Thursday, June 26, 2025

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सीयूजे के प्रोफेसर सौमेन डे को झारखंड सरकार के झारखंड विज्ञान, प्रावैधिकी और नवाचार परिषद से मिली 5.68 लाख रुपये की शोध परियोजना

रांची. झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूजे) के रसायन विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर, डॉ. सौमेन डे को झारखंड सरकार के झारखंड विज्ञान, प्रावैधिकी और नवाचार परिषद (जेसीएसटीआई) से 5.68 लाख रुपये की शोध परियोजना मंजूर की गई है। “वैलराईजेशन ऑफ वेस्ट फिश-स्केल फॉर इंटीग्रेटेड टेक्नो-इकोनॉमिक वेस्टवॉटर ट्रीटमेंट: ए लैब टू लैंड अप्रोच” (Valorization of waste Fish-scale for Integrated Techno-Economic Wastewater Treatment: A Lab to Land Approach) नामक परियोजना का उद्देश्य झारखंड पर विशेष ध्यान देते हुए ‘अपशिष्ट से उपयोगी पद्धति’ (Waste to Wealth Methodology) उपयोग करके शुद्ध पानी के लिए एक अभिनव और टिकाऊ समाधान प्रदान करके समाज को लाभान्वित करना है।

झारखंड मछली उत्पादन में अग्रणी है, जिसके कारण भारी मात्रा में मछली अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिससे उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए योजनाबद्ध प्रबंधन की आवश्यकता है। इस परियोजना के तहत उपयुक्त उपचार द्वारा अपशिष्ट मछली-शल्कों (fish scale) से तकनीकी-आर्थिक तौर पर मजबूत सामग्री विकसित करने का प्रस्ताव है, जो दूषित जल को तेजी से शुद्ध करेगा। इस परियोजना के सफल कार्यान्वयन से उद्योगों के सहयोग से झारखंड के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं।

इस परियोजना के मिलने पर सीयूजे के कुलपति प्रो. क्षिति भूषण दास ने डॉ डे और विभाग को बधाई दी। उन्होंने कहा कि “विश्वविद्यालय निरंतर शोध के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। विश्वविद्यालय में अभी कुल 27.5 करोड़ रुपए की शोध परियोजनाएं चल रही हैं। साथ ही अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय कई संस्थानों के साथ शोध के क्षेत्र में सहयोग के लिए समझौता किया गया है। सीयूजे के उद्देश्यों में झारखंड आधारित शोध को बढ़ावा देकर यहां के समस्याओं का समाधान देना है, जिसमें यह शोध भी आगे चल कर झारखंड के लिए उपयोगी होगा।”

डीन- शोध एवं विकास और रसायन विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष, प्रो. अरुण कुमार पाढ़ी ने भी डॉ. डे को बधाई दी और बताया कि “शोध के क्षेत्र में सीयूजे के भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान, और जीवन विज्ञान विभाग लगातार अच्छा कार्य कर रहे हैं। प्रथम तीन विभाग डीएसटी-एफआईएसटी (DST-FIST) प्रायोजित विभाग हैं। साथ ही जीवन विज्ञान विभाग, यूजीसी-डीबीटी (UGC-DBT) प्रायोजित विभाग है। विज्ञान के क्षेत्र में इसे प्रतिष्ठित माना जाता है।”

डॉ. डे ने आईआईटी कानपुर से पीएचडी की है और अप्रैल 2011 से सीयूजे में काम कर रहे हैं। इनके शोध का क्षेत्र, सतत जल उपचार के लिए झारखंड के पेड़-पौधों से बनने वाले कूड़े और पशु अपशिष्ट का उपयोग करके कम लागत वाली मिश्रित सामग्री विकसित करना है। इन्हें इंडियन केमिकल सोसाइटी, कोलकाता द्वारा ‘युवा वैज्ञानिक पुरस्कार’, ‘आईएएससी-आईएनएसए-एनएएसआई (भारतीय विज्ञान अकादमी – भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी – राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी) फेलोशिप’ और सीयूजे द्वारा ‘विशिष्ट शोधकर्ता पुरस्कार’ प्रदान किया गया है।

इससे पहले उन्होंने एक एसईआरबी (SERB) प्रायोजित परियोजना भी पूरी की है। अब तक, उन्होंने प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं/पुस्तकों में 74 शोध पत्र प्रकाशित किए हैं, 6 पीएचडी छात्रों का मार्गदर्शन किया है और कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के सक्रिय समीक्षक भी हैं।

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