पटना : यह हिंदी के प्रसिद्ध लेखक श्रीलाल शुक्ल (31 दिसंबर 1925-28 अक्टूबर 2011) का जन्मशती वर्ष है। इस उपलक्ष्य में पटना की चर्चित नाट्य संस्था दस्तक, श्रीलाल शुक्ल के प्रसिद्ध उपन्यास पर आधारित नाट्य प्रस्तुति राग दरबारी का मंचन करने जा रही है। इस प्रस्तुति का नाट्य रूपांतरण, परिकल्पना और निर्देशन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षित और देश के जाने माने रंगकर्मी पुंज प्रकाश ने किया है। पटना में राग दरबारी उपन्यास के नाट्य रूपांतरण का मंचन अपने आप में एक यादगार लम्हा है।
राग दरबारी विख्यात हिन्दी साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल की प्रसिद्ध अपनेआप में एक अनूठी व्यंग्य रचना है
राग दरबारी विख्यात हिन्दी साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल की प्रसिद्ध अपने आप में एक अनूठी व्यंग्य रचना है। जिसके लिए उन्हें सन् 1969 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह ऐसा उपन्यास है जो गांव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है। शुरू से अन्त तक इतने निस्संग और सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया। हिंदी का शायद यह पहला वृहत् उपन्यास है। राग दरबारी उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के एक कस्बानुमा गांव शिवपाल गंज की कहानी है। उस गांव की जिंदगी का दस्तावेज, जो स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद ग्राम विकास और ‘गरीबी हटाओ’ के आकर्षक नारों के बावजूद घिसट रही है।
राग दरबारी की कथा भूमि एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे गांव शिवपालगंज की है
राग दरबारी की कथा भूमि एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे गांव शिवपालगंज की है जहां की जिंदगी प्रगति और विकास के समस्त नारों के बावजूद, निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्वों के आघातों के सामने घिसट रही है। शिवपालगंज की पंचायत, कॉलेज की प्रबंध समिति और कोआपरेटिव सोसाइटी के सूत्रधार वैद्यजी साक्षात वह राजनीतिक संस्कृति है। जो प्रजातंत्र और लोकहित के नाम पर हमारे चारों ओर फल फूल रही है।
पटना में संध्या 6.45 बजे इस नाटक का प्रथम प्रदर्शन होगा
आपको बता दें कि छह जुलाई 2025 को ऑफ वेराइटी पटना में संध्या 6.45 बजे इस नाटक का प्रथम प्रदर्शन होगा। उसके बाद हर वीकेंड अर्थात दिनांक 12, 13, 19, 20, 26 और 27 जुलाई 2025 को रोजाना संध्या 6.45 बजे से इस नाटक का मंचन देखा जा सकता है। इस नाटक के टिकट बुक माई शो और हाउस ऑफ वेराइटी पटना के टिकट काउंटर पर उपलब्ध हैं और टिकट का दर 100 रुपए प्रति टिकट है। शहर के दो दर्जन युवा अभिनेताओं के अभिनय से सुसज्जित दस्तक पटना की इस भव्य प्रस्तुति की प्रकाश परिकल्पना विदुषी रत्नम तथा गति संचालन प्रिंस सूर्यवंशी ने किया है।
नाट्य दल के बारे में
वहीं दस्तक की स्थापना सन दो दिसंबर 2002 को पटना में हुई। तब से अब तक मेरे सपने वापस करो (संजय कुंदन की कहानी), गुजरात (गुजरात दंगे पर विभिन्न कवियों की कविताओं पर आधारित नाटक), करप्शन जिंदाबाद, हाय सपना रे (मेगुअल द सर्वानते के विश्वप्रसिद्ध उपन्यास Don Quixote पर आधारित), राम सजीवन की प्रेम कथा, पॉल गोमरा का स्कूटर (उदय प्रकाश की कहानी), एक लड़की पांच दीवाने (रचनाकार – हरिशंकर परसाई), फंदी, एक और दुर्घटना (नाटककार – दरियो फ़ो), पटकथा (कवि – धूमिल), भूख, किराएदार (दोस्त्रोयोव्सकी की कहानी रजत रातें पर आधारित), एक था गधा (नाटककार – शरद जोशी), आषाढ़ का एक दिन (नाटककार – मोहन राकेश), जामुन का पेड़ (कथाकार – कृशन चंदर), पलायन, तीसरी क़सम उर्फ़ मारे गए गुलफ़ाम (कहानी – फनीश्वरनाथ रेणु), निठल्ले की डायरी (व्यंग्य – हरिशंकर परसाई), पंचलाईट (कहानी – फनीश्वरनाथ रेणु), चांद तन्हा आसमां तन्हा आदि नाटकों का मंचन देश के अलग-अलग शहरों, गांव, कस्बों के आयोजित प्रमुख नाट्योत्सवों में किया गया है। दस्तक का उद्देश्य नाटकों के मंचन के साथ ही साथ कलाकारों के शारीरिक, ज्ञानात्मक, संवेदनात्मक व कलात्मक स्तर को परिष्कृत और प्रशिक्षित करना और नाट्य-प्रेमियों के समक्ष समसामयिक, प्रायोगिक और सार्थक रचनाओं की नाट्य प्रस्तुतियों और आयोजनों को उपस्थित करना है।
नाटक के बारे में
राग दरबारी, सन 1967 में हिंदी में प्रकाशित एक उपन्यास है, जो प्रसिद्ध लेखक श्रीलाल शुक्ल की एक प्रसिद्ध व्यंग्य रचना है। यह एक ऐसा उपन्यास है जो स्वतंत्रता के बाद के एक गांव की कहानी को हास्य और व्यंग्य के माध्यम से बताता है और आधुनिक भारतीय जीवन की व्यर्थता को सहजता और निर्ममता से उजागर करता है। यह हिंदी का पहला प्रमुख उपन्यास है और अपने आप में बिल्कुल अनूठा है, जिसमें व्यंग्य और कटाक्ष को उद्देश्यपूर्ण ढंग से आत्मसात किया गया है। इस नाटक का आधार यही राग दरबारी है जो महज एक व्यंग्य कथा नहीं है, बल्कि इसमें श्रीलाल शुक्ल ने आजादी के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत-दर-परत उकेरा है। इसकी कथावस्तु बड़े शहर से थोड़ी दूर बसे शिवपालगंज नामक गांव में स्थापित है, जहां प्रगति और विकास के तमाम नारों के बावजूद जीवन निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्वों के हमलों के सामने घिसट रहा है और लोकतंत्र और लोक कल्याण के नाम पर हमारे इर्द-गिर्द पनप रही राजनीतिक संस्कृति का आईना पेश करता है। यह नाटक इसी उपन्यास का महाकाव्यात्मक नाट्य रूपान्तरण है, जिसे पटना (बिहार) की प्रसिद्ध नाट्य मंडली दस्तक द्वारा पुंज प्रकाश की परिकल्पना और निर्देशन में प्रस्तुत किया जाएगा।
निर्देशक के बारे में
पुंज प्रकाश, सन 1994 से रंगमंच के क्षेत्र में लगातार सक्रिय अभिनेता, निर्देशक, लेखक, अभिनय प्रशिक्षक व प्रकाश परिकल्पक हैं। मगध विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में ऑनर्स। नाट्यदल दस्तक के संस्थापक सदस्य। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली के सत्र 2004-7 में अभिनय विषय में विशेषज्ञता। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल में सन 2007-12 तक बतौर अभिनेता कार्यरत। अब तक देश के कई प्रतिष्ठित अभिनेताओं, रंगकर्मियों के साथ कार्य। एक और दुर्घटना, मरणोपरांत, एक था गधा, अंधेर नगरी, ये आदमी ये चूहे, मेरे सपने वापस करो, गुजरात, हाय सपना रे, लीला नंदलाल की, राम सजीवन की प्रेमकथा, पॉल गोमरा का स्कूटर, चरणदास चोर, जो रात हमने गुजारी मरके, पटकथा, भूख, किराएदार, एक था गधा, आषाढ़ का एक दिन, पलायन, मारे गए गुलफ़ाम और तीसरी क़सम, निठल्ले की डायरी, चांद तन्हा आसमां तन्हा आदि नाट्य प्रस्तुतियों का निर्देशन तथा कई नाटकों की प्रकाश परिकल्पना, रूप सज्जा एवं संगीत निर्देशन। कृशन चंदर के उपन्यास दादर पुल के बच्चे, महाश्वेता देवी का उपन्यास बनिया बहू, फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास परती-परिकथा एवं कहानी तीसरी कसम व रसप्रिया पर आधारित नाटक मारे गए गुलफ़ाम उर्फ़ तीसरी क़सम, भिखारी ठाकुर के जीवन व रचनाकर्म पर आधारित नाटक नटमेठिया, हरिशंकर परसाई की रचना पर आधारित निठल्ले की डायरी सहित मौलिक नाटक भूख और विंडो उर्फ़ खिड़की जो बंद रहती है, पलायन, चांद तन्हा आसमां तन्हा का लेखन। देश के विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रंगमंच, फिल्म व अन्य सामाजिक विषयों पर लेखों के प्रकाशन के साथ ही साथ कहानियों और कविताओं का लेखन व प्रकाशन।
निर्देशकीय
राग दरबारी, एक ऐसी रचना है जो साहित्य प्रेमियों और हिंदी साहित्य अपने आप में कल्ट का दर्ज़ा प्राप्त कर चूका है। ऐसे पाठकों की कोई कमी नहीं जो इस पुस्तक को कभी भी और कहीं से भी उठाकर पढ़ना शुरू कर देते हैं और आनंदित होते हैं। ऐसे उपन्यास पर नाटक तैयार करने के ख़याल मात्र से ही रूह का कांप जाना स्वाभाविक है। फिर ज्ञात हुआ कि श्रीलाल शुक्ल का जन्म शताब्दी वर्ष चल रहा है, तो एक रंगकर्मी और साहित्य प्रेमी होने के नाते उनकी कृति पर नाटक तैयार करके प्रदर्शित करने से बेहतर श्रद्धांजलि मुझे और कुछ समझ में नहीं आया तो एक बार पुनः इनकी सारी कृतियों को पढ़ना शुरू किया लेकिन राग दरबारी के आगे ना कुछ पसंद आना था, न आया। अब चुनौती थी नाट्य-रूपांतरण की। पहले से व्याप्त कई सारे नाट्य-रूपांतरण भी पढ़ा किन्तु वो भी पसंद न आया, तो तय हुआ कि ख़ुद ही रूपांतरण किया जाए।
राग दरबारी जैसा वृहद उपन्यास को सीमित समय के नाटक में रूपांतरण करना कठिन कार्य है
राग दरबारी जैसा वृहद उपन्यास को सीमित समय के नाटक में रूपांतरण करना कठिन कार्य है, यह कार्य भी शुरू हुआ। फिर इसे मंचित करने के लिए एक बड़े दल और अच्छा-ख़ास बजट भी चाहिए। हम ख़ुशकिस्मत हैं कि यह दोनों भी हो गया। इधर अभिनेताओं के साथ पूरे उपन्यास का पाठ चल रहा था, और उधर साथ ही साथ उसक नाट्य-रूपांतरण भी चलने लगा। मैं खुशक़िस्मत हूं कि हमारा दल धैर्य के साथ काम में लगा रहा और महीनों अभ्यास करके अब यह प्रस्तुति आपके समक्ष है।
राग-दरबारी का भरपूर और पूरा-पूरा आनंद सीमित अवधी के नाटक में उपस्थित करना संभव नहीं
हम जानते हैं कि राग-दरबारी का भरपूर और पूरा-पूरा आनंद सीमित अवधी के नाटक में उपस्थित करना संभव नहीं लेकिन अगर हम इस क्लासिक उपन्यास की कुछ चुनिन्दा झलक भी प्रस्तुत कर पाएं तो अपने आप को सार्थक समझेंगे। हम जानते हैं कि कोई भी नाटक अपने आप में सर्वगुण-संपन्न नहीं होता, होना भी नहीं चाहिए लेकिन हम यह भी जानते हैं कि नाटकों के साथ यह संभावना हमेशा रहती है कि वो बनते-बनते एक कुशल कलाकृति बन ही जाती है, यह हमारा अनुभव भी है, विश्वास भी और भरोसा भी। नए अभिनेताओं के हमारे दल ने अपनी क्षमता के अनुसार भरपूर श्रम किया है, और श्रम की सार्थकता एक न एक दिन निश्चित है, इसमें कहीं कोई दो राय नहीं!
अभिनेता और पात्र मंच पर
1. विदुषी रत्नम – स्ट्रीट सिंगर्स
2. श्रृष्टि – स्ट्रीट सिंगर्स, बेला
3. रश्मि रानी – स्ट्रीट सिंगर्स , बेला
4. पवन कुमार – ट्रक ड्राईवर, प्रिंसिपल
5. सन्नी कुमार – ट्रक क्लीनर, चपरासी
6. मोहित कुमार – रंगनाथ
7. ईशान कश्यप – रुप्पन, छात्र
8. मो इरशाद आलम – अफ़सर, छात्र, मलेरिया इंस्पेक्टर, रामाधीन भीखमखेड़वी, दलाल, मज़दूर, हकीम, कोरस
9. गोलू कुमार – पुलिस चपरासी, छात्र, भतीजा
10. रवि राज – मोतीराम मास्टर, गयादीन, लठैत
11. गुलशन कुमार – गयादीन
12. रियान अहसन – खन्ना मास्टर
13. ओम प्रकाश – मालवीय मास्टर
14. राहुल कुमार – वैद्यजी
15. अमन कुमार – लंगड़ ,बच्चा, चोर, मजदूर
16. चितरंजन गोंड – बद्री
17. दौलत कुमार – भगौती, जोगनाथ, छात्र
18. प्रिंस सूर्यवंशी – छोटे पहलवान, छात्र, मजदूर
19. लक्ष्मीकांत – छात्र, सनीचर
20. विकाश – छात्र, सिपाही, मालवीय
21. रोहित – लड़का, पुलिस, मजदूर
22. शिवम – छात्र, सिपाही
23. प्रभात सिंह – पुलिस, छात्र, सिपाही, चोर, अंधा, मजदूर
24. राजवीर कुमार – छात्र, मजदूर, चोर, कोरस
25. साहिल कुमार – छात्र, मजदूर, चोर, कोरस
26. लवदीप यादव – कोरस
मंच परे
उपन्यासकार – श्रीलाल शुक्ल
प्रचार-प्रसार – मो इरशाद आलम
गति संचालन – प्रिंस सूर्यवंशी
प्रबंधन – रवि
तकनीकी सहयोग – राम बाबू मिश्रा, पप्पू
प्रकाश परिकल्पना और संचालन – विदुषी रत्नम
सहयोग – मोहित, राहुल, ईशान और अमन
उद्घोषणा – विनीत कुमार
नियंत्रण – सुमन सिन्हा
नाट्य-रूपांतरण, परिकल्पना और निर्देशन – पुंज प्रकाश
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