दक्षिण छोटानागपुर प्रमंडल: एनडीए की मजबूती और चुनावी चुनौतियां

दक्षिण छोटानागपुर प्रमंडल: एनडीए की मजबूती और चुनावी चुनौतियां

रांची:दक्षिण छोटानागपुर प्रमंडल में 2019 के विधानसभा चुनावों में एनडीए का प्रदर्शन कमजोर था, लेकिन इस बार स्थिति में सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है। आजसू पार्टी ने एक बार फिर एनडीए का अहम हिस्सा बनने की घोषणा की है, जदयू और लोजपा जैसे अन्य दल भी एनडीए की ताकत बढ़ाने का काम कर रहे हैं। दूसरी ओर, इंडिया गठबंधन की स्थिति में खास सुधार नहीं दिखाई दे रहा है, हालांकि भाकपा (माले) इंडिया से जुड़ने की कोशिश कर रही है, जो चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकती है।

भाजपा ने कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवारों में बदलाव किया है, जिनमें कांके विधानसभा प्रमुख है। कांके सीट पर भाजपा का विजय ट्रेंड 90 के दशक से जारी है, लेकिन वहां लगातार चेहरे बदलने से मतदाताओं में असंतोष उत्पन्न हो सकता है। प्रमंडल के अंतर्गत आने वाले जिलों में वोटिंग पैटर्न में भिन्नता देखी गई है, जिससे यह स्पष्ट है कि हर जिला अपने अनूठे चुनावी मुद्दों के साथ सामने आता है।

दक्षिण छोटानागपुर प्रमंडल में अनुसूचित जनजाति की आबादी बहुल है और यहां कुल 15 विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें से 11 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इस क्षेत्र में भाजपा ने राज्य गठन के पहले से ही कांके और रांची सीटों पर जीत हासिल की है। हालांकि, अन्य सीटों पर उसका प्रदर्शन उतार-चढ़ाव वाला रहा है। एनडीए के लिए सबसे बड़ी चुनौती पुरानी जीत को बरकरार रखना है, विशेष रूप से आरक्षित सीटों पर।

लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रमंडल में एक भी एसटी सीट पर जीत नहीं हासिल कर सकी थी, जो इस बार की चुनावी रणनीति को प्रभावित कर सकता है। प्रमुख नेता जैसे आजसू पार्टी के सुप्रीमो सुदेश महतो, भाजपा के नीलकंठ सिंह मुंडा और सीपी सिंह इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। वहीं, इंडिया गठबंधन के डॉ. रामेश्वर उरांव जैसे नेता भी चुनावी मैदान में हैं।

अब यह देखना होगा कि विभिन्न दलों का मिलन और मतदाताओं का रुझान एनडीए की चुनावी सफलता को कैसे प्रभावित करेगा। मतों का ट्रांसफर और उसके प्रभाव से संबंधित कई सवाल अब भी अनुत्तरित हैं, लेकिन यह तय है कि इन चुनावों में परिणाम महत्वपूर्ण होंगे।

 

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