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क्या रामचरित मानस विवाद का है कुढनी से कनेक्शन

PATNA: बिहार में महागठबंधन सरकार विश्वास की कमजोर बुनियाद पर खड़ी है और यही कारण है कि छोटे-छोटे मतभेद भी बड़े रूप में उभरकर सामने आ रहे हैं.

इसके पीछे ये सच्चाई भी है कि राजद सत्ता पाने के बाद अधिक मजबूत हुआ है जबकि जदयू अगर कमजोर नहीं हुई तो अपनी पुरानी ही स्थिति को बचाए रखने की कवायद में है. सत्ता संघर्ष की जो लड़ाई 2020 में लगभग बराबरी पर छूटी थी वही लड़ाई फिर सामने है.

रामचरित मानस विवाद

रामचरित मानस विवाद – साथ रहकर लड़ी जा रही है लड़ाई

फर्क बस इतना है कि पहले लड़ाई विरोधी के रूप में आमने-सामने की थी, अब ये लड़ाई साथ रहकर लड़ी जा रही है.
रामायण पर राजद कोटे के मंत्री डा. चंद्रशेखर के बयान से बिहार की सियासत गरमाई हुई है.

राजद की सियासत के लिए ऐसे बयान हमेशा फायदेमंद रहे हैं. यही कारण है कि राजद सीधे तौर पर इस बयान से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं और टालमटोल की नीति पर खेल रही है. इसके पीछे उसकी अनुभूत रणनीति है.

रामचरित मानस विवाद

जिन्हेांने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को मंचों पर सुना हो उन्हें पता है कि हिंदू धर्म की कई मान्यताओं और पूजा पाठ का वे किस तरह मजाक उड़ाते थे. इसके पीछे उनकी मंशा ब्राह्मण जाति को टारगेट करने की भी रही थी, जिसका उस वक्त की सियासत में दबदबा था.

राजद उसी फॉर्मूले को दोबारा उतारना चाहता है और बहुत आसानी से इससेे पीछे हटनेे को तैयार नहीं. मगर महागठबंधन सरकार की मौजूदा मुश्किलों का सिद्धांतों और नीतियों से ज्यादा लेना देना नहीं. ये गठबंधन पर अपना दबदबा बनाने की एक लड़ाई है जो नीचे जमीनी स्तर से लेकर उपर तक लड़ी जा रही है.

तेजस्वी को भावी मुख्यमंत्री घोषित करने में नीतीश ने नहीं की देरी

रामचरित मानस विवाद


भाजपा और जदयू का गठबंधन टूटने के बाद जब राजद और कांग्रेस के साथ नीतीश कुमार ने सरकार बनाई तो एक तरह का संदेश भी दिया कि वे अधिक दिनों तक मुख्यमंत्री बने रहने के इच्छुक नहीं. तेजस्वी को भावी मुख्यमंत्री घोषित करने में भी उन्हेांने देरी नहीं की. लेकिन इसके लिए तेजस्वी को और कितने दिनों तक इंतजार करना होगा

इसकी कोई डेडलाइन तय नहीं की गई. कुढनी उपचुनाव

में हार के बाद राजद को मौका मिला कि वह गठबंधन में

अपना वर्चस्व कायम करे. ये कोशिश बयानों के जरिए हो ही रही थी

कि राजद कोटे के मंत्री ने रामायण विवाद को जन्म दिया और जेडीयू को मौका मिला कि गठबंधन में

वह अपनी पुरानी स्थिति हासिल करने का प्रयास करे.

सवाल उठता है कि जिस समाजवादी विचारधारा को

आधार बताकर इस गठबंधन का गठन हुआ और सरकार बनी

उस समान विचारधारा के दो दलों का रुख इतना अलग कैसे

हो सकता है कि एक तो बीजेपी के करीब दिखाई दे

और दूसरा कट्टर हिंदू विरोधी. खैर, रामायण प्रकरण के बाद

सरकार पर दबदबा बनाने की कोशिशें तेज हुई हैं.

नीतीश विभागीय मंत्री की गैर मौजूदगी में अधिकारियों

के साथ बैठक कर रहे हैं और उसी विभाग के

राजद कोटे के मंत्री अगले ही दिन सुनवाई कार्यक्रम कर रहे हैं.
दिक्कत ये है कि नीतीश राजद में भारतीय जनता पार्टी

ढूंढ रहे हैं जो उनके नेतृत्व को सिर आंखों पर बिठाती रही

और राजद नीतीश से सत्ता त्याग का उच्च आदर्श की उम्मीद किए बैठा है.

समय बताएगा कि कौन किसकी उम्मीद पर खरा उतरता है,

फिलहाल तो गठबंधन के बीच का खारापन बिहार की जुबान का स्वाद बिगाड़ रहा है.

आलेख: गंगेश गुंजन

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