Bihar: चुनावी नुकसान को भांप जमीन सर्वे को टालने पर मंथन, सभी की निगाहें सीएम नीतीश कुमार पर

Bihar: चुनावी नुकसान को भांप जमीन सर्वे को टालने पर मंथन

डिजीटल डेस्क : Biharचुनावी नुकसान को भांप जमीन सर्वे को टालने पर मंथन, सभी की निगाहें सीएम नीतीश कुमार पर। बिहार में राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की ओर से जमीन सर्वे का काम से आम लोग खासे परेशान हैं। इस संबंधी लगातार सूचनाएं राज्य सरकार को तमाम माध्यमों से मिल रही हैं।

लगातार मिल रहे इस सर्वे संबंधी जमीनी फीडबैक के आधार पर आकलन होने लगा है कि होने वाले विधानसभा चुनाव में मौजूदा सत्तारूढ़ गठबंधन को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इस अंदेशे के पीछे कमोबेस तर्क एक ही है कि जारी सर्वे के कारण लोगों को कई तरह की परेशानियों का भी सामना करना पड़ रहा है।

ऐसे में ताजा सूचना यह है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए राज्य की नीतीश सरकार इसे कुछ महीनों के लिए टालने के विकल्प पर मंथन कर रही है। सत्तारूढ़ गठबंधन के सभी दलों के नेताओं की निगाहें सीएम नीतीश कुमार पर है।

जारी सर्वे से सरकार के खिलाफ जनता में पनपा रोष

बिहार में पिछले माह शुरू हुए जमीन सर्वे शुरू के बाद से ही आमलोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसको लेकर सरकार के खिलाफ लोगों में रोष भी देखने को मिला है। जदयू और भाजपा नेताओं का मानना है कि अगर सर्वे जारी रहा तो 2025 के विधानसभा चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

प्रदेश भाजपा और जदयू के कई वरिष्ठ नेता और मंत्री भी  इसी मुद्दे पर सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात कर चुके हैं। उन सभी ने सर्वे को लेकर लोगों की नाराजगी से उन्हें अवगत कराया है लेकिन मुख्यमंत्री या राज्य सरकार की तरफ से इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।

माना जा रहा है कि अपने सियासी कौशल के लिए माहिर माने जाने वाले सीएम नीतीश जनता की नाराजगी को दूर करने के लिए जारी जमीन सर्वे को स्थगित करने पर जल्द ही कोई फैसला ले सकते हैं।

जमीन सर्वे से 2025 के विधानसभा चुनाव में नुकसान का अंदेशा

बिहार में इस समय जारी जमीन सर्वे पर से 2025 के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन को नुकसान की आशंका सीएम तक पहुंच रहे हर फीडबैक में कामन रूप में सामने आया है।

सर्वे से लोगों को हो रही दिक्कतों के बारे में जदयू और भाजपा के नेता ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सुझाया है कि जारी सर्वे को कुछ महीनों के लिए टाल दिया जाए या फिर इसे पूरी तरह से वापस ले लिया जाए। राज्य में बीते 20 अगस्त से राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग 45 हजार से अधिक गांवों में जमीन का सर्वे शुरू किया गया है।

इस सर्वे का मकसद भूमि विवाद और उससे उत्पन्न हिंसा को खत्म करना है।बता दें कि बिहार में जमीन के रिकॉर्ड न होने के कारण कई बार सरकारी योजनाएं और प्रोजेक्ट देरी से शुरू हो पाते हैं। ऐसे में जमीन सर्वे के जरिए कागजात को दुरुस्त किया जाना जरूरी था। इतना ही नहीं, बिहार में जमीन विवाद को लेकर हिंसा और हत्या की घटनाएं भी आम हैं।

ऐसे में इस सर्वे को शुरू करने के पीछे नीतीश सरकार का मकसद भूमि विवाद को खत्म करना और ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाना है।

आंध्र प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का बड़ा कारण बना था जमीन सर्वे

बिहार में जारी जमीन सर्वे से लोगों को हो रही परेशानी संबंधी सीएम नीतीश कुमार तक पहुंच रहे फीडबैक में सियासी रणनीतिकार कुछ अन्य रोचक जानकारी देने से भी पीछे नहीं रह रहे।

मुख्यमंत्री को सत्तारूढ़ गठबंधन दलों के रणनीतिकारों ने आंध्र प्रदेश से सबक लेते हुए अपने यहां तत्काल ऐहतियाती पहल करने का अनुरोध किया है। आंध्र प्रदेश में भी चुनावी साल में जगनमोहन रेड्डी की सरकार को जमीन के रिकॉर्ड को डिजिटलाइज करने के अपने फैसले का खामियाजा भुगतना पड़ा था।

उसी कारण बिहार की एनडीए सरकार भी वही गलती दोहराना नहीं चाहती है। इसको सियासी नजर से भी देखा जा रहा है और सभी की निगाहें इस पर टिकी हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए नेताओं के जमीनी फीडबैक संबंधी इनपुट पर क्या फैसला लेते हैं।

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