छठ पर्व की तैयारियां और यादों में स्वर कोकिला शारदा सिन्हा
पटना : बिहार चुनाव के बीच छठ की तैयारियों में बिहारवासी मस्त है। हर तरफ माहौल भक्तिमय बना है। रेलवे स्टेशन और बस अड्डे पर प्रवासियों की लौटती भीड़ दिख रही है। वहीं बाजार भी छठ की तैयारियों को लेकर सज चुका है। ऐसे में दूर कहीं बजती छठ गीतों से सहज ही स्वर कोकिला शारदा सिन्हा की याद ताजा हो जाती है।

शारदा सिन्हा के गीतों से छठ की पहचान
जी हां, छठ हो और शारदा सिन्हा की चर्चा ना हो यह तो बेईमानी होगी। यूं कहें कि शारदा सिन्हा के छठ गीतों के बिना छठ की दमक ही फीकी लगती है। बिहार के बाहर देश विदेशों में छठ की पहचान में शारदा सिन्हा के गीतों की अहम भूमिका रही है।

भोजपुरी, मैथिली के अलावा बॉलीवुड में छोड़ी अमिट छाप
केलवा के पात पर, बहंगी लचकत जाए, पटना के घाट पर जैसे अनेक गीतों के अलावा हिंदी सिनेमा में ‘काहे टोसे सजना’ (मैंने प्यार किया), ‘तार बिजली के जैसे’ (गैंग्स ऑफ वासेपुर-2) जैसी गीतों के माध्यम से उन्होंने कला प्रेमियों के बीच अमिट छाप छोड़ी है। जिसकी भरपाई अब शायद संभव नहीं है।
शारदा सिन्हा का जीवन परिचय
बिहारे के सुपौल जिले के भूमिहार परिवार में जन्मी शारदा सिन्हा की बेगूसराय जिले सिहमा में हुई थी। अपनी कला के माध्यम से पद्मश्री, पद्म भूषण व पद्म विभूषण जैसे अनेक सम्मान पाने वाली शारदा सिन्हा असमय ही कैंसर जैसी घातक बीमारी के कारण काल के गाल समा गई। यह बिहार सहित देश विदेश के कला प्रेमियों के लिए एक झटका के समान है। अब पर्व त्योंहारों में बजते गीतों के बहाने ही उनकी याद को सहेजना ही उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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