धनबाद: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन इन दिनों अस्वस्थ हैं और दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है। पूरे झारखंड में उनके जल्द स्वस्थ होने की प्रार्थनाएं की जा रही हैं। ऐसे समय में उनके जीवन के उस दौर को याद करना प्रासंगिक है, जहां से उन्होंने एक आंदोलनकारी और जननायक के रूप में अपनी यात्रा की शुरुआत की थी।


नेमरा से पोखरिया तक की यात्रा
शिबू सोरेन का जन्म 1944 में रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ था। उस वक्त उनका नाम शिव चरण मांझी था। लेकिन यह केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक साधारण आदिवासी बालक के असाधारण संघर्ष की शुरुआत थी। 1972 में वे धनबाद जिले के टुंडी प्रखंड के पोखरिया गांव पहुंचे। यहीं श्याम लाल मुर्मू के घर ने उन्हें राजनीतिक और सामाजिक चेतना के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया। यही घर बाद में ‘पोखरिया आश्रम’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
पोखरिया आश्रम: आंदोलन का जन्मस्थल
यहीं से शिव चरण मांझी का नाम बदलकर ‘शिबू सोरेन’ और आगे चलकर ‘गुरुजी’ हो गया। पोखरिया आश्रम केवल एक मकान नहीं, बल्कि वह तीर्थ स्थल बन गया जहां से आदिवासी समाज के पुनर्जागरण की क्रांति शुरू हुई। शिबू सोरेन ने सबसे पहले आदिवासी समाज में प्रचलित हंडिया-दारू पीने की कुप्रथा के खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्होंने चेताया कि नशा केवल शरीर नहीं, पूरे समाज को खोखला करता है।
टुंडी के स्थानीय लोग आज भी याद करते हैं कि गुरुजी ने हंडिया पीने वालों के लिए 40 डंडों की सजा का नियम बना रखा था। यह सख्ती सामाजिक सुधार की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल थी।
महाजनी प्रथा और जमीन की लड़ाई
उस समय महाजनों द्वारा आदिवासियों की जमीन को बंधक बनाकर उनका शोषण किया जा रहा था। गुरुजी ने इस ‘महाजनी प्रथा’ के खिलाफ मोर्चा खोला। यह संघर्ष सिर्फ वैचारिक नहीं, कई बार खूनी भी हुआ। लेकिन गुरुजी पीछे नहीं हटे। इसी क्रम में ‘धनकटनी आंदोलन’ जैसे जनजागरूक अभियानों की भी शुरुआत हुई।
झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना
शिबू सोरेन की नेतृत्व क्षमता और आदिवासी हितों के लिए उनकी प्रतिबद्धता देखते हुए बिनोद बिहारी महतो और एके राय जैसे नेताओं ने उनके साथ मिलकर 4 फरवरी 1973 को ‘झारखंड मुक्ति मोर्चा’ (JMM) की स्थापना की। इसी के साथ झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने की ऐतिहासिक लड़ाई का श्रीगणेश हुआ।
पोखरिया से गोल्फ ग्राउंड तक
1974 में झारखंड मुक्ति मोर्चा की पहली वर्षगांठ के अवसर पर धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में आयोजित कार्यक्रम में पूरे झारखंड से लाखों लोग पहुंचे थे। यह आयोजन साबित करता है कि गुरुजी के विचार जन-जन में घर कर चुके थे। यही कारण है कि आज भी हर वर्ष स्थापना दिवस यहीं मनाया जाता है।
आज भी जीवित हैं स्मृतियां
पोखरिया आश्रम आज भी शिबू सोरेन की स्मृतियों का जीवंत प्रमाण है। श्याम लाल मुर्मू की पत्नी बहाली देवी आज भी वहीं रहती हैं। घर में आज भी गुरुजी और श्याम लाल मुर्मू की तस्वीरें लगी हुई हैं। बहाली देवी कहती हैं – “यहीं उस आंगन में गुरुजी बैठक करते थे, आंदोलन की योजनाएं बनती थीं, लोग आते-जाते रहते थे।”
शिबू सोरेन का प्रारंभिक जीवन केवल व्यक्तिगत संघर्ष की गाथा नहीं है, बल्कि यह झारखंड के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है। उन्होंने जिस आश्रम से अपनी यात्रा शुरू की, वह आज भी आदिवासी समाज और झामुमो कार्यकर्ताओं के लिए एक तीर्थ स्थल है। उनके जीवन की यह अनसुनी लेकिन प्रेरणादायक कहानी आज भी नयी पीढ़ी को संघर्ष, नेतृत्व और सामाजिक न्याय के लिए प्रेरित करती है।
धनबाद से अनिल पांडे की रिपोर्ट
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