राजस्थान-मध्यप्रदेश में बच्चों की मौत के बाद केंद्र सरकार ने सभी लिक्विड दवाओं में डायथाइलीन ग्लायकोल की मात्रा 0.10% से अधिक न होने का मानक तय किया।
केंद्र सरकार का बड़ा कदम रांची : राजस्थान और मध्यप्रदेश में कफ सिरप पीने से बच्चों की मौत के मामलों के बाद केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। दवाओं की गुणवत्ता पर निगरानी बढ़ाने के लिए इंडिया फार्माकोपिया 2022 में संशोधन किया गया है। अब देशभर में बनने वाली सभी लिक्विड दवाओं में “डायथाइलीन ग्लायकोल” और “एथिलीन ग्लायकोल” की मात्रा की जांच करना अनिवार्य होगा।
केंद्र सरकार का बड़ा कदम:
इंडियन फार्माकोपिया कमीशन (IPC) ने सभी राज्यों के औषधि निदेशालय को निर्देश जारी किए हैं कि अब लिक्विड दवाओं के हर बैच की क्रोमैटोग्राफी जांच अनिवार्य रूप से कराई जाए। इसमें इन रसायनों की अधिकतम सीमा 0.10% तय की गई है। इससे अधिक मात्रा मिलने पर दवा को असुरक्षित माना जाएगा और बाजार में वितरण रोक दिया जाएगा।
Key Highlights:
राजस्थान और मध्यप्रदेश में बच्चों की मौत के बाद केंद्र सरकार ने लिया बड़ा कदम।
सभी लिक्विड दवाओं में अब “डायथाइलीन ग्लायकोल” और “एथिलीन ग्लायकोल” की जांच अनिवार्य।
इंडिया फार्माकोपिया 2022 में संशोधन, तय की गई सीमा: 0.10% से अधिक नहीं।
जांच के लिए अब क्रोमैटोग्राफी तकनीक अपनायी जाएगी।
सरकारी अस्पतालों में वितरण से पहले सभी लिक्विड दवाओं की होगी टेस्टिंग।
झारखंड को राहत: यहां लिक्विड दवाओं का निर्माण नहीं, केवल ऑक्सीजन और टिंक्चर कंपनियां हैं।
केंद्र सरकार का बड़ा कदम:
पहले इंडिया फार्माकोपिया 2022 में इस जांच का प्रावधान नहीं था। इसी कमी के कारण कुछ राज्यों में लिक्विड दवाओं में रासायनिक असंतुलन पाया गया था, जिसके चलते कई बच्चों की मौत हुई। जांच के बाद पता चला कि कुछ सिरप में “डायथाइलीन ग्लायकोल” और “एथिलीन ग्लायकोल” की मात्रा नियमानुसार सीमा से कई गुना अधिक थी।
नए नियम लागू होने के बाद, अब किसी भी लिक्विड दवा को सरकारी अस्पतालों में वितरण से पहले जांच पास करनी होगी। इसके अलावा, दवाओं के रॉ मटेरियल से लेकर तैयार प्रोडक्ट तक निगरानी की व्यवस्था अनिवार्य होगी। दवा कंपनियों को अपने परिसर में प्रमाणित लैब स्थापित करनी होगी, जहां प्रत्येक बैच की जांच रिपोर्ट सुरक्षित रखनी होगी।
केंद्र सरकार का बड़ा कदम:
झारखंड के लिए थोड़ी राहत की खबर यह है कि यहां लिक्विड दवाओं का उत्पादन नहीं होता। राज्य में कुछ कंपनियां केवल ऑक्सीजन और टिंक्चर बनाती हैं। इसलिए फिलहाल इन नियमों का असर राज्य के भीतर दवा निर्माण पर कम पड़ेगा, लेकिन अन्य राज्यों से आने वाली दवाओं की सैंपल जांच अब अनिवार्य होगी।
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