रांची: कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि 10 जून हिंसा मामले में कुछ केस को सीआईडी को क्यों सौंपा गया? कोर्ट ने मामले की सुनवाई 21 जून निर्धारित की है. इससे पहले सुनवाई के दौरान राज्य के गृह सचिव, डीजीपी, रांची एसएसपी, डीजी सीआईडी कोर्ट में उपस्थित हुए. उनके द्वारा कोर्ट को बताया गया कि मामले में जांच जारी है. जिस पर कोर्ट ने इन सभी अधिकारियों की अगली सुनवाई में उपस्थिति से छूट प्रदान की है.
प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता राजीव कुमार ने पैरवी की. दरअसल, पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने सरकार से मौखिक पूछा था कि रांची हिंसा को लेकर दर्ज कुछ केस सीआईडी तथा कुछ पुलिस अनुसंधान कर रही है. ऐसा कर अनुसंधान को खत्म करने की कोशिश की जा रही है, ताकि सीआईडी और पुलिस की रिपोर्ट में कुछ अंतर आ जाए और फिर जांच खत्म हो जाए या तो पूरी केस की जांच सीआईडी से कराई जानी चाहिए थी या पूरा केस पुलिस से जांच कराना चाहिए था. ताकि जांच में कोई विरोधाभास न आ सके.
कोर्ट ने मौखिक यह भी कहा था कि यह कौन सी प्रशासनिक अनिवार्यता थी जिसके तहत घटना के समय वहां मौजूद रांची के तत्कालीन एसएसपी को स्थानांतरित कर वेटिंग फॉर पोस्टिंग में रखा गया था.
बता दें कि रांची हिंसा मामले में दायर पंकज यादव की जनहित याचिका में हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के महासचिव यास्मीन फारूकी समेत रांची उपायुक्त, एसएसपी, मुख्य सचिव, एनआईए, ईडी को प्रतिवादी बनाया है. अदालत से मामले की एनआईए जांच कराकर झारखंड संपत्ति विनाश और क्षति निवारण विधेयक 2016 के अनुसार आरोपियों के घर को तोड़ने का आदेश देने का आग्रह किया है.
याचिका में रांची की घटना को प्रायोजित बताते हुए एनआईए से जांच करके यह पता लगाने का आग्रह किया है कि किस संगठन ने फंडिंग कर घटना को अंजाम दिया. नुपुर शर्मा के बयान पर जिस तरह से रांची पुलिस पर पत्थर बाजी हुई, प्रतिबंधित अस्त्र शस्त्र का प्रयोग हुए, धार्मिक स्थल पर पत्थरबाजी की गए यह प्रायोजित प्रतीत होता है.