रांची: नवरात्रि का पर्व अब शुरू हो चुका है, जो माता की आराधना का विशेष अवसर है। इस दौरान देवी की पूजा-अर्चना के साथ ज्वारे भी लगाए जाते हैं, जिनका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है।
भारत में नवरात्रि साल में चार बार मनाई जाती है, जिसमें से दो गुप्त और दो सिद्ध नवरात्रि होती हैं। चैत नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि भी प्रमुख रूप से मनाए जाते हैं। इस बार शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर से शुरू हो रही है, जब हिंदू धर्म के अनुयायी भगवती देवी की आराधना करते हैं।
नवरात्रि के दौरान, घर-घर में माता की स्थापना की जाती है। सुबह उठकर लोग अपने घरों को स्वच्छ करते हैं और देवी की पूजा की तैयारी करते हैं। इस पूजा में कई प्रकार की वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, जिसमें जल, नारियल और मिट्टी के पात्र शामिल होते हैं।
इस दौरान, ज्वारे लगाने की परंपरा भी महत्वपूर्ण है। ज्वारे, जिन्हें विशेष रूप से हरा रंग में उगाया जाता है, मिट्टी के पात्र में बोए जाते हैं। इन्हें उगाने का धार्मिक महत्व है। पुराणिक कथाओं के अनुसार, ये ज्वारे देवी शक्ति का प्रतीक माने जाते हैं। कहा जाता है कि पृथ्वी पर जो पहला अन्न उत्पन्न हुआ था, वही शक्ति का स्वरूप है। इसलिए, इनका पूजन करते समय दीप जलाया जाता है और देवी की आराधना की जाती है।
इस प्रकार, नवरात्रि के इस पावन पर्व पर ज्वारे लगाने का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह हमारे संस्कारों और परंपराओं का भी प्रतीक है। यह पर्व हम सभी को देवी माता की आराधना और भक्ति के माध्यम से सच्चाई और आस्था के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।