नर देवी माता का मंदिर, जहां आज भी आते हैं आल्हा उदल

West Chauparan नर देवी माता का मंदिर–घने वनों से आच्छादित

 महर्षी वाल्मिकी की तपोभूमी के रुप में चर्चित और

आज का वाल्मिकी टाईगर रिजर्व एरिया के घने जंगलों में

आल्हा उदल की कुल देवी नर देवी माता का मंदिर है.

शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र के सप्तमी से दशमी नर देवी के मंदिर

में नेपाल, बिहार  और यूपी से हजारों की संख्या मे भक्तों का जमावड़ा लगता है.  

शारदीय नवरात्र पर नर देवी माता का मंदिर में लगता है भक्तों का जमावड़ा

भारत नेपाल की सीमा पर स्थित वाल्मीकि टाईगर रिजर्व जंगल को बाघों के लिए रिजर्व रखा गया है.

किवदंती है कि इस जंगल में स्थित नर देवी माता के मंदिर में

माता का परम भक्त आल्हा और उदल के पिता जासर

और झगरू रहा करते थें. उनकी  दिन की शुरुआत माता के पूजन के साथ ही होती थी.

कहा जाता है कि एक दिन झगरु और जासर में जमीन को लेकर विवाद हुआ

और तभी जासर ने माता का पूजा करते समय ही  झगरु का सर काट कर बली चढ़ा दिया .

उसके बाद यहां से जासर मध्य प्रदेश के मैहर चले गए 

. तब से ही माता के इस मंदिर का नामांकरण  नर देवी की रुप में किया जाने लगा.

स्थानीय लोगों का दावा आज भी मंदिर में आते हैं आल्हा उदल

पुजारी  खाटू श्याम बाबा ने बतातें है कि इस मंदिर में भक्तों के द्वारा जो भी मांगा जाता है,

उनकी  मन्नत पूरी होती है.

भक्तों का सबसे बड़ा जमावड़ा यहां शारदीय नवरात्र व चैत्र नवरात्र की सप्तमी से नवमी तक लगता है.

आल्हा रुदल के पिता झगरु व जासर थें.  आज भी मैहर में आल्हा रुदल आते हैं.

मंदिर से कैंपस में आज भी वह कुआं मौजूद है,

जिस कुएं में स्नान कर झगरु व जासर मां की पूजा करने जाया करते थें.

शारदीय नवरात्र हो या चैत्र नवरात्र माता की सवारी बाघ मंदिर के शिलापट्ट पर आकार माता का दर्शन करता है.

कुछ स्थानीय लोग देखने का दावा करते हैं.

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