Dhanbad: जिले के ग्रामीण अंचलों में सोहराय पर्व पूरे उत्साह और परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ मनाया गया। इस मौके पर गांवों में खुशी और उमंग का माहौल देखने को मिला। मांदर और ढोल-नगाड़ों की थाप पर ग्रामीण देर शाम तक झूमते नजर आए।
किसानों ने जताई कृतज्ञताः
सोहराय पर्व को किसानों का पर्व कहा जाता है। जिसमें वे अपने पशुधन- बैल, गाय और अन्य घरेलू पशुओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। परंपरा के अनुसार इस दिन पशुओं को किसी भी प्रकार की खेती-बाड़ी में नहीं लगाया जाता, बल्कि उनकी देखभाल और सेवा की जाती है।
सुबह से ही ग्रामीणों ने अपने पशुओं को नहलाया, उनके पैरों और सींगों में तेल लगाया और रंग-बिरंगी सजावट की। पूजा के बाद ‘चुमावन’ की रस्म अदा की गई, जिसमें किसान अपने बैलों के माथे को चूमकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं। इसके बाद पशुओं को धान के मंडर पहनाए गए, जो समृद्धि और शुभता का प्रतीक माना जाता है।
धार्मिक अनुष्ठान और पकवानः
पर्व के मौके पर घर-घर में पारंपरिक पकवान बनाए गए। ग्रामीण महिलाओं ने गिरि गोवर्धन की पूजा-अर्चना की और धरती माता और भगवान विष्णु से अच्छी फसल और परिवार की समृद्धि की प्रार्थना की। पूजा के उपरांत परंपरागत भोज का आयोजन किया गया। जिसमें ग्रामीणों ने मिलकर प्रसाद ग्रहण किया।
शाम को मांदर की थाप पर झूमे ग्रामीणः
शाम ढलते ही गांवों में ढोल, नगाड़ा और मांदर की थाप गूंजने लगी। ग्रामीण युवक और महिलाएं पारंपरिक पोशाक में सज-धजकर झारखंडी लोकगीतों पर थिरकते नजर आए। बैलों को खूंटे में बांधकर उनकी परिक्रमा की गई और उनके चारों ओर गीत-संगीत और नृत्य का माहौल बना रहा।
रिपोर्टः सोमनाथ
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