोटों के समीकरण के लिए अहम माना जा रहा है। पिछले दिनों आगरा लोकसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार एसपी सिंह बघेल को राजपूत वोटरों की नाराजगी का सामना करना पड़ा। उनके खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगे। अब भाजपा ठाकुर वर्ग की नाराजगी को दूर करने की कवायद में पूरी तरह से जुट गया है।

लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान कई अन्य जगहों से भी राजपूत वोटरों की नाराजगी का मामला सामने आया है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इस प्रकार की किसी भी समस्या को बड़ा रूप लेने से पहले निपटाने की तैयारी में जुट गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राजा भैया की मुलाकात को भी इसी नजरिए से देखा जा रहा है।

यूपी के ठाकुर वोटों के समीकरण साधने में Raja Bhaiya की है अलग रसूख

यूपी में पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक राजपूत वोट बैंक के बीच राजा भैया अपनी मजबूत पकड़ रखते हैं। ऐसे में अमित शाह और उनकी मुलाकात से इस वोट बैंक को एक बड़ा संदेश देने की कोशिश करते दिख रहे हैं। इस बार लोकसभा चुनाव में राजा भैया की पार्टी ने प्रतापगढ़ सीट से उम्मीदवार नहीं उतारा है। ऐसे में राजा भैया के साथ दिखकर अमित शाह एक बड़े वर्ग को साधने का प्रयास करते दिखेंगे। राज्यसभा चुनाव के दौरान राजा भैया ने भाजपा को समर्थन दिया था।

बंगलुरु की इस मुलाकात के जरिए दोनों पार्टी के संबंध और माधुर होने के आसार दिख रहे हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में राजा भैया दो विधायकारें वाली जनसत्ता पार्टी के अध्यक्ष हैं। वह लगातार क्षेत्र में सक्रिय रहते हैं और उनकी पकड़ राजपूत वोट बैंक के बीच काफी देखी जाती है।

वहीं Amit Shah के साथ हुई Raja Bhaiya की मुलाकात अनायास नहीं है अथवा शिष्टाचार भेंट तक सीमित नहीं है।
Raja Bhaiya and Rajnikant
Raja Bhaiya की खामोशी को भाजपा के प्रति मोड़ने में जुटे चाणक्य

लोकसभा चुनाव की घोषणा के पहले 7 बार के विधायक और जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की पार्टी कम से कम दो सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही थी। पार्टी कौशांबी और प्रतापगढ़ में चुनावी तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटी थी। लेकिन अब जबकि चुनाव उनके अपने क्षेत्र तक आ पहुंचा है, तब भी राजा भैया खामोश हैं। उनकी खामोशी सियासी गलियारों में बड़ी चुभ रही है। लोगों में यह जानने का कौतुहल है कि आखिर ऐसा क्यों है?

राज्यसभा चुनाव में जिस तरह राजा भैया ने न केवल अपना वोट बल्कि विपक्षी दल में सेंधमारी करके भाजपा को वोट दिलवाए थे, उससे यह संभावना थी कि वह भाजपा के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में आएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस साल फरवरी में हुए राज्यसभा चुनाव में राजा भैया सपा और भाजपा प्रत्याशी के लिए वोट के लिहाज से केंद्र में थे। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने प्रत्याशी के लिए वोट मांगने की गरज से राजा भैया से खुद मिलने पहुंचे थे। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष समेत अन्य नेताओं ने भी ‘राजा’ के यहां ‘दरबार’ लगाया था।

आखिरकार राजा भैया ने भाजपा की मनुहार सुन ली और उन्हें वोट का ऐलान किया था। यही नहीं, सूत्र तो यह भी दावा करते हैं कि भीतरखाने सपा के भीतर हुई टूट में राजा भैया ही अहम कड़ी थे। ऐसे में उनकी पार्टी के साथ भाजपा का गठबंधन होने और लोकसभा चुनावों में उन्हें भी अपना प्रत्याशी उतारने का मौका मिलने की उम्मीद जताई जाने लगी थी, लेकिन ये उम्मीदें ही रह गईं। भाजपा ने उन सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए, जहां राजा भैया अपने उम्मीदवार लड़वाना चाहते थे।

भाजपा के चाणक्य से मुलाकात को अहम इसलिए माना जा रहा है क्योंकि चंद दिनों पहले रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया ने सार्वजनिक टिप्पणी की थी कि इतना रसहीन चुनाव मैंने आज तक नहीं देखा। अपनी पार्टी से प्रत्याशी उतारने की संभावना तो फिलहाल नहीं दिख रही है। चुनाव में किसे समर्थन देंगे, इसके लिए समर्थकों से बातचीत की जा रही है। जल्द फैसला ले लिया जाएगा