आदिवासियों के अस्तित्व पर खतरा, झारखंड हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को सख्त निर्देश दिए

आदिवासियों के अस्तित्व पर खतरा, झारखंड हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को सख्त निर्देश दिए

रांची: झारखंड हाई कोर्ट की एक्टिंग चीफ जस्टिस एसएन प्रसाद और जस्टिस एके राय की खंडपीठ ने बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर गुरुवार को सुनवाई की। कोर्ट ने इस मुद्दे को गंभीर बताते हुए कहा कि संताल परगना के आदिवासियों के अस्तित्व को खतरा पैदा हो रहा है।

अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को घुसपैठ को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की सख्त हिदायत दी। कोर्ट ने कहा कि झारखंड में एसपीटी (संताल परगना टेनेंसी) और सीएनटी (चोटा नागपुर टेनेंसी) एक्ट लागू है, जिसके तहत बाहरी लोगों को जमीन हस्तांतरित नहीं की जा सकती है। बावजूद इसके, संताल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ की वजह से आदिवासियों की जनसंख्या और उनकी जमीन पर कब्जा बढ़ रहा है।

सुनवाई के दौरान अदालत ने आदिवासियों की घटती जनसंख्या को लेकर चिंता जताई। विशेषकर बिरहोर और पहाड़िया जनजातियों की विलुप्ति की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की। अदालत ने पूछा कि क्या आदिवासी अपनी सुरक्षा स्वयं करेंगे, जैसा कि अंडमान और निकोबार में आदिवासी करते हैं।

कोर्ट ने केंद्र सरकार पर नाराजगी जताते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर डेमोग्राफी में बदलाव एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, लेकिन केंद्र सरकार इसका समाधान करने में कोई गंभीरता नहीं दिखा रही है। अदालत ने केंद्र सरकार को शपथ पत्र दाखिल करने में हो रही देरी को लेकर भी कड़ी टिप्पणी की।

सुरक्षा एजेंसियों जैसे आइबी, यूआइडी आइए, और बीएसएफ की ओर से भी शपथ पत्र दाखिल करने में विलंब पर नाराजगी जाहिर की गई। अदालत ने कहा कि संताल परगना में आदिवासियों की जनसंख्या कम हो रही है और केंद्र सरकार का रवैया इस गंभीर मुद्दे पर उदासीन प्रतीत हो रहा है।

अगली सुनवाई 5 सितंबर को होगी। अदालत ने इस दौरान केंद्र सरकार से उचित जवाब और ठोस कार्रवाई की उम्मीद जताई है।

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