Monday, June 30, 2025

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अंबा का ‘बिहार-गमन’: कद्दू में छेद कर निकली तलवार!

रांची: झारखंड की राजनीति में कांग्रेस का हाल किसी खोये हुए यात्री सा है, जो न नक्शा पढ़ पा रहा है, न दिशा पहचान रहा है। पर क्या कहें! दिल्ली दरबार के दरबारियों की अदा ही कुछ ऐसी है — हार को हार मानने का शऊर ही नहीं। अब देखिए ना, झारखंड की लुटी-पिटी राजनीति से ‘पराजित पथिक’ बनकर निकलीं अंबा प्रसाद अचानक से बिहार चुनाव में ऑब्जर्वर इन चीफ़ बना दी गईं! पहली पंक्ति में नाम, जैसे परीक्षा में सबसे आगे बैठने वाला छात्र — जो चाहे नक़ल करे, चाहे नकल करवाए, मास्टर साहब की नजरों से हमेशा बाहर।
कांग्रेस आलाकमान ने मानो झारखंड को संदेश दिया है – “देखो और सीखो! हार के भी कुछ लोग पुरस्कार के अधिकारी हो सकते हैं।” अब झारखंड इकाई की परेशानी ये है कि वे हार कर भी कोने में खड़े हैं, और अंबा हार कर भी बिहार जा पहुंची हैं। यहां तो हार के बाद हारमोनियम भी नहीं बजाने दिया जाता, और उधर हार के बाद माइक थमा दिया गया!
सूत्र कहते हैं कि झारखंड कांग्रेस की अंबा से पुरानी खुन्नस है। कारण चाहे उनका ‘अलग अंदाज़’ हो, या ‘राजनीतिक गुटबाज़ी’, पर केंद्रीय नेतृत्व ने जैसे कह दिया हो – “दुश्मनों को चिढ़ाने के लिए ही तो दोस्त होते हैं!”
अब बिहार चुनाव में अंबा को बड़ी जिम्मेदारी देकर दिल्ली वालों ने कई तीर एक कमान से चलाए हैं:
• एक, अंबा की हार को ‘हाइब्रिड विजय’ बना दिया गया।
• दो, झारखंड के भीतर चल रही गुटबाज़ी में एक नया नमक छिड़क दिया गया।
• तीन, अंबा के नाम पर विरोध करने वालों को स्पष्ट संदेश – “हम जिसे चाहें, चुनाव बाद का चौधरी बना सकते हैं!”
तो भाई साहब, झारखंड में कांग्रेस की हालत उस दीवार घड़ी जैसी हो गई है जो सालों से बंद पड़ी है, लेकिन हर नेता उसे समय बताने का जरिया मान बैठा है — और अंबा प्रसाद उस घड़ी की नई बैटरी बनकर भेज दी गई हैं, जो लगे तो हैं, पर टिक-टिक अभी बाकी है!
अब सवाल ये है कि क्या बिहार में अंबा की ‘राजनीतिक पुनर्जन्म’ होगा या यह ‘पुनर्नियुक्ति’ भी किसी अगले चुनाव की ‘पूर्व-शोक सभा’ बनकर रह जाएगी?
जो भी हो, कांग्रेस की राजनीति ने फिर बता दिया —
“यहां हार से बड़ा कोई जीत नहीं, और अपने लोगों से बड़ा कोई विपक्ष नहीं!”

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