नई दिल्ली : राष्ट्रपति चुनाव में जिस तरह विपक्षी दलों की एकजुटता ध्वस्त हुई,
उप राष्ट्रपति पद के चुनाव में इससे भी खराब स्थिति हो सकती है.
राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार उतारने की मुहिम शुरू करने वाली
ममता बनर्जी ने उप राष्ट्रपति पद के चुनाव में अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की स्थिति साफ कर
कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों को करारा झटका दिया है.
पार्टी ने उप राष्ट्रपति चुनाव से दूर रहने का फैसला किया है.
उप राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए ने जगदीप धनकड़ और विपक्षी दलों ने
कांग्रेस नेत्री मार्गरेट अल्वा को उम्मीदवार बनाया है.
सांसद अभिषेक बनर्जी ने की घोषणा
गुरुवार को कोलकाता में टीएमसी के शहीद दिवस कार्यक्रम के बाद पार्टी की संसदीय दल की बैठक हुई जिसके बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी ने उप राष्ट्रपति चुनाव में टीएमसी के हिस्सा नहीं लेने की घोषणा की. पार्टी ने सर्वसम्मति से इसका फैसला किया है. पार्टी का कहना है कि उप राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार चयन में जिस तरह टीएमसी को दरकिनार किया गया, वह हरगिज स्वीकार्य नहीं है. पार्टी ने स्पष्ट किया है कि धनकड़ का वह समर्थन नहीं कर सकती इसलिए उसने चुनाव में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया है.
विपक्षी दलों ने की ममता बनर्जी की आलोचना
तृणमूल कांग्रेस के इस फैसले के बाद विपक्षी दलों ने उसकी आलोचना शुरू कर दी है. कांग्रेस की बंगाल इकाई के साथ वामपंथी दल, टीएमसी के फैसले की तीखी आलोचना करते हुए ममता बनर्जी के भाजपा से साठगांठ तक के आरोप लगा रहे हैं.
विपक्षी दलों ने मार्गरेट अल्वा को बनाया उम्मीदवार
गौरतलब है कि गत रविवार को ही एनसीपी प्रमुख शरद पवार के घर आयोजित विपक्षी दलों की बैठक में कांग्रेस नेत्री मार्गरेट अल्वा के नाम का चयन किया गया था. इस बैठक में विपक्ष के 17 दलों के प्रतिनिधि शामिल थे लेकिन तृणमूल कांग्रेस इससे नदारत थी. मारग्रेट अल्वा के नामांकन से भी तृणमूल कांग्रेस ने दूरी बनाए रखी.
विपक्षी दलों में एकजुटता नहीं
उप राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की एकता बिखरती दिख रही है. इससे पहले राष्ट्रपति चुनाव में भी विपक्षी दलों के एकजुट नहीं होने का फायदा सत्ता पक्ष को मिला. भाजपा ने ट्रंप कार्ड के रूप में द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा कर विपक्षी दलों को पसोपेश में डाल दिया था. सबसे पहले गैर एनडीए दलों में बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस ने मुर्मू को समर्थन दिया तो कांग्रेस के साथ झारखंड की सरकार चला रहे हेमंत सोरेन ने भी मुर्मू को समर्थन दे दिया. शिवसेना को भी मजबूरन मुर्मू के साथ आना पड़ा. यहां तक कि कांग्रेस के भी कई सांसदों ने भी पार्टी लाइन से अलग मत दिया.