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कांके सीओ के अपहरण की झूठी कहानी, पुलिस जांच में हुआ खुलासा

रांची: पंडरा ओपी में तैनात दरोगा शंकर टोप्पो द्वारा कांके सीओ जय कुमार राम के अपहरण की खबर झूठी निकली। 6 अक्टूबर 2024 को दरोगा शंकर टोप्पो ने कांके थाना में सीओ के अपहरण की प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जिससे राजधानी में हड़कंप मच गया था। पुलिस और प्रशासनिक महकमे में हलचल मच गई थी, लेकिन जांच के दौरान यह मामला फर्जी पाया गया।

मामले की जांच कांके थाना के दरोगा रौशन कुमार सिंह को सौंपी गई। जांच शुरू होते ही सीओ जय कुमार राम ने खुद पुलिस को फोन कर बताया कि उनका अपहरण नहीं हुआ है और वे अपने कार्यालय में कार्यरत हैं। इसके बाद पुलिस ने गहराई से जांच की, जिससे खुलासा हुआ कि दरोगा शंकर टोप्पो ने फर्जी प्राथमिकी दर्ज कराई थी।

शंकर टोप्पो ने 13 अक्टूबर 2024 को कांके थाना में आवेदन देकर कहा था कि कांके सीओ जय कुमार राम दुर्गा पूजा के दौरान ड्यूटी पर नहीं पहुंचे और फोन पर भी संपर्क नहीं हो रहा था, जिससे प्रतीत हुआ कि उनका अपहरण हो गया है। उन्होंने दावा किया कि कांके थाना पुलिस के सहयोग से सीओ की तलाश की गई, लेकिन उनका कोई पता नहीं चला।

इसके अलावा, एफआईआर में यह भी कहा गया था कि सीओ जय कुमार राम के खिलाफ सुखदेवनगर थाना (पंडरा ओपी) में कांड संख्या 508/24 दर्ज था, जिसमें उन पर ईडी को मैनेज करने के लिए 3.40 करोड़ रुपये देने का आरोप था। इसी मामले में उनका बयान दर्ज करना था, लेकिन वे लापता थे।

कांके थानेदार केके साहू ने बताया कि पूरे मामले की जांच में अपहरण की कहानी पूरी तरह झूठी पाई गई। कांके थाना पुलिस अब इस केस से संबंधित डायरी कोर्ट में समर्पित करेगी, जिसमें इस मामले को असत्य और आधारहीन बताते हुए बंद करने की सिफारिश की जाएगी।

इस पूरे प्रकरण को लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी सक्रिय हो गई है। ईडी ने इस केस के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग के तहत एक नया ईसीआईआर दर्ज किया है। इस मामले में कांके सीओ जय कुमार राम समेत अन्य लोगों से पूछताछ की जा सकती है। इसके अलावा, कांके थाना में दर्ज कांड संख्या 294/24 के आईओ रौशन कुमार सिंह और पंडरा ओपी में दर्ज कांड संख्या 508/24 के आईओ शंकर टोप्पो से भी पूछताछ होने की संभावना है।

इस झूठे मामले के चलते पुलिस को काफी समय और संसाधन व्यर्थ करने पड़े। पुलिस ने लोगों से अपील की है कि इस तरह के झूठे मामले दर्ज कराने से बचें, क्योंकि इससे न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित होती है और वास्तविक मामलों की जांच में देरी होती है।

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