New Dalit Face : बसपा के शून्य होते ही दलितों के ‘नगीना’ बने चंद्रशेखर, मिशन भी है बहुत खास

डिजीटल डेस्क : New Dalit Faceबसपा के शून्य होते ही दलितों के ‘नगीना’ बने चंद्रशेखर, मिशन भी है बहुत खास। यह कोई सियासी नारा या गूंज नहीं बल्कि हकीकत है तो लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश में सामने आई है। अब तक दलितों की राजनीति का दावा करती रही बसपा (बहुजन समाज पार्टी) इस पर शून्य सीटों पर मसोस कर रह गई लेकिन उसके मुकाबले दलितों की नई आवाज बनने को संघर्षरत आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) की ओर से चंद्रशेखर ने उत्तर प्रदेश के ही नगीना सीट से जीत का परचम लहराकर नया अध्याय रच दिया है। दलितों के बीच इसी वजह से इस समय नगीना चर्चा में हैं और चेहरा हैं- चंद्रशेखर। दलितों-शोषितों की आवाज उठाने वाले चंद्रशेखर का मिशन बहुत बड़ा है। वह देश की सत्ता की कमान किसी बहुजन के हाथ में देखना चाहते हैं। इस क्रम में वह बसपा की तरह अपने सोच के दायरे को एक सीमा में नहीं बांधते।

सियासी फिजाओं में गूंजने लगा नीला झंडा केतली निशान, बसपा चिंतित

चंद्रशेखर का मिशन भले ही बहुजन को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाना हो लेकिन वो सर्वजन को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं। इसके लिए वो संविधान की बातें बोलकर बाबा साहेब के सहारे आगे बढ़ रहे हैं। वह जनता के मुद्दों के लिए आक्रामक रुख अपनाने का दंभ भरते हैं। संघर्ष को अपने जीवन का हिस्सा मानते हैं और शासन-प्रशासन से खुलकर टकराने के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं। वह भले ही मायावती को आशीर्वाद मानते हैं लेकिन लगे हाथ मायावती के विकल्प के रूप में भी खुद को पेश भी करते हैं। नगीना सीट के नतीजे में ऐसा देखने को भी मिला है। यहां से बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को महज 13272 वोट मिले, जबकि ये सीट आरक्षित है। दूसरी ओर चंद्रशेखर को 5 लाख 12 हजार 552 वोट मिले। ये नतीजे भी दर्शाते हैं कि जहां चंद्रशेखर हैं वहां बसपा के अस्तित्व पर संकट के बादल हैं। नीला झंडा हाथी निशान की जगह अब नीला झंडा केतली निशान सियासी फिजाओं में गूंजने लगा है तो यह स्वाभाविक है कि दलितों को अपना वोट बैंक मानने वाले बसपा को आधार दरकता महसूस होने लगा है।

संसद में रंग जमाने का दावा कर रहे नगीना के नए सांसद

बसपा का यह डर इसलिए भी स्वाभाविक है कि दलितों-शोषितों की आवाज उठाने वाले चंद्रशेखर का मिशन बहुत बड़ा है। सांसद बन चुके एडवोकेट चंद्रशेखर आज़ाद का मिशन देश की हुकूमत पर बहुजन का शासन स्थापित करना है। नगीना लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर इस मंज़िल की तरफ वह अपना पहला कदम बढ़ा भी चुके हैं। चुनाव में जीत के बाद चंद्रशेखर पूरे देश में कहीं भी और किसी पर भी होने वाले जुल्म के खिलाफ लड़ने की हुंकार भर रहे हैं। सरकार को चैन से न बैठने देने की कसमें खा रहे हैं और संसद में रंग जमाने का दावा कर रहे हैं। लोकसभा की सदस्यता पाकर चंद्रशेखर अब घोषित राजनेता हो गए हैं। 4 जून से पहले तक उनका दायरा सामाजिक नेता के रूप में सीमित था। अब वो सदन में उस आवाज को उठाने का दंभ भर रहे हैं जिसके मिशन की शुरुआत उन्होंने अपने गृह जिले सहारनपुर से की थी।

घोषित राजनेता बने चंद्रशेखर का जोर सर्वजन हिताय वाली सियासत पर

चंद्रशेखर खुद भी इसी मिशन का आगे बढ़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं। वह बिहार से लेकर राजस्थान तक गठजोड़ कर चुनाव लड़ चुके हैं। यूपी के अन्य हिस्सों में भी उम्मीदवार उतार चुके हैं। वर्ष 2022 में खुद गोरखपुर में सीएम योगी के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गए थे। अब उत्तर प्रदेश की जिस नगीना लोकसभा सीट से उन्हें जीत मिली है, वहां भले ही उन्हें मुख्य रूप से दलितों और मुस्लिमों का वोट पाकर विजय प्राप्त हुई हो, लेकिन अपने बयानों में चंद्रशेखर जाट, गुर्जर, सैनी, सामान्य वर्ग का भी जिक्र कर रहे हैं। साथ ही वह कह रहे हैं कि देश में अगर कहीं भी, किसी भी जाति या धर्म के लोगों के खिलाफ जुल्म होगा तो वो आवाज उठाएंगे। जाति धर्म से आगे बढ़कर चंद्रशेखर यहां तक कह रहे हैं कि वो पुलिस के लिए लड़ेंगे, पत्रकारों के लिए लड़ेंगे, हर तरह के कमर्चारियों के लिए लड़ेंगे और बौद्धों, ईसाइयों की आवाज भी उठाएंगे। वह कहते हैं कि अब कहीं मॉब लिंचिंग नहीं होगी, घोड़ी चढ़ने पर कोई मारा नहीं जाएगा, पशु के नाम पर कोई मारा नहीं जाएगा और जहां भी जुल्म होगा वहां चंद्रशेखर खड़ा नजर आएगा।

सिद्धांत बाबा साहेब वाला तो तेवर पेरियार रामास्वामी वाले हैं

महज 36 साल की उम्र में चंद्रशेखर 140 करोड़ की आबादी वाले देश में एक व्यापक एजेंडे के साथ अपनी राजनीतिक लड़ाई को आगे ले जा रहे हैं। हालांकि, उनका उद्भव उसी परिवेश में हुआ जिसकी लड़ाई कभी पेरियार रामास्वामी ने लड़ी थी और दलितों के साथ भेदभाव को खत्म करने का मिशन जो कभी बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने चलाया उसी पर चंद्रशेखर हैं। अपने जुलूस में बाबा साहेब की तस्वीर रखते हैं। उनके राजनैतिक दल आजाद समाज पार्टी के नाम के साथ के साथ कांशीराम की विरासत है और तेवर पेरियार, अर्जक संघ जैसे हैं जिन्होंने धार्मिक ग्रंथ तक जलाए, मंदिरों में दलितों की एंट्री के लिए आंदोलन किए। अर्जकों में तार्किक, वैज्ञानिक व मानववादी चिंतन पैदा करके पाखंड-अंधविश्वास के खिलाफ मुखरता से लड़ने वाले रामस्वरूप वर्मा, महाराज सिंह भारती, जगदेव बाबू, पेरियार ललई के संघर्ष को आगे बढ़ाने की बात चंद्रशेखर करते हैं। दलित होने की वजह से अगर कहीं किसी पर जुल्म होता है तो चंद्रशेखर आरोपियों को सामंता गुंडा कहते हैं। पीड़ितों की आवाज उठाने के लिए डीएम-एसपी से मुंह पर जवाब मांगते हैं।

चंद्रशेखर ने 15 मार्च 2020 को अपना राजनैतिक दल बनाने की घोषणा की। इसका नाम आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) रखा।
गत दिनों बिहार के वैशाली में एक मामले में डीएम के सामने अपनी बात रखते चंद्रशेखर

नगीना के नए सांसद के सियासी सफर की गाथा भी कम रोचक नहीं

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की बेहट तहसील में एक कस्बा है छुटमलपुर। यह कस्बा सहारनपुर से देहरादून जाने वाली सड़क पर पड़ता है जहां चंद्रशेखर का घर है। 3 दिसंबर 1986 को चंद्रशेखर का जन्म तो छुटमलपुर के पास धड़कौली गांव में हुआ था लेकिन उनका जीवन यहीं गुजरा। पिता एक प्राइमरी स्कूल के टीचर थे और मां गृहिणी। चंद्रशेखर की पत्नी वंदना कुमारी भी एक गृहिणी हैं। चंद्रशेखर का एक बेटा है युग। छुटमलपुर में चंद्रशेखर के घर के गेट पर शुभ लाभ नहीं, बल्कि भीम आर्मी लिखा है। इस भीम आर्मी के वजूद में आने का कारण उनके पिता हैं। चंद्रशेखर बताते हैं कि साल 2012 में उनके पिता को कैंसर हो गया था। सीमित संसाधनों वाले चंद्रशेखर अपने पिता को दिल्ली एम्स जैसे बड़े अस्पताल में इलाज कराने के लिए प्रयासरत रहे लेकिन कामयाब न हो सके थे। फिर देहरादून में इलाज कराया मगर वो बच न सके और 11 जनवरी 2013 को उन्होंने देहरादून में दम तोड़ दिया। बीमारी के दौरान चंद्रशेखर को उनके पिता ने कहा था कि आज भी देश में लाखों लोग भूखे सोते हैं, लाखों लोग ऐसे हैं जिन्हें सही इलाज नहीं मिलता और अस्पताल के बाहर दम तोड़ देते हैं। आखिरी वक्त में पिता की कही गई ये बातें चंद्रशेखर के दिल में बैठ गईं और उन्होंने समाज के लिए काम करने का बीड़ा उठा लिया। 2012 में देहरादून के डीएवी कॉलेज से अपनी एलएलबी की पढ़ाई पूरी कर कॉलेज वाली छात्र राजनीति से निकले चंद्रशेखर वर्ष 2024 आते-आते एक राजनेता बन गए हैं।

छह साल पहले ही पड़ी चुनावी राजनीति की आधारशिला

चंद्रशेखर ने अपने सहयोगी सतीश कुमार और विनय रतन सिंह के साथ मिलकर अक्टूबर 2015 में भीम आर्मी नाम का संगठन बनाया था। इस संगठन का मकसद दलितों में शिक्षा को लेकर जागरूकता पैदा करना था। शुरुआती दौर में चंद्रशेखर ने भीम आर्मी को हमेशा गैर-राजनीतिक और सामाजिक संगठन के रूप में लोगों के सामने रखा। इस संगठन के जरिए उन्होंने अपने दलित समाज के हक की आवाज को उठाया और हमेशा संविधान व अहिंसा की बात की। चंद्रशेखर की चुनावी राजनीति की आधारशिला तब रखी गई थी जब नवंबर 2018 में वो जेल से छूटकर आए। जेल से आकर उन्होंने अपना मिशन ही बदल दिया। उनका दायरा सहारनपुर से निकलकर आगे बढ़ गया। वह अन्य इलाकों में भी दलित समाज की आवाज उठाने लगे। सिर्फ इतना ही नहीं, चंद्रशेखर ने दलित वर्ग के साथ अन्य शोषित, पीड़ित वर्ग की आवाज भी उठाना शुरू कर दी। किसानों के साथ खड़े होने लगे। राष्ट्रीय स्तर पर चलने वाले आंदोलनों में हिस्सा लेने लगे। 2019 में सीएए-एनआरसी के मुद्दे ने जोर पकड़ा तो चंद्रशेखर उसमें भी शामिल हो गए और मुस्लिम समाज में अपनी पैठ बनाई। हाथरस में दलित लड़की के साथ अन्याय हुआ तो चंद्रशेखर खुद वहां पहुंच गए और मुखरता से शासन-प्रशासन से टकराने में पीछे न हटे।

चार साल पहले बनाया अपना सियासी दल

समाजिक मुद्दों की आवाज उठाते-उठाते चंद्रशेखर ने 15 मार्च 2020 को अपना राजनैतिक दल बनाने की घोषणा की। इसका नाम आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) रखा। कांशीराम यानी दलितों के मसीहा जिनकी बदौलत मायावती ने बहुजन समाज पार्टी की राजनीतिक विरासत पाई और यूपी की सत्ता पर राज किया। चंद्रशेखर ने भी मायावती की तरह मान्यवर कांशीराम को ही अपना राजनीतिक संरक्षक माना और उनकी जयंती पर पार्टी की स्थापना कर दलित समाज में ये संदेश भी दिया। वह भले ही कांशीराम के नाम के साथ अपने दल की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हों, लेकिन वह जिन नायकों के विचारों से प्रेरित हैं उनकी फेहरिस्त लंबी है।

नगीना वाले चंद्रशेखर को अपने मिशन पर अभी लंबा सफर तय करना है

नगीना से सांसद बने चंद्रशेखर के आजाद समाज पार्टी का मिशन भले ही बहुजन को देश का शासक बनाना हो, लेकिन वह समावेशी विचारों के साथ इस मुकाम तक पहुंचना चाहते हैं। उनके प्रेरकों में बाबा साहेब हैं तो पेरियार भी हैं, वाल्मीकि हैं तो छत्रपति शिवाजी भी हैं, टीपू सुल्तान हैं तो ए.पी.जे अब्दुल कलाम भी हैं, भगत सिंह हैं तो चंद्रशेखर आजाद भी हैं, ज्योतिबा फुले हैं तो चौधरी चरण सिंह भी हैं। माना जाता है कि बहुजन की राजनीति से कुछ सीटों या इलाकों में जीत दर्ज की जा सकती है लेकिन पार्टियों का दायरा प्रदेशव्यापी या देशव्यापी बनाने के लिए इंक्लूसिव थॉट के साथ ही आगे बढ़ना पड़ेगा। यूपी की राजनीति पर गहरी समझ रखने वाले गोरखपुर विश्वविद्यालय के विधि विभाग के प्रोफेसर डॉ. शैलेश सिंह चौहान नगीना से सांसद बने चंद्रशेखर में भविष्य का एक दलित नेता देखते हैं और साथ ही वह आकाश आनंद को चंद्रशेखर के लिए एक दमदार विरोधी मानते हैं। आकाश आनंद के बयानों में वही राजनीति झलक रही थी जो सिर्फ बहुजन तक सीमित रहती है और मौजूदा वक्त में इस राजनीति का भविष्य नहीं है। इसीलिए मायावती ने उन्हें पीछे खींचा। दूसरी ओर शुरू से ही चंद्रशेखर सर्वजन की राजनीति की दिशा में हैं लेकिन उन्हें लंबा रास्ता तय करना है क्योंकि उनके पीछे किसी मूवमेंट का समर्थन नहीं है।

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