रांची: झारखंड में राजा की गद्दी अपनी एक और नई कहानी लिखने की तैयारी कर रही है। इस गद्दी के इर्द-गिर्द दो राजा और एक रानी लगातार घूम रहे हैं पर गद्दी किसकी होगी इस पर संभावनाओं का खेल अभी हावी है। लगता है कि संभावनाओं की सीमा आज 11:00 बजे होने वाले विधायक दल की बैठक तक ही है उसके बाद इन तीनों किरदारों में से किसी एक की गद्दी अगले विधानसभा चुनाव तक हो जाएगी।
पर झारखंड के राज्य की गद्दी किसी की भी हो लेकिन उस पर शासन कोई और ही करेगा यह कहानी थोड़ी उलझी हुई जरूर दिखती है पर पूरी तरह स्पष्ट है जब से झारखंड के वर्तमान राजा ने राज्य की गद्दी संभाली है तब से यही दिख रहा है आने वाला समय वर्तमान राजा के लिए कैसा होने वाला है यह अभी से संभावनाओं के खेल में उलझता जा रहा है क्या बगावत होगा क्या समझौता होगा और क्या रानी की गद्दी होगी यह सभी बातें वर्तमान राजा के भविष्य को तय करने वाला है। जिस राजा ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में वर्तमान राजा को झारखंड की गद्दी सौंपी थी वह अब आ गया है और अपनी गद्दी वापस चाह रहा है।
झारखंड की वर्तमान राजनीतिक हालात को समझने का सबसे आसान जरिया इन तीनों किरदारों की शकल हैं जो बहुत कुछ बीते तीन दिनों से कह रही हैं कई बार इनसे प्रत्यक्ष रूप से सवाल भी किए गए हैं इनको लेकर पर राजनीतिक ईमानदारी और भविष्य का खेल जो संभावनाओं के साथ जुड़ा हुआ है, इन्हें अपने विचारों को सार्वजनिक करने से अभी तक रोक रखा है लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा और चाह किनकी क्या है यह आज दोपहर 11:00 बजे तक तय हो जाएगा।
आने वाले चार महिनों के लिए वर्तमान राजा अपनी गद्दी बचा पाते हैं या जिनसे उन्हें यह गद्दी मिली थी उन्हें यह लौटा देते हैं या इनके बीच जो तीसरा किरदार रानी का है वह गद्दी पर आसीन होती है यह देखने में बड़ा दिलचस्प होगा स्थिति आज दोपहर 11:00 तक साफ हो जाने की उम्मीद है।
इन सबके बीच झारखंड की जनता का सुनने वाला कौन है विपक्ष में बैठने वाली पार्टी जिसके मुखिया राज्य की गद्दी के लिए आपस में संभावनाओं का खेल करने वाले तीनों किरदारों पर ही अपनी ध्यान लगाए हुए हैं। आने वाले 4 महीने झारखंड की राजनीतिक में कई कठोर और कई उदारवादी राजनीतिक चरित्र देखने को मिलने वाले हैं इस दौरान झारखंड को अपना ध्यान शायद खुद रखना होगा क्योंकि यह गद्दी की लड़ाई है जो आने वाले 6 महीने में भयंकर रूप लेने वाली है और जिसका परिणाम जनवरी महीने तक आने की संभावना है उसके बाद ही अगर समय मिला तो इन राजनीतिक किरदारों के द्वारा झारखंड की जनता को लेकर कोई निर्णय लिया जाएगा।
झारखंड की जनता कितना भी आंदोलन को कर ले कितना भी भूख हड़ताल कर ले अभी इन राजनीतिक किरदारों की दिलचस्पी केवल राजनीतिक लड़ाई और राजनीतिक महत्वाकांक्षा तक ही सीमित है
पक्ष हो या विपक्ष उनकी सभी बयान बाजी से यह स्पष्ट है कि उनके बीच जनता कहीं नहीं है या अभी गद्दी की लड़ाई में व्यस्त हैं और कुछ नहीं।